इसलिए सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी की नेता के रूप में सोनिया गांधी को विपक्षी एकता को मजबूत करने के लिए अपनी सक्रियता और बढ़ानी होगी। जो पार्टियां उनके कदम का समर्थन कर रही हैं, उनका विश्वास उन्हें बनाए रखना होगा और जो भाजपा विरोधी पार्टी अभी कांग्रेस के साथ नहीं दिखना चाहती हैं, उसे भी अपने पाले में लाना होगा। उसके बाद ही विपक्ष भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार को हराने की सोच सकता है।
काम जटिल है और सोनिया से उम्मीद की जाती है कि वे चचीलापन दिखाते हुए अन्य पार्टियों को भी तरजीह दें। उन्हें बिहार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पश्चिम बंगाल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, सीपीएम नेता सीताराम येचुरी और सीपीआई के नेता डी राजा को विपक्षी एकता के मुहिम में लगातार शामिल रखना होगा।
इस समय भाजपा नेतृत्व राष्ट्रपति चुनाव में अपनी जीत के प्रति पूरी तरह आश्वस्त नहीं है। प्रणब मुखर्जी दूसरे कार्यकाल के लिए तभी तैयार हो सकते हैं, यदि वे निर्विरोध राष्ट्रपति का चुनाव जीतें। यदि ऐसा होता है तो फिर ध्यान उपराष्ट्रपति के चुनाव पर जाएगा। पर भाजपा को अपनी पसंद के राष्ट्रपति के चुनाव में किसी प्रकार की दिक्कत नहीं आनी चाहिए।
राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष को अपने राष्ट्रपति की जीत सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। यह तभी संभव होगा जब भाजपा कैंप से बाहर की सभी पार्टियों को एकजुट रखा जाय। बीजू जनता दल और आॅल इंडिया अन्ना डीएमके को अपने साथ लाना होगा। इसके अलावा शिवसेना जैसी कुछ एनडीए पार्टियों को भी अपने उम्मीदवार के समर्थन में खड़ा करना होगा।
राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव के बाद गुजरात और हिमाचल प्रदेश की विधानसभाओं के चुनाव होंगे। उन दोनों राज्यों के चुनाव बहुत महत्वपूर्ण होंगे, क्योंकि उनके नतीजे आने वाले दो वर्षो में होने वाले चुनावों के लिए मूड तैयार करने वाले साबित होंगे।
हिमाचल प्रदेश में इस समय कांग्रेस की वीरभद्र सिंह सरकार है। उस पर चैतरफा हमला हो रहा है। भारतीय जनता पार्टी को लगता है कि वहां उसकी जीत हो ही जाएगी, क्योंकि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भ्रष्टाचार के मामलों में सीबीआई जांच का सामना कर रहे हैं। उसका फायदा भाजपा को मिल सकता है।
कांग्रेस को हिमाचल प्रदेश में अपनी जीत के लिए अपनी रणनीति को नये तरीके से तैयार करना होगा। उसे प्रदेश की छोटी पार्टियों के साथ समझौता करना होगा। वहां बहुजन समाज पार्टी, सीपीआई और सीपीएम जैसी छोटी पार्टियां भी हैं, जिनके साथ सीटों का तालमेल कर कांग्रेस फायदे में रह सकती है। भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में यह रणनीति अपनाई थी और इसमें वह सफल भी रही।
कांग्रेस को अपने जनाधार से बाहर अपनी अपील को विस्तार देना होगा। भाजपा के खिलाफ गैर हिन्दुत्वादी ताकतों की पूर्ण एकता होनी चाहिए। यदि कांग्रेस ने गुजरात और हिमाचल प्रदेश में गैर भाजपाई क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन नहीं किया, तो पार्टी को अपनी स्थिति मजबूत करने की संभावना नहीं है।
गुजरात में भाजपा के शासन के खिलाफ लोगों में गुस्सा है। भाजपा भी गुटबाजी की शिकार है। लेकिन उसका फायदा अबतक कांग्रेस नहीं उठा सकी है। पिछले कुछ दिनों मंे राहुल गांधी ने युवा कांग्रेसियों में कुछ उत्साह भरा है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के कार्यकत्र्ता ज्यादा सशक्त हैं और आरएसएस की शाखाएं भी सक्रिय हैं। यही कारण है कि कांग्रेस को अपनी पार्टी से बाहर भी देखना होगा और भाजपा विरोधी गुजरात की शक्तियों के साथ तालमेल बैठाना पड़ेगा। इसके लिए उसे त्याग भी करना होगा और उसके लिए उदारता अपनानी होगी। (संवाद)
सोनिया को कार्यक्रम आधारित नेतृत्व विपक्ष को देना चाहिए
कांग्रेस को छोटी पार्टियों के प्रति ज्यादा उदार बनना पड़ेगा
नित्य चक्रबर्ती - 2017-05-13 12:58 UTC
पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी विपक्षी पार्टियों के नेताओं से लगातार मुलाकात कर रही हैं और उनसे राष्ट्रपति चुनाव की रणनीति पर चर्चा कर रही हैं। चुनाव जुलाई में होगा और भारतीय जनता पार्टी भी एनडीए क बाहर की पार्टियों के साथ संपर्क में है और उसने जगनमोहन की पार्टी का समर्थन भी अपने उम्मीदार के लिए हासिल कर लिया है।