इस दिशा में सरकारी नियंत्रण नहीं होने के कारण निजी शिक्षण संस्थानों का एकपैर्टन नहीं रहने से पाठ्य पुस्तकें, ड्रेस एवं फीस को लेकर काफी लूट मची हुई है। पाठ्य पुस्तकें, ड्रेस को लेकर निजी शिक्षण संस्थानों के कैम्पस में अपनी अपनी दुकानें है, जहां अभिभावकों से मनमानी रकम वसूल की जाती है। अभी हाल ही में राजस्थान एवं यू.पी. की सरकार ने निजी शिक्षण संस्थानों में पाठ्य पुस्तकों को सरकारी शिक्षण संस्थानों की तरह एक पैर्टन तय करने , पाठ्यक्रम से जुड़ी काॅपियों पर विद्यालय का नाम न लिखवाने एवं अपने अपने कैम्पस से पाठ्य पुस्तकें, ड्रेस की दुकाने हटाने के अध्यादेश जारी कर व्याप्त गोरखधंधे पर लगाम लगाने की कोशिश तो की है पर जब तक निजी शिक्षण संस्थानों का एकपैर्टन तय नहीं होगा, समस्याएं बनी ही रहेगी । देश भर में संचालित सभी निजी शिक्षण संस्थानों का एक पैर्टन तय कर ही इस दिशा में जारी लूट की प्रक्रिया रोकी जा सकती है । यह अच्छी बात है कि सीबीएसई भी निजी स्कूलों की मनमानी रोकने के लिए सक्रिय हो गया है।

जीवन में शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है। जहां शिक्षा का समुचित विकास प्रचार-प्रसार है वहां के विकसित परिवेश की तस्वीर साफ-साफ नजर आ रही है। इस पैमाने पर विश्व के विकसित देशों के बदलते परिवेश को आसानी से देखा जा सकता है। अमेरिका, जापान, चीन, रूस आदि के विकसित स्वरूप को शिक्षा के पैमाने में झांक कर देखा जाना चाहिए। इसी परिदृश्य में भारत में शिक्षा के वर्तमान हालात पर एक विहंगम दृष्टि डाली जानी चाहिए। जहां शिक्षा का प्रचार-प्रसार मात्र आज दिखावा बनकर रह गया है। शिक्षा पद्धति, पाठ्यक्रम एवं मापदंड के विकृत आंकड़े भारतीय शिक्षा जगत की एक नयी तस्वीर पेश करते जा रहे हैं। जहां शिक्षा के नाम महज धोखा, लूट का गोरखधंधा तेजी से अपना पग पसारता जा रहा है। इस तरह के हालात आने वाली पीढ़ी को शिक्षा का कौनसा पाठ पढ़ा पायेंगे एवं उनके बौद्धिक स्तर को कहां तक पहुंचा पायेंगे, विचारणीय मुद्दा है।

वर्तमान आधुनिकता की इस दौड़ में अर्थ लाभ कमाने के दृष्टिकोण से पनपा शिक्षा का यह व्यवसायिक रूप शिक्षा के वास्तविक स्वरूप एवं उद्देश्य को लीलता जा रहा है। इस दिशा में भारतीय निजी शिक्षण संस्थानों में पाठ्य पुस्तकें, ड्रेस एवं फीस को लेकर भारी लूट मची हुई है। कक्षा 1 से लेकर कक्षा 8 तक देश में जितने विद्यालय निजी क्षेत्र में संचालित हो रहे है, सभी की अलग - अलग पाठ्य पुस्तकें, ड्रेस एवं फीस है। जो हर वर्ष पर बदल दी जाती है। जब कि राजकीय, केन्द्रीय विद्यालयों में एक रूपता देखी जा सकती है। निजी शिक्षण संस्थाओं पर इस दिशा में सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होने से मनमानी देखी जा सकती है। जितना बड़ा नाम , उतनी बड़ी लूट । स्कूल खुलते ही इसका स्वरूप साक्षात् नजर आने लगता है । इसे लेकर आम जन सभी परेेशान है पर मौन है।

