इन छापों के पहले सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में रांची के हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती दे डाली थी। उस फैसले के कारण चारा घोटाले में लालू के खिलाफ चल रह चार मुकदमों पर विराम लग गया था। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि एक ही तरह के सबूत और मामलों के को लेकर एक से ज्यादा मुकदमे नहीं चलाए जा सकते।

हाई कोर्ट का वह फैसला 2014 में ही आया था और उसके बाद लालू यादव राहत की सांस ले रहे थे, क्योंकि एक मुकदमे में सजा पाने के बाद वे जमानत पर रहते हुए अपनी राजनीति कर रहे थे और अगले मुकदमे का डर समाप्त हो गया था। लेकिन एकाएक सीबीआई को लगा कि झारखंड के फैसले को चुनौती दी जा सकती है और उन्होंने चुनौती दे डाली। पर इसके पीछे निश्चय रूप से राजनीति थी।

सच तो यह है कि मोदी सरकार के खिलाफ लालू यादव की आवाज आज सबसे ऊंची है। बिहार में महागठबंधन बनाकर वे भारतीय जनता पार्टी को पराजित कर चुके हैं और उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत के बाद वे न केवल ईवीएम के खिलाफ बोल रहे हैं, बल्कि वे भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ देश भर में एक महागठबंधन बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं।

यही कारण है कि नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी के लिए लालू से ज्यादा खतरनाक नेता आज शायद कोई नहीं हैं। पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा बंद मुकदमों को एक बार फिर शुरू कर दिए जाने के बाद लालू यादव का काम कठिन हो गया है। अब यदि उन्हें अगले मुकदमों में भी सजा सुनाई जाती है तो एक बार फिर उन्हें जेल जाना होगा। हालांकि जेल जाने के बाद जमानत पाने का एक विकल्प उनके सामने रहेगा, पर जमानत मिलेगी या नहीं, यह कोर्ट की के फैसले पर निर्भर करेगा।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने लालू के खिलाफ अपना अभियान और भी तेज कर दिया। सबसे महत्वपूर्ण सुशील मोदी का वह बयान था, जिसमें उन्होंने नीतीश कुमार को लालू से अलग हो जाने को कहा था। उन्होंने यह भी वायदा कर डाला था कि यदि नीतीश लालू से अलग होते हैं, तो उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी उनको समर्थन देकर उनकी सरकार बचा लेगी। गौरतलब हो कि जनता दल (यू) के पास विधानसभा में 71 विधायक हैं और भारतीय जनता पार्टी के विधायकों की संख्या 53 है। दोनों को मिलाकर 124 विधायक होते हैं, जबकि विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 122 है।

एक बात और गौर करने लायक है। लालू के खिलाफ अभियान उस समय तेज हुआ, जब नीतीश के साथ उनके संबंधो मे तनाव आ गया। इसके कारण आम लोगों की यह धारणा बन रही है कि नीतीश कुमार को कोई ऐसा नजदीकी आदमी है, जो भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को लालू से जुड़ी जानकारियां दे रहा है।

लेकिन जो कुछ लालू के साथ हो रहा है, उससे नीतीश कुमार का नुकसान ही होगा, क्योंकि वे राष्ट्रीय राजनीति में नरेन्द्र मोदी का विकल्प बनने की कोशिश कर रहे हैं। लालू के समर्थन से सरकार चलाना उनकी विवशता है, लेकिन इसके कारण उनकी छवि भी धूमिल होगी, क्योंकि वे एक ऐसे नेता के समर्थन से सरकार चलाते देखे जाएंगे, जिसे अदालत ने सजा दे रखी है और जो जेल में है।

चारा घोटाले का यह मुकदा 1990 के दशक का मुकदमा है। उस घोटाले के तहत लालू की सराकर के दौरान सरकारी खजाने की लूट हुई थी और उस लूट में एक साजिशकत्र्ता के रूप में लालू को भी आरापित किया गया था।

अब लालू के साथ साथ उनकी बड़ी बेटी मीसा के खिलाफ भी सीबीआई सक्रिय हो गया है। यदि उनके बेटों के खिलाफ भी छापेमारी हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। (संवाद)