पिछले 50 साल से माओवाद और नक्सलवाद की समस्या से हमारा देश जूझ रहा है, लेकिन अभी तक कोई नीति ही नहीं बनाई जा सकी है, जिसके द्वारा हम इस समस्या को हल करने की दिशा में आगे बढ़ सकें। शिवराज पाटिल जब केन्द्र सरकार में गृहमंत्री थे, तो उन्होंने माओवादियों को अपना भाई और बहन कहा था। माओवादियों ने इसका भरपूर फायदा उठाया और उस दौरान अपनी शक्ति में भारी इजाफा किया।

2006 में एक 14 सूत्री नीति बनाई गई, जिसमें समस्या को एक साथ ही राजनैतिक, विकास और सुरक्षा के नजरिए से हल करने की बात की गई। लेकिन उस नीति को कभी भी जमीन पर नहीं उतारा गया।

पाटिल के बाद देश के गृहमंत्री बने पी चिदंबरम ने अपनी रणनीति को तीन शब्दों में व्यक्त किया। वे शब्द थे- क्लियर, होल्ड औ डेवलप। यानी पहले माओवादियों को साफ करो, उसके बाद उस इलाके को अपने कब्जे में बनाए रखे और फिर उसका विकास करो।

पी चिदंबरम ने इलाकों से माओवादियों को साफ करने के लिए भारी पैमाने पर केन्द्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती करा दी। उनके उस रवैये को कांग्रेस के अंदर ही पूरा सहयोग नहीं मिला। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने चिदंबरम की उस रणनीति की आलोचना की। इसके कारण सुरक्षा बल भी अनिर्णय के शिकार हो गए। उन्हें पता ही नहीं चला कि उन्हें करना क्या है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त 2014 में लाल किले से बोलते हुए माओवादियों को नेपाल से सीख लेने की अपील की और कहा कि जिस तरह से नेपाल के माओवादी लोकतांत्रिक धारा में शामिल हो गए हैं, उसी तरह वे भी लोकतांत्रिक धारा में शामिल हो जाएं। 2015 में दांतेवाड़ा में मोदी ने कहा कि कंधे पर हल रखकर विकास किया जा सकता है, हाथ में बंदूक रखकर नहीं। प्रधानमंत्री का यह वक्तव्य जबर्दस्त था, लेकिन गुहमंत्रालय ने इसके लिए कोई रणनीति तैयार नहीं की।

केन्द्र सरकार की ओर से किसी स्पष्ट नीति के अभाव में प्रदेश सरकार भी कोई नीति तैयार नहीं कर पाती और वह हवा में तलवारें भांजने का ही काम कर रही है।

छत्तीसगढ़ सरकार का रिकाॅर्ड माओवादियांे को लेकर बहुत ही खराब रहा है। देश में सबसे ज्यादा माओवादी हिंसा इसी प्रदेश में हो रही है। केन्द्रीय बलों की जितनी सहायता इसे करनी चाहिए थी, उतनी सहायता यह नहीं कर पा रही है। सुकमा में केन्द्रीय बल के 25 जवान मारे गए, लेकिन प्रदेश पुलिस के कितने जवाब घायल हुए, इसके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है। या तो वे वहां थे ही नहीं या बहुत ही कम संख्या में थे।

कहा जा रहा है कि 300 माओवादियों ने केन्द्रीय सुरक्षा बल पर हमला किया था। जाहिर है, वे एक ही दिन में तो वहां नहीं पहुंचे होंगे। कम से कम दो दिनों से वे वहां होंगे, लेकिन स्थानीय प्रशासन और खुफिया तंत्र को इसकी कोई जानकारी नहीं थी। क्या यह गलती माफ करने लायक है?

सुरक्षा बलों के जवानों ने भी गलती कर डाली थी। वे सभी एक जगह पर ही इकट्ठे हो गए थे और एक साथ ही लंच कर रहे थे। इसके कारण ही उनको भारी नुकसान हुआ। लगता है कि वहां उपस्थित बलों को सही प्रशिक्षण नहीं दिया गया था।

मार्च महीने के दूसरे सप्ताह में भी सुरक्षा बलों पर हमला हुआ था, जिसमें अनेक जवान मारे गए थे, लेकिन उससे सीख नहीं ली गई और फिर 25 जवान एक नये हमले का शिकार हो गए। (संवाद)