शिक्षा के पाठ्यक्रमों की अनदेखी भी जो भारतीय परिवेश में हो रही है, इसका साक्षात उदाहरण विभिन्न तरह की बाजार में उपलब्ध सस्ती पाठ्यपुस्तकें, वनवीक सीरीज एवं गैस पेपर्स आदि के पसरते पांव है। बस्तों के भारी बोझ तले यहां का शिशु नित दिन दबता जा रहा है एवं बौद्धिक स्तर की गुणवत्ता की परख ढीली पड़ती जा रही है। केन्द्र एवं प्रदेश स्तर पर शिक्षा के क्षेत्र में अनेक विद्यालय, महाविद्यालय गली-गली हर रोज खुल रहे हैं। इस परिप्रेक्ष्य में अनेक अमान्य शिक्षण संस्थाएं भी अपना गोरखधंधा चला रही है। आज निजी विश्वविद्यालयों की बाढ भी आ चली है। जिनमें कहीं बच्चों को बैठने की जगह नहीं, पढ़ाने के शिक्षक नहीं, परन्तु मान्यता के क्षेत्र में ऐसे केन्द्र महाविद्यालय का भी रूप धारण किये हुए हैं। सरकारी तौर पर शिक्षा के प्रचार-प्रसार की घोषणाएं इस तरह के संदर्भ में वे बुनियादी सवाल बनकर मात्र दिखावा रह जाती है। जहां खाना-पूर्ति की प्रासंगिकता सर्वोपरि देखी जा सकती है। निश्चित तौर पर इसे छलावा की राजनीति का स्वरूप दिया जा सकता है। इस तरह भारतीय निजी शिक्षण संस्थानो में लूट जारी है !

वर्तमान हालात में शिक्षा के अनेक केन्द्र खोले जाने की दिशा में देश ने काफी तरक्की की है। परन्तु शिक्षित बनाये जाने के मूल्यांकन में जो दिन पर दिन गिरावट आती जा रही है, कभी गंभीरता से विचार नहीं किया। देश में स्नातक एवं स्नातकोत्तर छात्रों की अपार भीड़ देखी जा सकती है, जो अधिकांशतः बेरोजगारी के चैराहे पर रोजगार की तलाश में दिन रात भटक रहे हैं। इनके यदि बौद्धिक स्तर का मूल्यांकन किया जाय तो प्राप्त डिग्रीयां प्रायः बेकार ही साबित होगी। एक स्नातकोत्तर छात्र से सही मायने में ये अपेक्षा की जानी चाहिए कि वह अपने विषय का पूर्ण ज्ञाता होगा। परन्तु वर्तमान शिक्षा प्रणाली के तहत वनवीक सीरीज एवं पास कोर्स के बल पर इस दिशा में ली गई डिग्रीयां छात्र को उस विषय के प्रति अनभिज्ञता जाहिर करती है। इस तरह के स्नातकोत्तर उत्तीर्ण छात्र प्रायः विषय की एबीसीडी भी नहीं जान पाते। यही वास्तविक स्थिति है जिसके कारण वह आवेदन प्रपत्र को भी सही रूप में नहीं भर पाता। इस तरह की डिग्री हासिल करने वाला शिक्षा केन्द्रों का संचालक/निदेशक/शिक्षक बनकर शिक्षा के कौनसे स्वरूप को निर्धारित कर पा रहा है, विचार किया जाना चाहिए।

शिक्षा की गुणवत्ता बनी रहे एवं आम जन पर अनावश्यक रूप से अर्थ भार न पड़े सरकार को निजी शिक्षण संस्थानों में पाठ्य पुस्तकें, ड्रेस एवं फीस को लेकर हो रही भारी लूट एवं मनमानी रवैये पर एक समिति गठित कर रोक लगानी चाहिए। समिति निजी क्षेत्रों में संचालित समस्त शिक्षण संस्थानों की फीस, पाठ््य पुस्तकें एवं ड्रेस की रूप रेखा तय करें जिससे सरकारी शिक्षण संस्थानों की तरह इनमें भी एकरूपता बनी रहें। आज इस दिशा में निजी क्षेत्रों में संचालित समस्त शिक्षण संस्थानों में स्वतंत्रता बनी हुई है। अलग - अलग पाठ्यक्रम, अलग - अलग फीस, अलग - अलग ड्रेस से सभी परेशान है। सरकार को इस दिशा में शीघ्र विचार कर सार्थक पहल करनी चाहिए जिससे इस क्षेत्र में फैले गोरखधंधे को रोका जा सके। (संवाद)