लेकिन समय बीतने के साथ साथ यह भी साफ दिखाई दे रहा है कि योगी की घोषणाएं सिर्फ घोषणाएं ही हैं। पहले की घोषणाओं का कुछ नतीजा आया नहीं कि एक और घोषणा कर दी जाती है। यह नहीं बताया जाता कि पहले की घोषणाओं पर काम हो भी रहा है या नहीं और यदि उन पर कुछ काम हो रहा है, तो प्रगति का स्तर क्या है। बस, एक और नई घोषणा। उन घोषणाओं की डुगडुगी पीटने के लिए इलेक्ट्रानिक मीडिया पूरी तरह से तैयार रहते हैं और वे एक प्रकार का झूठा भ्रम फैलाने का काम कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी समस्या कानून और व्यवस्था की समस्या है। यहां अपराध भारी पैमाने पर होते हैं। प्रदेश भी बहुत बड़ा है, इसलिए किसी भी मुख्यमंत्री के लिए यह आसान काम नहीं है कि प्रशासन पर पकड़ रखते हुए वह सभी अपराधों पर काबू पा ले। लेकिन उस दिशा में कोशिश तो होनी चाहिए, लेकिन योगी सरकार कानून व्यवस्था के मोर्चे पर पूरी तरह विफल रही है और उसमें सुधार लाने के लिए नई सरकार के पास क्या योजनाएं हैं, इसका भी पता नहीं चल पा रहा है। सिर्फ मुख्यमंत्री की तरह से कुछ घोषणाएं हो जाती हैं।
कानून व्यवस्था को ठीक करने के लिए पुलिस के मनोबल को ऊंचा रखना होगा। मायावती और अखिलेश सरकार के कार्यकालों के दौरान पुलिस महकमों का भी राजनैतिककरण हो गया। उस राजनैतिकरण ने पुलिस, राजनीतिज्ञ और अपराधी गठजोड़ को बढ़ावा दिया। उस गठजोड़ को कैसे तोड़ा जाय, इसका कोई उपाय योगी सरकार नहीं कर रही है। उलटे देखा जा रहा है कि पुलिस के मनोबल को तोड़ने का लगातार काम किया जा रहा है।
योगी सरकार बनते ही सबसे पहले तो भारतीय जनता पार्टी के कार्यकत्र्ताओं द्वारा पुलिस के जवानों और अधिकारियों की पिटाई की घटनाएं प्रकाश में आने लगीं। सोशल मीडिया पर अनेक विडियो दिखाई पड़ने लगे, जिसमें पुलिस की पिटाई हो रही थी और पीटने वाले कथित तौर पर भारतीय जनता पार्टी या उससे जुडे़ संगठनों के लोग बताए जा रहे थे। एक तरफ योगी की जयजयकार हो रही थी और उन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भारतीय जनता पार्टी में विकल्प के रूप में पेश किया जा रहा था, दूसरी ओर योगी की पुलिस की ऐसी तैसी हो रही थी।
जब पुलिस का मनोबल ही तोड़ दिया जाय, तो फिर कानून व्यवस्था की स्थिति बेहतर कैसे हो सकती है। लिहाजा, उत्तर प्रदेश में अपराधियों का बोलबाला लगातार बढ़ता जा रहा है। अपराध के सरकारी आंकड़े आने में देर लगती है, इसलिए उनका तो अभी इंतजार करना होगा, लेकिन बिगड़ती हालत और बढ़ते अपराध की घटनाओं को देखते हुए कहा जा सकता है कि यहां स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।
सहारनपुर की 15 दिनों मंे घटी तीन घटनाएं योगी सरकार की अपराध के खिलाफ प्रतिबद्धता की पोल खोल देती हैं। पहली घटना अप्रैल महीने के तीसरे सप्ताह की है। अंबेडकर की शोभा यात्रा बिना प्रशासन की इजाजत लिए भारतीय जनता पार्टी के लोग मुस्लिम बस्तियों से निकाल रहे थे। मुसलमानों ने विरोध किया और पुलिस ने यात्रा निकालने पर रोक लगा दी। फिर तो भाजपा के सांसद के नेतृत्व में आतताइयों ने पुलिस अधिक्षक के घर पर ही हमला कर दिया। दंगे तो हुए ही, पुलिस वालों की भी ऐसी तैसी हुई। मुख्य घोषणा मंत्री आदित्यनाथ योगी ने उस भाजपा सांसद के खिलाफ कार्रवाई करने के बदले पुलिस अधीक्षक को ही वहां से हटा दिया।
