पांच राज्योें मे हुए चुनाव के बाद यह देखा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी देश के सभी हिस्सों में अपना विस्तार कर रही है। लोकसभा के चुनाव के पहले अनेक राज्यों में विघानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। उन सभी राज्यो मे भारतीय जनता पार्टी जीत की ओर अग्रसर दिखाई दे रही है। राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में तो उसी की सरकारें अभी भी हैं, कर्नाटक के चुनाव में जीत हासिल कर वह वहां भी अपनी सरकार बना सकती है।

सवाल उठता है कि उदारवादी पार्टियां हार क्यो रही हैं? इसमें कोई शक नहीं कि इसके पीछे नरेन्द्र मोदी का हाथ है, जो एक करिश्माई नेता के रूप में उभरे हैं। उनके कारण भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में बहुमत हासिल कर लिया था और उस चुनाव के बाद राज्यों में हुए चुनावों मे भी अधिकांश में भाजपा ने जीत हासिल कर ली है।

नरेन्द्र मोदी ने बहुत सारे वायदे किए थे, जो अभी भी पूरे होने बाकी हैं। उन्होने अनेक काम भी शुरू किए हैं, लेकिन वे अभी भी प्रक्रिया में ही हैं और उनके नतीजे आने शुरू नहीं हुए हैं। लेकिन इसके बावजूद मोदी का जादू लोगों के सिर पर चढ़कर बोल रहा है। वे विकास के मुद्दे पर चुनाव जीतकर आए हैं, लेकिन हिन्दुत्व के एजेंडे का उन्होने अभी तक त्याग नहीं किया है, बल्कि उस पर भी वे आगे बढ़ते देखे जा सकते हैं।

आखिर भारत दक्षिणपंथ की ओर क्यों बढ़ रहा है? इसके बहुत कारण हैं। एक कारण तो कांग्रेस और अन्य धर्मनिरपेक्ष पार्टियों की विफलता है और लोगों से उनका संवाद टूट चुका है। मतदाताओं का प्रोफाइल बदल रहा है और ये पार्टियां उनके हिसाब से अपना प्रोफाइल नहीं बदल पा रही हैं।

1984 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मात्र 2 सीटें मिली थीं, लेकिन इसने अब अखिल भारतीय पार्टी के रूप मंे कांग्रेस का स्थान ले लिया है। इसने 1998 से 2004 तक एक गठबंधन सरकार का नेतृत्व भी किया। पर उसके बाद 10 साल तक वह सत्ता में वापस नहीं आ पाई। पर 2014 में इसने पहली बार अपने दम पर ही लोकसभा में बहुमत हासिल कर लिया। यह नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व के कारण संभव हो पाया।

आज स्थिति यह है कि भारतीय जनता पार्टी देश के 17 राज्यों में सत्ता में है। अधिकांश में तो यह अपने बूते ही सत्ता में है और कुछ मे यह अपने सहयोगी दलों के साथ सरकार मे है। दूसरी ओर देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अब सिर्फ 4 राज्यों में ही सत्ता में है। वाम मोर्चे की सरकार सिर्फ दो राज्यों में है।

भारतीय जनता पार्टी के विस्तार का मतलब है कांग्रेस, वाम पार्टियों और अन्य धर्मनिरपेक्ष पार्टियों का सिकुड़ना। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? क्या जनता भारतीय जनता पार्टी की नीतियों को पसंद करने लगी है या वह भाजपा विरोधी पार्टियों से ऊब गई है?

कांग्रेस के पास इस समय नेतृत्व का अभाव है। उसके पास फिर से उबरने की रणनीति भी नहीं है। वह संसाधनों की समस्या का सामना भी कर रही है। तीसरे मोर्चे की बात भी जब तब होती रहती है, लेकिन उसके पास कोई नेता ही नहीं है। यदि भाजपा विरोधी दल एक साथ नहीं आए, तो भारतीय जनता पार्टी को भारतीय राजनीति पर और हावी होने से रोका नहीं जा सकता। (संवाद)