आरएसएस और उससे जुड़े संगठन कभी भी ब्रिटिश सामा्रज्यवाद के खिलाफ मुह नहीं खोलते थे और उनके खिलाफ चल रहे आजादी के आंदोलन में उन्होंने कभी हिस्सा नहीं लिया। सच कहा जाय, तो उन्होंने आजादी की लड़ाई को कमजोर करने के लिए अंग्रेजों के लिए ही काम किया। उनके निर्माताओं में से कोई भी आजादी की लड़ाई का हिस्सा नहीं रहा।
इसलिए यह शक होता है कि राष्ट्रवाद के नाम पर संघ देश में अपना हिन्दुत्ववादी राष्ट्रवाद थोपना चाहता है। उपनिवेशवाद से छुटकारा दिलाने के नाम पर वह नवउपनिवेशवाद की जाल में देश को उलझाना चाहता है।
यह एक खुला सेमिनार होगा, लेकिन संघी लोग इसे अपने तरीके से प्रायोजित करेंगे, क्योंकि वे आलोचना और विरोध को बर्दाश्त नहीं करते। उसमें भाग लेने वालों को पहले से ही चुना जाएगा और बोलने वालों को पहले से ही तय कर दिया जाएगा। जो समस्या खड़ी कर सकते हैं, उनको सेमिनार में घुसने ही नहीं दिया जाएगा। जो उनकी हां में हां मिलाए, उन्हें ही इसमें भाग लेने दिया जाएगा।
देशभक्ति और राष्ट्रवाद के नाम पर आरएसएस असहिष्णुता बढ़ाने, आजादी को दबाने, विवेकशीलता पर हमला और लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों पर चोट करने का ही काम करेंगे।
उनका अंतिम उद्देश्य भारत में एक हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना है। भारत दुनिया का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र होगा। यह चांद पर कब्जा करने के समान है। आर्श धर्म और मनु शास्त्र के अनुसार सिर्फ हिन्दु अगड़ी जातियां ही वास्तव में हिन्दू हैं। देश की आबादी का 90 फीसदी तो उनके अनुसार हिन्दू हैं ही नहीं।
इसलिए यदि उन्होंने अपना मत लोगों पर थोपना शुरू किया, तो समाज में तनाव ही पैदा होगा। क्या भारत के मुस्लिम जिनकी आबादी 14 फीसदी है, हिन्दू राष्ट्र को स्वीकार कर पाएंगे? क्या सिक्ख हिन्दू राष्ट्र को स्वीकार कर पाएंगे? भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्रों में ईसाई बहुसंख्यक है। क्या वे हिन्दू राष्ट्र को स्वीकार कर पाएंगे?
किस तरह का राष्ट्रवाद संघ भारत के लोगों को सिखाना चाहता है? हिन्दू महासभा नाथूराम गोडसे का मंदिर बनवा रहा है। और उपनिवेशवाद से छुटकारे का यह नाटक क्या है?
किस तरह का राष्ट्रवाद संघ चाहता है? अपने ही राष्ट्र के मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ जहर उगलना क्या राष्ट्रवाद है? अपने ही देश के लोगों की हत्याएं करवाना क्या राष्ट्रवाद है? गौरतलब है कि अपने विचारों से अलग विचार रखने वाले लोगों की इन स्वयंघोषित राष्ट्रवादियों ने हत्याएं भी कराई हैं। जो भी हिन्दुत्ववादी ताकतों के खिलाफ आवाज उठाता है, उन्हें ये पाकिस्तानी कहने लगते हैं।
एक तरफ तो ये राष्ट्रवाद का नारा बुलंद कर रहे हैं और दूसरी ओर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को देश में आमंत्रित किया जा रहा है। देश का रक्षा उद्योग भी विदेशियों के लिए खोल दिया गया है। डिजीटल अर्थव्यवस्था के नाम पर विदेशी कंपनियों को कमीशन दिए जा रहे हैं। क्या इसी तरह उपनिवेशवाद से देश को छुटकारा दिलाया जा सकता है?
हमारे देश को विदेशी पूंजी के साथ जबर्दस्ती बांधा जा रहा है। हमारे बैंक अपनी स्वायत्तता खोते जा रहे हैं। हम अपनी आर्थिक आजादी खोते जा रहे हैं और विश्व पूंजीवाद हमारे ऊपर हावी होता जा रहा है। देश की संपत्ति बाहर विदेशों में जा रही है।
भारत की सरकार काला धन के खिलाफ बोलती है, लेकिन देश के सबसे अमीर लोगों के साथ उसकी सांठगांठ है, और वे ही लोग काले धन को पैदा करने में सबसे ज्यादा योगदान करते रहे हैं कोई उनपर कैसे विश्वास कर सकता है। (संवाद)
आरएसएस को राष्ट्रवाद सिखाने का हक नहीं
भारतीय बहुलता का आदर करना ही है देशभक्ति
डाॅक्टर के नारायण - 2017-03-31 11:27
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने देश भर के विश्वविद्यालयों के शिक्षकों को एक सेमिनार में आमंत्रित किया है। सेमिनार का विषय है- ‘‘निवेशवाद से मुक्ति और राष्ट्रवाद को अपनाना’’।