फिर राणा प्रताप की शोभा यात्रा के दौरान उसी जिले में दंगे हुए। यह दंगा ठाकुरों और दलितों के बीच हुआ। एक ठाकुर मारा गया और दर्जनों दलित घायल हुए। दलितों के करीब 50 घर फूंक दिए गए। उस घटना के बाद पुलिस ने एकतरफा कार्रवाई की, जिसके कारण दलितों का रोष बढ़ा। उनकी शिकायत थी कि उनके घरों को जलाए जाने के एवज में प्रशासन की ओर से उन्हें मुआवजा नहीं मिला और उनके घरों को जिन्होंने जलाए थे, उनके खिलाफ पुलिस कार्रवाई नहीं कर रही है।
दलितों के साथ हुई ज्यादती के खिलाफ भीम आर्मी ने एक महापंचायत का आयोजन करने की घोषणा कर दी। उस पंचायत को भी प्रशासन ने इजाजत नहीं दी। उसके बावजूद लोग इकट्ठे हुए और पुलिस द्वारा उन्हें तितर बितर किए जाने के बाद दंगे शुरू हो गये। लोगों की संपत्तियों को तो क्षति हुई ही, पुलिस पर भी हमले हुए। अनेक जगहों पर तो पुलिस वालों को खदेड़ खदेड़ कर पीटा गया। दर्जनों गाड़ियों को जला दिया गया। सड़क पर जो कोई दिखाई पड़े भीम आर्मी वालों ने उनकी पिटाई की।
अब यह बात सामने आ रही है कि पुलिस ने गोली चलाने के प्रशासन के निर्देश को मानने से इनकार कर दिया। उसके कारण कुछ पुलिस अधिकारियों के तबादले भी कर दिए गए हैं। जाहिर है प्रदेश में प्रशासन और पुलिस के बीच का संबंध भी खराब हो रहा है और दोनों के बीच का तालमेल गड़बड़ा रहा है। पुलिस के मनोबल को गिराने का यह सहज परिणाम है।
सहारनपुर तो एक मिसाल है। पूरे प्रदेश में पुलिस बल का मनोबल गिरा हुआ है। देवरिया में तो एक आइपीएस महिला अधिकारी सार्वजनिक रूप से रोती दिखाई पड़ीं, क्योंकि भाजपा के एक विधायक ने कड़े शब्दों मे उसे डांट दिया था। जाहिर है, मीडिया द्वारा अपनी अच्छी छवि बनाने में लगे योगी जी के उत्तर प्रदेश की छवि खराब हो रही है। (संवाद)
उत्तर प्रदेश में योगीराज: बातें अधिक काम कम
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-05-12 16:52
आदित्यनाथ योगी के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने अभी दो महीने भी नहीं हुए हैं। जाहिर है, इतने कम समय में किसी सरकार के बारे में किसी प्रकार की टिप्पणी करना बहुत उचित नहीं होगा, लेकिन एक कहावत है, ‘होनहार बिरवां के होत चिकने पात’। यदि इस कहावत की कसौटी पर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को कसा जाय, तो हम यही कह सकते हैं कि इस सरकार से हम बेहतर भविष्य की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। मुख्यमंत्री बनते के साथ ही योगी ने एक के बाद एक लोकप्रिय घोषणाओं की झड़ी लगा दी। ऐसे ऐसे बयान दिए, जो सुनने में अच्छे लगते थे। चूंकि पिछली मायावती और अखिलेश की सरकारों से तंग आकर ही प्रदेश की जनता ने भारतीय जनता पार्टी को रिकाॅर्ड बहुमत दिया थाा, इसलिए उनके कार्यकालों के दौरान हुए घपलों की जांच की घोषणाएं भी लोगों को अच्छी लगीं और उनकी उम्मीद जगी कि योगी राज में कुछ बेहतर होगा।