पिछले साल के अगस्त महीने से सोनिया गांधी का स्वास्थ्य कुछ ज्यादा ही खराब चल रहा है। इसके कारण वह बहुत ज्यादा सक्रियता नहीं दिखा रही हैं। पर पिछले महीने अमेरिका से अपनी जांच करवाने के बाद जब से वह लौटी हैं, लगातार सक्रियता दिखा रही हैं। वह पार्टी का कामकाज ही नहीं देख रही हैं, बल्कि विपक्षी एकता में भी दिलचस्पी दिखा रही हैं। पार्टी के अंदर व्याप्त असंतोष के कारण सोनिया को केन्द्रीय भूमिका में आना पड़ रहा है।
कांग्रेस पार्टी के अंदर कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के बाद उसे निराशा हाथ लगी। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भारी हार का सामना करने के बाद पंजाब की जीत से वह खुश हो सकती थी, लेकिन मणिपुर और गोवा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बाद भी उन दोनों राज्यों में अपनी सरकार न बना पाने के कारण कांग्रेस के नेतृत्व पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि विपक्ष को एक मजबूत नेता चाहिए, जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सामना कर सके, क्योंकि मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी एक के बाद एक चुनावी विजय हासिल करती जा रही है। कांग्रेस के अनेक बड़े नेता पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो रहे हैं। राहुल गांधी इस पर रोक लगाने में विफल साबित हो रहे हैं।
जो नेता कांग्रेस के अंदर भी हैं, वे पार्टी में दिलचस्पी खोते जा रहे हैं। पी चिदंबरम, कपिल सिबल और सलमान खुर्शीद जैसे नेता अब अपने वकालत के पेशे में वापस लौट चुके हैं। शीला दीक्षित, अम्बिका सोनी और जनार्दन द्विवेदी जैसे नेता गुस्से में हैं। सामूहिक नेतृत्व की बात की जा रही है, लेकिन सोनिया इसके लिए तैयार नहीं हैं।
पार्टी के अंदर नेतृत्व का भारी संकट है, क्योंकि राहुल गांधी उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे हैं। उनके नेतृत्व में पार्टी ने लोगों से अपना संबंध विच्छेद कर दिया है। ऐसे लोगों को पार्टी में जिम्मेदारी दी गई है, जो न तो अतीत को जानते हैं और न ही भविष्य को समझने की क्षमता रखते हैं। नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी के द्वारा गरीब लोगों को अपने पक्ष में कर लिया है।
कांग्रेस विपक्ष का नेतृत्व करने में भी अपने आपको विफल पा रही है। राहुल गांधी पर विपक्ष का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी है, लेकिन वे अपनी इस जिम्मेदारी को पूरा करने में विफल हैं। यही कारण है कि अब सोनिया गांधी को खुद सामने आना पड़ रहा है। अब विपक्षी पार्टियों को लामबंद करने की पहल सोनिया कर रही हैं। सबसे पहली चुनौती तो राष्ट्रपति चुनाव से संबंधित है। उसमें विपक्ष को एक साझा उम्मीदवार देने हैं। इसके लिए सोनिया गांधी ने विपक्ष के अनेक नेताओं से बातचीत की है।
लेकिन कांग्रेस विपक्ष का नेतृत्व करे, इसके पहले यह जरूरी है कि वह अपने आपको दुरुस्त रखे। सबसे पहला मसला नेतृत्व का है। राहुल गांधी पार्टी को नेतृत्व देने में विफल रहे हैं। इसलिए सोनिया गांधी उन्हें कुछ और समय देना चाहती हैं, क्योंकि वह यह मानने को तैयार नहीं हैं कि राहुल के पास क्षमता नहीं है। (संवाद)
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कांग्रेस संगठन में जान फूंकना आसान नहीं
सोनिया को अपने पद पर बने रहना होगा
कल्याणी शंकर - 2017-05-03 09:00
क्या सोनिया गांधी एक बार फिर अपनी पार्टी के मुख्य मोर्चे पर आ गई हैं? 2013 में राहुल गांधी को कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाने के बाद वह पृष्ठभूमि में चली गई थीं और पार्टी के निर्णय लेने का जिम्मा राहुल के ऊपर आ गया था। पर अब पार्टी के अंदर कोई भी राहुल को अध्यक्ष बनाने की बात नहीं कर रहा है, क्योंकि पार्टी में हौसलापस्ती का माहौल है। पार्टी के अंदर राहुल के खिलाफ असंतोष बढ़ता जा रहा है। पुराने और नये लोगों के बीच की लड़ाई भी जारी है।