यहां उपचुनाव इंडियन यूनियम मुस्लिम लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष ई अहमद की मृत्यु के कारण हो रहा था। श्री अहमद यहां के लोकसभा प्रतिनिधि थे। उनकी मौत से खाली हुई सीट से इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के महासचिव पी के कुन्हालकुट्टी चुनाव लड़ रहे थे। उन्होंने यह सीट 1 लाख 71 हजार से भी ज्यादा मतों से जीती।

जीत कुन्हालकुट्टी की ही होगी। इसके बारे में किसी को शक नहीं था। सिर्फ यह देखा जाना था कि जीत का अंतर पिछले चुनाव की जीत के अंतर 1 लाख 94 हजार से पार करता है या नहीं।

इस बार जीत कुछ कम मतों से हुई। इसके बावजूद इस जीत को शानदार कहा जा सकता है। इस जीत के बाद कुन्हालकुट्टी अब दिल्ली की राजनीति में शिरकत करने जा रहे हैं, वैसे उनकी जड़ें केरल की राजनीति में बहुत गहरी जमी हुई हैं।

यदि मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण कुन्हालकुट्टी की ओर होता, तो जीत का अंतर और भी ज्यादा हो सकता था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। तथ्य यह है कि इस बार अनेक छोटी पार्टियों ने अपने उम्मीदवार खड़े ही नहीं किए थे। इसलिए उनके मत या तो यूडीएफ को पड़े या एलडीएफ के पास गए।

इस चुनाव नतीजे का सबसे महत्वपूर्ण पहलु यह रहा कि भारतीय जनता पार्टी अपना प्रदर्शन बेहतर बनाने में विफल रही। पिछले चुनाव में इसे 64 हजार मत मिले थे। इस बार उसे मात्र 900 वोट ज्यादा मिले। भाजपा के नेता उम्मीद कर रहे थे कि उनके पक्ष में हिन्दु मतों का ध्रुवीकरण होगा। लेकिन वैसा हो नहीं पाया।

इसका निष्कर्ष यह है कि हिन्दु मतों के ध्रुवीकरण की जिस कोशिश से भाजपा को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में जबर्दस्त सफलता मिली, वह कोशिश केरल में नाकाम हो गई। भाजपा इस उपचुनाव में अपने मतों को दुगुना करने की उम्मीद पाल रही थी, लेकिन उसकी उम्मीदों पर तुषारपात हो गया। साफ हो गया है कि केरल के धर्मनिरपेक्ष जल पर कमल के सांप्रदायिक फूल खिलने में अभी काफी समय लगेगा।

भारतीय जनता पार्टी का केन्द्रीय और प्रदेश नेतृत्व मलाप्पुरम की विफलता से सदमे में है। इस बार उसे सात फीसदी के करीब मत मिले हैं, जबकि पिछले चुनाव में उसे पौन आठ फीसदी के करीब मत मिले थे। यानी मतों की संख्या 900 बढ़ने के बावजूद मत फीसदी गिर गया।

भाजपा के खराब प्रदर्शन के कारण इसका प्रदेश नेतृत्व केन्द्रीय नेतृत्व के गुस्से का शिकार हो रहा है। भाजपा के खराब प्रदर्शन का एक कारण श्री नारायण धर्म परिपालन योगम का वह आवाहन है, जिसके तहत अपनी अंतरात्मा की आवाज पर वोट देने की अपील की गई थी। यह अपील खुद योगम के महासचिव नतेशन ने की थी। नतेशन भारतीय जनता पार्टी द्वारा की गई वादाखिलाफी से नाराज चल रहे हैं।

सत्तारूढ़ एलडीएफ चुनाव हार गया है, लेकिन फिर भी वह राहत की सांस ले रहा है। इसका एक कारण तो यह है कि उसे इस बार पिछले चुनाव की तुलना में एक लाख वोट ज्यादा मिले हैं। 8 फीसदी मतों का बढ़ जाना कोई छोटी उपलब्धी नहीं हैं। उसके आलोचक कह रहे थे कि उसका मत प्रतिशत इस बार काफी नीचे गिर जाएगा। इस तरह की बात वे कर रहे थे, जिन्हें लग रहा था कि प्रदेश की जनता विजयन सरकार से नाखुश चल रही है और अपनी नाखुशी का इजहार करते हुए अनेक लोग एलडीएफ के खिलाफ मत डालेंगे। लेकिन इस तरह का विश्लेषण और अनुमान गलत साबित हुआ। (संवाद)