मुख्यमंत्री चौहान अपने ठंढे स्वभाव के कारण जाने जाते हैं। उनका स्वभाव भी बहुत ही शांत और संतुलित रहता है। ऐसे में उनके द्वारा अपने मंत्रियों के खिलाफ इस तरह गुस्सा निकालना हैरत पैदा करता है। मंत्रियों की पार्टी बैठकों में अनुपस्थित रहने के कारण मुख्यमंत्री ने अपना आपा खो दिया।
यह 22 अप्रैल का वाकया है। उस दिन प्रदेश के धार जिले के मोहाखेड़ा में भाजपा की राज्य ईकाई की कार्यसमिति की बैठक हो रही थी। उस बैठक में जो मंत्री उपस्थित नहीं थे, वे मुख्यमंत्री की कटु टिप्पणियों का शिकार हो गए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जो मंत्री बिना पूर्व सूचना के इस बैठक में नहीं आए हैं, उन्हें कार्यकारिणी से इस्तीफा दे देना चाहिए। उन्होंने प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नन्दकुमार सिंह चौहान को कहा कि जिन मंत्रियों ने इस बैठक में हिस्सा नहीं लिया है, उन्हें कार्यकारिणी समिति से बिदा कर दीजिए।
उन्होंने कहा कि हमारे प्रधानमंत्री राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पूरे दो दिनों तक उपस्थित रहे, पर हमारे प्रदेश के कुछ मंत्रियों का प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में उपस्थित होना जरूरी नहीं लगता है। उन्होंने गुस्से में कहा कि कुछ आने के बाद अपनी उपस्थिति दिखाकर यहां से गायब हो जाते हैं।
कार्यकारिणी की उस बैठक में मंत्री गोपाल भार्गव, ओमप्रकाश धुर्वे, विजय शाह, विजय शाह, सुरेन्द्र पटवा, ललिता यादव और सूर्यप्रकाश मीणा अनुपस्थित थे। जयंत मलैया, भूपेन्द्र सिंह और जयभान सिंह पवैया ने संगठन को अपनी अनुपस्थिति की पूर्व सूचना दे दी थी।
कुछ मंत्री पहले दिवस की बैठक में शिरकत कर धार से चले गए। सूत्रों का कहना है कि संगठन के महासचिव सुहास भगत ने शिकायत मुख्यमंत्री से उन मंत्रियों की अनुपस्थिति की शिकायत की थी और उसके बाद ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का गुस्सा सामने आया।
अपने वरिष्ठ कैबिनेट सहयोगियों के खिलाफ अपना गुस्सा निकालने के पहले मुख्यमंत्री वरिष्ठ नौकरशाहों पर भी अपना गुस्सा उतार रहे थे। वे उनकी कार्यशैली पर अपनी नाखुशी जता रहे थे। उनकी शिकायत थी कि नौकरशाह आम आदमी और जन प्रतिनिधियों के साथ सही तरीके से पेश नहीं आते हैं।
उन्होंने कहा कि नौकरशाहों को साम्राज्यवादी मानसिकता से बाहर आना चाहिए। सिविल सेवा का गठन विदेशी अंग्रेजी हुकूमत ने अपने फायदे के लिए किया था, लेकिन आजादी के बाद अब सिविल सेवा लोगों की सेवा के लिए है। 20 अप्रैल को नौकरशाहों की एक बैठक को संबोधित करते हुए उन्होंने अपने ये उद्गार व्यक्त किए थे।
उन्होंने कहा कि सिविल सेवा के अधिकारी समझते हैं कि वे स्थाई हैं, जबकि चुने हुई सरकार के मंत्री तो पांच साल के लिए ही होते हैं। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि यह लोकतंत्र है और लोकतंत्र जनता के लिए जनता के द्वारा जनता का शासन है।
उन्होंने कहा कि लोकसेवक अपनी मर्जी से लोकसेवा में आए हैं। उन्हें किसी ने लोकसेवा में आने के लिए बाध्य नहीं किया है। यदि उन्हें पैसा ही कमाना है, तो वे निजी कंपनियों में नौकरी करें। उन्होंने अधिकारियों के कामकाज के तरीकों पर अनेक सवाल खड़े किए। उन्होंने प्रतिबद्ध अधिकारियों की सराहना भी की।
उन्होंने कहा कि कुछ अधिकारी और विभाग कार्यक्रमों की समीक्षा तक नहीं करते। अधिकारी पत्र जारी करते हैं और कहते हैं कि सिफारिशों को अमली जामा पहना दिया गया है, लेकिन वास्तव में लाभान्वितों तक उसका लाभ पहुंच ही नहीं पाता। उन्होंने लोकसेवकों को सलाह दी कि वे मानवीय निर्णय लें और अपने किताबी ज्ञान का इस्तेमाल न करें।
उन्होंने विभागों को कहा कि वे मिलजुलकर काम करें और एक दूसरे को अपना दुश्मन नहीं समझें, क्योंकि जो काम किया जा रहा है उसका उद्देश्य प्रदेश के साढ़े सात करोड़ लोगों के फायदे के लिए किया जा रहा है।
मंत्रियों और अधिकारियों के खिलाफ मुख्यमंत्री के गुस्से का अलग अलग अर्थ लगाया जा रहा है। मुख्यमंत्री के करीबी सूत्रों के अनुसार अनेक मंत्री मुख्यमंत्री के निर्देशों को नहीं मानते हैं। (संवाद)
भारतः मध्य प्रदेश
अपने कैबिनेट सहयोगियों से खफा हुए चौहान
मध्य प्रदेश में विस्फोट होते ही रहते हैं
एल एस हरदेनिया - 2017-04-25 18:14
भोपालः मध्यप्रदेश में दो बड़े विस्फोट हुए और उनमें लगभग दो दर्जन लोगों की मौत हो गई। उसके बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने ही दो मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ आग उगलना शुरू कर दिया। लेकिन इसके कारण अनेक सवाल अनुत्तरित रह गए हैं।