शुरू शुरू में तो बलोच के लोगों ने उनका खुले दिल से स्वागत किया और उन्हें अपने भाई का दर्ज दिया। हालांकि बलोचियों का एक हिस्सा उस समय भी उनको लेकर सशंकित था। वे अफगानी अफगान बहुलता वाले बलोचिस्तान के सात जिलों में बस गए। लेकिन समय के साथ अधिकारी और बलोच उनसे उकताने लगे, क्योंकि वे वहां स्थाई रूप से बसने का मन बनाने लगे। पहले उन्हें लग रहा था कि वे कुछ समय के लिए ही यहां आए है और अफगास्तिान में स्थिति सामान्य होने के बाद वे वापस लौट जाएंगे। लेकिन अफगानिस्तान में स्थिति सामान्य होने का नाम नहीं ले रही थी और अफगानी स्थाई रूप से वहां बसने लग गए थे। बलोचिस्तान की जनसंख्या साढ़े तीन करोड़ होने का अनुमान है।
बलोस्तिान के अलावा खैबर पख्तुनवा प्रांत में भी जनगणना के काम को चुनौती मिल रही है। वहां जेहादी आतंकवादियों की संख्या काफी है। जनगणना कर्मियों पर वहां हमला होने की खबरें भी आई हैं। इन चुनौतियों के बावजूद वहां जनगणना कराने के लिए हर संभव तैयारियों को अंजाम दिया गया है।
आर्थिक और सामाजिक विकास की दृष्टि से वहां हो रही जनगणना काफी मायने रखती है। इस जनगणना के साथ घरों की भी गणना की जा रही है। यह जनगणना कई अन्य कारणों से भी महत्वपूर्ण है। सबसे पहले तो यह जनगणना दो दशक के अंतराल के बाद हो रही है। दूसरा कारण यह है कि बिना सही अथवा कामचलाऊ आंकड़े के सामाजिक और आर्थिक विकास की योजनाएं न तो ढंग से बनाई जा सकती हैं और न ही उन्हें ढंग से लागू किया जा सकता है।
जनगणना का काम वहां पाकिस्तान सांख्यिकी संस्थान को दिया गया है, जबकि भारत मे यह काम भारत के जनगणना आयुक्त को करने के लिए दिया जाता है। भारत के रजिस्ट्रार जनरल ही भारत के जनगणना आयुक्त भी होते हैं। पाकिस्तान में जनगणना का काम एक सांख्यिकीविद के नेतृत्व में हो रहा है, जबकि भारत में यह काम एक नौकरशाह के नेतृत्व में होता है।
गठन के बाद पहली बार पाकिस्तान में जनगणना भारत की तरह ही 1951 में हुई थी। दूसरी गणना 1961 में हुई। लेकिन 1971 में वहां गृहयुद्ध हो रहा था। पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा उससे अलग हो रहा था और बांग्ला आंदोलन चल रहा था। यही कारण है कि उस साल वहां जनगणना नहीं हो सकी। लेकिन शांति स्थापित होते ही पाकिस्तान की तीसरी जनगणना 1972 में हुई।
उसके बाद अगली जनगणना 1981 में हुई। पांचवीं जनगणना 1991 में होने वाली थी, लेकिन देश की आंतरिक राजनैतिक स्थिति अस्त व्यस्त होने के कारण उस साल वह जनगणना नहीं हो सकी। सच कहा जाय, तो अगले कुछ साल बीत जाने के बाद भी वहां की जनगणना नहीं कराई जा सकी। अंत मे 1998 मे जनगणना कराई गई, जो पाकिस्तान की सातवीं जनगणना थी। अब करीब 20 साल के बाद पाकिस्तान की छठी जनगणना हो रही है। इसकी खासियत यह है कि इसमे घरों की भी गणना की जाएगी। (संवाद)
पाकिस्तान में जनगणना: अफगान शरणार्थियों को गिनना कठिन होगा
शंकर रे - 2017-04-07 10:24
पाकिस्तान में छठी जनगणना की शुरुआत हो गई है और इसका बलोच पार्टियां विरोध कर रही हैं। अधिकांश बलोच पार्टियां जगगणना के तरीकों पर सवाल उठा रहे हैं। उन्हें डर है कि कम प्रशिक्षित कर्मचारी अफगानी शरणार्थियों की भी गिनती कर लेंगे। ये शरणार्थी 1980 के पहले से ही यहां आना शुरू कर चुके थे। जब अफगानिस्तान में सोवियत सेना ने प्रवेश किया था और उनका अमेरिकी समर्थन तालिबान से संघर्ष चल रहा था, तो अफगानिस्तानी भारी संख्या में अपना देश छोड़ रहे थे। पड़ोस के बलोचिस्तान में भी वे भारी संख्या में आ बसे।