दोनों के बीच एकता की कोशिश तब शुरू हुई, जब दोनों को लगा कि मिलकर ही वे अपने अस्तित्व को बचा सकते है। पलानीसामी गुट को लगा कि शशिकला और उनका परिवार उन पर बोझ साबित हो रहा हैं। मंत्री विजयभाष्कर के घर पर आयकर विभाग का छापा पड़ा था। शशिकला के भतीजे दिनकरण पर आरोप लगा कि आरके नगर विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव पर वे वोट खरीद रहे थे। उन पर यह भी आरोप लगा कि वे निर्वाचन आयोग क अधिकारियों को घूस देने की कोशिश कर रहे थे, ताकि शशिकला कैंप को दो पत्तियों वाला चुनाव चिन्ह मिल जाए। इन तीनों खबरों से सत्तारूढ़ गुट को बहुत बदनामी का सामना करना पड़ रहा था।

इसके अलावा पलानिसामी को यह भी डर था कि जिस तरह पनीरसेल्वम को हटाकर शशिकला खुद मुख्यमंत्री बन रही थीं, उसी तरह उनको हटाकर दिनकरण खुद मुख्यमंत्री बनने की कोशिश कर सकते हैं। इसलिए उनसे अपनी कुर्सी बचाने के लिए उनको परिवार सहित पार्टी से बाहर करने में ही मुख्यमंत्री ने अपनी भलाई देखी।

दिनकरण, शशिकला और उनके परिवार को पार्टी से बाहर करने के लिए दोनों गुटों के बीच एकता स्थापित करने का बहाना बनाया गया। पनीरसेल्वम कह ही रहे थे कि एकता कि बातचीत तभी हो सकती है, जब शशिकला और उनके परिवार को पार्टी से बाहर किया जाय। इस तरह मुख्यमंत्री को एक आधार मिल गया और उन्होंने बिना समय गंवाए शशिकला को पूरे परिवार के साथ पार्टी से बाहर कर दिया।

शशिकला अभी जेल में हैं, इसलिए वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकतीं। उनका भतीजा गिरफ्तारी का सामना कर रहा है, इसलिए वह अभी उस गिरफ्तारी से बचना चाहेंगे न कि गुटीय झगड़े में उलझना चाहेंगे। यही कारण है कि दोनों में से किसी ने भी उनको पार्टी से बाहर किए जाने का विरोध नहीं किया। इसे समर्पण मानना गलत होगा। दरअसल दोनों ने एक रणनीति के तहत ऐसा किया है।

एकता के नाम पर मुख्यमंत्री ने शशिकला और उनके परिवार को पार्टी से बाहर तो कर दिया है, लेकिन अब वह एकता के लिए त्याग नहीं करना चाहते। इस बात को लेकर खींचतान हो रही है कि एकता के बाद प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन होगा। पनीरसेल्वम मुख्यमंत्री का पद भी चाहते हैं और पार्टी का प्रमुख भी बनना चाहते हैं, जबकि पलानीसामी मुख्यमंत्री का पद छोड़ने के पक्ष में नहीं हैं। किन शर्ताें पर समझौता होता है, इसका पता तो बाद में लगेगा, लेकिन फिलहाल एकता के लिए एक समिति बन गइ्र्र है।

दोनों में मुख्यमंत्री चाहे जो बनें, लेकिन सच्चाई यह है कि न तो पलानीसामी और न ही पनीरसेल्ववम करिश्माई नेता हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण किसानों का चल रह आंदोलन है। 40 दिनों तक तमिलनाडु के किसान दिल्ली में जंतर मंतर पर धरना देते रहे, लेकिन उनकी समस्या को सुलझाने में वर्तमान मुख्यमंत्री सफल नहीं हुए और न ही पनीरसेल्वम ने आंदोलनकारियों के लिए कुछ किया।

हां पनीरसेल्वम ने जलकट्टू के मामले में जरूर तत्परता दिखाई थी और उस संवेदनशील मसले को सुलझाया था। लेकिन वैसा वे इसलिए कर पाए थे, क्योंकि उन्हें केन्द्र का समर्थन हासिल था। वे पहले भी दो बार जयललिता की अनुपस्थिति में प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। तब भी उन्होंने वैसा कुछ नहीं किया था, जिससे लगे कि उनमें कोई प्रशासनिक क्षमता हो।

भारतीय जनता पार्टी चाहती है कि दोनों गुट आपस में मिल जाय, क्योंकि जब दोनों मिले रहेंगे, तो उनके साथ काम करना आसान हो जाएगा। इस समय भाजपा की असली समस्या अन्नाडीएमके के सांसदों और विधायकों का मत राष्ट्रपति चुनाव में हासिल करना है। वह इसी को ध्यान में रखकर वहां की राजनीति को प्रभावित कर रही है।

एकता तो होगी, लेकिन क्या वह बनी रह पाएगी? लाख टके का सवाल यही है। (सवाद)