लेकिन तीस्ता जल का समझौता शायद दोनों देशों के बीच बातचीत के एजेंडे में शामिल नहीं है। हालांकि कुछ आशावादी यह उम्मीद करते हैं कि यात्रा के दौरान इस मसले पर भी दोनों देशों के बीच कुछ बातचीत होगी और सही दिशा में कुछ कदम दोनों देश आगे बढ़ाएंगे। तीस्ता पर समझौता बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद के लिए काफी महत्वपूर्ण है। यदि उसमें सफलता मिलती है तो अपने देश के अपने विरोधियों का मुह बंद कराने में वह सफल हो जाएगी।
गौरतलब हो कि बांग्लादेश के लिए तीस्ता का समझौता बहुत ही अहम है और यह वहां की आंतरिक राजनीति को भी प्रभावित करता रहता है। वहां का विपक्ष हसीना सरकार की इसलिए आलोचना करता है, क्योंकि उस पर अपने देश के अनुकूल किसी तरह का समझौता करा पाने में वह सफल नहीं हो पा रही है।
2011 में उस पर समझौते के करीब दोनों देश पहुंच गए थे। हसीना वाजेद और भारत की मनमोहन सिंह सरकार के बीच समझौते के बिन्दु लगभग तय हो गए थे। सबकुछ ठीकठाक चल रहा था, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अमानत में खयानत कर डाला। उन्होंने प्रस्तावित तीस्ता समझौते पर अपना वीटो लगा दिया।
हालांकि भारतीय संविधान की धारा 253 केन्द्र सरकार को इस पर समझौते का अधिकार देता है और वह समझौता करने के लिए प्रदेश सरकार की रजामंदी प्राप्त करने के लिए बाध्य नहीं है, लेकिन फिर भी प्रदेश और संघ सरकार के बीच बेहतर संबंध बनाए रखने और क्षेत्रीय शांती को बरकरार रखने के लिए राज्य सरकार की इच्छा का दमन नहीं किया जा सकता।
जिस समय मनमोहन सिंह सरकार बांग्लादेश से समझौता करना चाह रहे थे, उस समय ममता बनर्जी न केवल पश्चिम बंगाल सरकार की मुख्यमंत्री थीं, बल्कि केन्द्र की गठबंधन सरकार में उनकी पार्टी हिस्सेदारी भी कर रही थी। अपनी एक सहयोगी पार्टनर को नाराज कर मनमोहन सिंह अपनी सरकार को अस्थिर होने के खतरे में नहीं डाल सकते थे।
यही कारण है कि मनमोहन सिंह ने तब अपने पैर पीछे खींच लिए थे और तीस्ता जल बंटवारे पर समझौता नहीं हो पाया था। वैसे पश्चिम बंगाल का विरोध अपनी जगह पर गलत भी नहीं है। वहां की सरकार को अपने लोगों का हित भी देखना पड़ता है। अब तीस्ता में पहले जैसा पानी नहीं रहा। उसका एक कारण सिक्कम की पन बिजली परियोजनाएं हैं। उन परियोजनाओं के कारण तीस्ता नदी के पानी का प्रवाह प्रभावित होता है और पानी भी कम आता है। यदि उस पानी को बांग्लादेश के लिए छोड़ दिया जाय, तो फिर उत्तरी पश्चिमी बंगाल के किसानों के सामने पानी की समस्या पैदा हो जाएगी।
लेकिन मनमोहन सरकार की तीस्ता पर समझौता न करा पाने की विफलता के बाद भी प्रयास जारी रहे और ममता बनर्जी के रुख को नर्म करने की कोशिश की गई। बांग्लादेश के प्रति ममता का रवैया भी नर्म होता गया और उसी का परिणाम था कि जब दोनों देशों के बीच सीमा समस्या को हल किया जा रहा था, तो ममता बनर्जी ने अपनी तरफ से कोई अड़ंगा नहीं लगाया। आज दोनों देशों के बीच जल और थल सीमा को लेकर कोई विवाद नहीं है। मोदी सरकार ने इन सारे विवादों को समाप्त कर दिया है।
यही कारण है कि जब बांग्लादेश की प्रधानमंत्री भारत आ रही हैं, तो दोनों देशों के बीच संबंध और भी मजबूत होने की संभावना और भी बढ़ गई हैं। (संवाद)
शेख हसीना की भारत यात्रा
दोनों देशोे के संबंधों के लिए महत्वपूर्ण
कल्याणी शंकर - 2017-04-05 12:20
जब नरेन्द्र मोदी ने 26 मई, 2014 को प्रधानमंत्री के पद के लिए शपथग्रहण किया था, तो लोगों को चैंकाते हुए उन्होंने अपने पड़ोसी देशों के सभी सरकार प्रमुखों को उसमें आमंत्रित किया था। वैसा करके उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि पड़ोसी देश उनकी सरकार के लिए बहुत मायने रखते हैं। शपथग्रहण के बाद उन्होंने बहुत जल्द ही अधिकांश देशों की यात्राएं भी कर डालीं। अब साढ़े साल के अंतराल के बाद बांग्लादेश की प्रधानमंत्री भारत की यात्रा पर आ रही हैं। दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के लिए यह यात्रा यह दिखाने का अवसर प्रदान कर रही है कि आपसी संबंधों में सुधार लाने के लिए वे वाकई गंभीर हैं।