आम आदमी पार्टी को 54 फीसदी वोट उस स्थिति में मिले थे, जब दिल्ली के 68 प्रतिशत मतदाताओं ने 2015 के विधानसभा चुनाव में वोट डाले थे। जाहिर है, उस चुनाव में ऐसे मतदाता भी भारी संख्या में मतदान केन्द्रों पर पहुंचे थे, जो आमतौर पर मतदान करते ही नहीं। पर आम आदमी पार्टी की सरकार बनाने के लिए वे मतदान केन्द्रों पर उमड़ पड़े थे। इस बार वैसे मतदाता अपने घरों और अपने काम तक ही सीमित रहे और मत डालने की जरूरत ही नहीं समझी। इसका कारण यह है कि आम आदमी पार्टी के साथ उनका जुड़ाव समाप्त हो गया है।

भारतीय जनता पार्टी का मत प्रतिशत 32 से बढ़कर 36 इसलिए हो गया, क्योंकि इस बार कम मतदाताओं ने वोट डाला। यदि इस बार भी मत प्रतिशत 68 होता, तो ज्यादा संभावना है कि भाजपा के मत प्रतिशत 32 से ज्यादा नहीं होते। कहने का मतलब कि भारतीय जनता पार्टी की जीत कोई अपने कारणों से नहीं हुई, बल्कि उसकी जीत इसलिए हुई कि आम आदमी पार्टी के समर्थक मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग वोट देने ही नहीं आया और उसका एक हिस्सा कांग्रेस व अन्य भाजपा विरोधी उम्मीदवारों की ओर झुक गया।

इसके कारण कांग्रेस पार्टी का मत प्रतिशत पिछले विधानसभा चुनाव के 9 प्रतिशत से बढ़कर 21 हो गया व अन्य को मिला 3 प्रतिशत बढ़कर 17 हो गया। वोटों के भारी बंटवारे और छितराव के कारण ही आम आदमी पार्टी की हार हुई न कि भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में बहे किसी बयार के कारण यह चुनावी नतीजा सामने आया है।

पर सवाल उठता है कि आखिरकार दिल्ली में आम आदमी पार्टी की यह फजीहत हुई क्यों? मतदाता उनके प्रति निराश क्यों हुए? यह तो सच है कि पिछले विधानसभा चुनाव में मिले 54 फीसदी के स्तर को बरकरार रखना असंभव था, लेकिन फिर भी मतों की इतनी क्षति यह बताती है कि आम आदमी पार्टी ने जितनी तेजी से लोगों का विश्वास पाया, उतनी ही तेजी से वह लोगों का विश्वास खोती जा रही है।

यह भी नहीं कहा जा सकता कि आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार ने लोगों के लिए काम नहीं किया। सच तो यह है कि यह सरकार देश के किसी भी अन्य राज्य सरकार से बेहतर काम कर रही है। भ्रष्टाचार के आंदोलन से यह पार्टी बनी थी और इसके भ्रष्टाचार को कम करने में सफलता पाई है। बिजली बोर्ड में भ्रष्टाचार बहुत कम हो गया है। दिल्ली जल बोर्ड का भ्रष्टाचार लगभग समाप्त हो गया है। जल माफिया अब लगभग समाप्त हो गए हैं। एक समय था जब पानी के कनेक्शन धारकांे को पानी तो मिलता नहीं था, लेकिन पानी के बिल जरूर आ जाते थे। उन्हे जब बोर्ड द्वारा भेजा गया बिल भी अदा करना पड़ता था और अपने जल की जरूरतों को पूरा करने के लिए जल माफिया से पानी मंहगी कीमतों पर खरीदना पड़ता था। पर अब 20 हजार लीटर प्रति महीने पानी की खपत करने वाले परिवारों को बिल अदा नहीं करना पड़ता और पानी भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।

हजारों परिवारों का जल बोर्ड से विवाद चल रहा था। उन सारे विवादों को समाप्त कर दिया गया और वैसा करने के लिए केजरीवाल सरकार ने पानी के सारे एरियर ही समाप्त कर दिए। विवाद एरियर को लेकर ही था। जाहिर है, इसके कारण लाखों लोगों को लाभ हुआ। बिजली और जल बोर्ड ही नहीं, अनेक महकमों में भ्रष्टाचार का स्तर काफी गिर गया। निजी स्कूलों की मनमानी भी कम हो गई और जनस्वास्थ्य का स्तर भी सुधर गया था।

दिल्ली पुलिस दिल्ली सरकार के अंतर्गत नहीं है, लेकिन केजरीवाल के डर से पुलिस में भी भ्रष्टाचार कम हुए थे। आॅटो वालों से पुलिस द्वारा की जा रही उगाही पूरी बंद हो गई थी, हालांकि केजरीवाल सरकार को केन्द्र द्वारा कमजोर किए जाने के बाद दिल्ली पुलिस फिर उगाही करने लगी थी। रेहड़ी पटरी वाले भी दिल्ली पुलिस के भ्रष्टाचार से कुछ समय तक मुक्त रहे थे।

केजरीवाल सरकार को एक सफल सरकार कहा जा सकता है, लेकिन दिल्ली में तीन सरकार है। एक केन्द्र की सरकार, दूसरी प्रदेश की सरकार और तीसरी नगरनिगम की सरकार। केन्द्र और नगरनिगम की सरकारों के भ्रष्टाचार तो बदस्तूर जारी थे, लेकिन लगता है कि दिल्ली की जनता ने उसके लिए भी केजरीवाल की सरकार को ही जिम्मेदार मान लिया।

अच्छे प्रदर्शन के बावजूद यदि आम आदमी पार्टी बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई, तो इसका कारण पार्टी की कमजोरी हो सकती है। चुनाव तो आखिरकार पार्टी ही लड़ती है, सरकार नहीं लड़ती। सरकार की उपलब्धियों को जनता तक पहुंचाना भी पार्टी का ही काम होता है और अपने समर्थकों को ज्यादा से ज्यादा बूथ तक लाने के लिए प्रचार का जिम्मा भ पार्टी का ही होता है। लेकिन पार्टी का लोगों के साथ संवाद घटता जा रहा है। यही नहीं पार्टी कार्यकत्र्ताओं के साथ नेताओं का संवाद भी घटा है। बीच बीच में पार्टी को सक्रिय बनाए रखने के लिए भी ज्यादा कुछ नहीं किया गया। इसके कारण पार्टी कार्यकत्र्ता कम और कमजोर होते गए। जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा।

और अब आम आदमी पार्टी की हार का खामियाजा दिल्ली की जनता को भी भुगतना पड़ सकता है, क्योंकि उसकी हार से भ्रष्टाचारी तत्व सक्रिय हो सकते हैं। इसमें दो मत नहीं कि अब दिल्ली में भ्रष्टाचार को बोलबाला बढ़ जाएगा। (संवाद)