आजादी से लेकर आज तक कई बार सत्ता परिवर्तन का दौर चला। हर बार नये नये मुद्दे सामने उभर कर आये जिसमें देश की आम भोली-भाली जनता आज तक उलझती ही रही, सही लोकतंत्र को तलाशती रही । पर इस परिवर्तन की आड़ में जो कुछ मिला है, सभी के सामने है। दूसरी आजादी के नाम सर्वोदयी नेता जयप्रकाश नारायण के नेतृृत्व में छिड़ी जंग में जो नेतृृत्व परिवर्तन हुआ, जिस तरह के लोग नेतृृत्व में उभर कर सामने आये, आम लोगों को कितनी राहत मिल पाई, किस हद तक समस्याएं विकराल होती गई ,पूरा देश भलीभाॅंति परिचित है। इस बदलते माहौल में जातीय ध्रुवीकरण का जो एक नया आयाम हासिल हुआ जिसनें देश की राजनीति कोे छोटे छोटे टुकड़ों में बांट कर राष्ट्रीय राजनीति को अलग - थलग कर दिया है।

आज उसी का यह परिणाम है कि देश में अनेक छोटे - छोटे क्षेत्रीय दल राजनीतिक क्षितिज पर उभर चले है, जिससे यहां राष्ट्रीय दलों में अस्थिरता का ही केवल महौल नहीं बना बल्कि सत्ता पाने की होड़ ने राजनीतिक खरीद फरोक्त का एक नया परिवेश पैदा कर दिया, जिसने राजनीतिक भ्रष्टाचार को पनपाया। इस तरह के परिवेश से जुड़े विकृृत प्रसंगों की यहां बहार सी आ गई, जिससे कोई भी राजनीतिक दल अपने आप को अलग नहीं कर पाया। राज्य से लेकर केन्द्र तक की सत्ता इस तरह के परिवेश के इर्द गिर्द घूमती नजर आ रही है। भ्रष्टाचार को लेकर अन्ना आंदोलन का जो हस्र हुआ सभी के सामने है । अन्ना टीम में प्रमुख भूमिका निभाने वाले अरविन्द केजरीवाल सत्ता पाने के मुख्य लक्ष्य को हासिल कर दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो गए।

गांवों से लेकर संसद तक की राजनीति करने के मुद्दे भी राजनीतिक स्वार्थ के बीच उलझकर प्रायः गौण हो गये है। इस दिशा में पंचायती राज्य के विकृृत उभरते कायाकल्प को आसानी से देखा जा सकता है, जहां भ्रष्टाचार हर कदम पर व्याप्त है। राजनीतिक दलों द्वारा घोषित उम्मीदवारों के स्वरूप को भी देखा जा सकता है जहां आचार विचार को ताख पर रख ऐन - केन प्रकारेण चुनाव जीतने वाले को ही प्रत्याशी यहां बनाने की प्रक्रिया जारी रही है, इस कड़ी में दागी एवं असंतुष्ट प्रतिनिधि भी शामिल है जो कभी इधर से तो कभी उधर से संसद तक पहुंचने में कामयाब हो ही नहीं जाते बल्कि सत्ता बनाने की पृृष्ठभूमि में अग्रणी पंक्ति में नजर आते है।

कालेधन के नाम पर देश में सत्ता परिवर्तन हो गया पर कालेधन के स्रोत अभी तक बंद नहीं हुए। नई आर्थिक नीतियों को लेकर देश में सत्ता परिवर्तन का दौर जारी रहा, जहां विनिवेश के नाम पर देश में लुट जारी रही। इस नीति के तहत नये लोगों को राजगार तो दिया गया नहीं ,कार्य कर रहे लोगों को सरकारी धन का अपव्यय कर स्वैच्छिक सेवा के आधार पर बेरोजगार कर दिया गया।

देश में नये उद्योग तो आये नहीं ,सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के तहत संचालित अनेक बड़े उद्योगों में कुछ बंद हो गये तो कुछ औने पौने दाम पर निजी हाथों को सौंप दिये गये, जिससे देश में बेरोजगारी की समस्याएं गंभीर होती गई। देश में सरकार बदलती रही और तुष्टीकरण की नीति के कारण देश में महंगाई के साथ - साथ अपराध एवं आतंकवाद की समस्याएं भी बढ़ती गई। आजादी के बाद आये राजनीतिक वारिश आज तक स्वहित में केवल मुद्दे ही उभारते रहे, आजादी के सपनों को साकार नहीं कर पााये ।

देश की समस्याएं ज्यो की त्यों है। नये नये मुद्दे जारी हैं। बंदेमातरम को लेकर देश में नई बहस शुरू हो गई है। इस तरह की बहस देश में उभरती समस्याओं के समाधान में बाधक ही साबित हो सकती है। इस तरह के मुद्दे से दूर रहकर ही देश की अस्मिता की रक्षा की जा सकती है। मुद्दों के माध्यम से नहीं संविधान के तहत देश के विरोध कार्य करने वालों को दंड देने का प्रावधान अवश्य होना चाहिए।

देश सर्वोपरि है। इस दिशा में स्वहित में तुष्टिकरण की राजनीति बंद होनी चाहिए । देश में शराब बंद हो, तीन तलाक से राहत मिले, जीवों की रक्षा हो, देश की अधिकांश जनता चाहती है पर इसके लिये नये मुद्दे नहीं उभरने चाहिए जिससे इस तरह की समस्याओं का निदान ही नहीं हो पाये। देश में रोजगार के नये संसाधन आने चाहिए । कालेधन के स्रोत पर लगाम लगनी चाहिए । यह तभी संभव है जब देश को मुद्दों की सस्ती राजनीति से दूर रखा जाय। देश हित में मुद्दों एवं तुष्टिकरण की राजनीति बंद होनी चाहिए। (संवाद)