साम्यवादी समाज बनाने के सपने निकलकर अब चीन अमीर बनने के आदर्श पर चल रहा है। माओं के बाद चीन की सत्ता का नेतृत्व कर रहे दंेग शियापिंग का कहना था कि अमीर होना शानदार है। इस तरह की बात पूंजीवादी देश में भी कहने मे लोग झिझकते हैं।
चीन में अब इतना विकास हो गया है कि मानवाधिकार की स्थिति वहां खराब होने के बावजूद वह देश ओलंपियाड का आयोजन कराने में समर्थ हो गया है और वह अमेरिका के बाद दुनिया की दूसरी आर्थिक और सैन्य शक्ति के रूप में अपने को स्थापित करने में सफल हो गया है।
लेकिन भारत पीछे की ओर खिसक रहा है। भाजपा और उसके संघी संगठन भारत की प्राचीन गौरवगाथा गाने में इतने व्यस्त हैं कि अब भारत में घड़ी की सूई पीछे की ओर चलने लगी है। इन भगवा बंधुओं का केन्द्रीय मुद्दा गाय बन गई है। किसी भी देश में जानवर इतना महत्व नहीं रखता कि उसकी हत्या करने वालों के लिए फांसी की सजा सुनाई जाय। लेकिन छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ऐसा करने को कह रहे हैं।
इसलिए इस बात में आश्चर्य नहीं होता है कि एक जानवर के साथ गलत व्यवहार करने के लिए लोग मारे जा चुके हैं। एक ट्रक ड्राइवर की आंख इसीलिए चली गई, क्योंकि वह अपनी ट्रक में एक गाय को ढो रहा था। एक व्यक्ति की हत्या मात्र इसीलिए कर दी गई कि उस पर गौमांस खाने का शक था। इन सब घटनाओं से भारत की प्रतिष्ठा एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में नहीं बढ़ती।
गाय के मसले को राष्ट्रवाद से जोड़कर देखा जा रहा है। एक मंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि जो लोग गौमांस खाना चाहते हैं, वे पाकिस्तान चले जाएं। यह सच है कि गाय की पवित्रता हिन्दु धर्म से जुड़ी हुई है, लेकिन सच यह भी है कि विविधतावादी भारत के केरल, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों में लोग गाय का मांस खाते रहे हैं।
मंुबई के एक हिन्दू दंपति ने उच्च न्यायालय में याचिका देकर मांग की कि उन्हें गाय का मांस खाने दिया जाय, क्योंकि यह सस्ता और पौष्टिक होता है। बाॅम्बे हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि बाहर से गौमांस महाराष्ट्र में लाकर रखना अपराध नहीं है।
बात सिर्फ खाने तक सीमित नहीं है, बल्कि लोग क्या पीते हैं, यह भी महत्वपूर्ण है। खाने के साथ साथ पीने पर किसी तरह का प्रतिबंध लगाना भी आधुनिक युग की रीतियों के खिलाफ है। खाने पीने की आजादी आधुनिक युग को पुरातन युग से अलग करती है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी न्यू इंडिया की बात करते हैं। लेकिन क्या न्यू इंडिया में लोगों का नजरिया पुराने युग के मिथ और धर्मांधता से अलग नहीं होना चाहिए? डिजीटल इंडिया के विस्तार के लिए पुरातनपंथी मान्यताओं के प्रति दुराग्रह बाधा का काम ही करेगा।
चीन ने साम्यवाद को ताक पर रख दिया है, ताकि निजी क्षेत्र का विस्तार हो सके। इसके कारण इसके विकास की दर तेज हुई है। पर भारत ने सार्वजनिक क्षेत्र के नेतृत्व में मिश्रित अर्थव्यवस्था का जो माॅडल अपनाया उसके कारण विकास की दर 2 से तीन फीसदी तक ही रह गई थी। 1991 के बाद उन जंजीरों से मुक्ति मिली और भारत की विकास दर बढ़ी है।
और अब भारतीय जनता पार्टी गौ ग्रंथी की शिकार होकर एक बार फिर पुराने जमाने में प्रवेश कर रही है, जिसके कारण देश के विकास को खतरा हो सकता है।(संवाद)
भारतीय जनता पार्टी की गाय ग्रंथि
संघ परिवार को चीन से सबक लेनी चाहिए
अमूल्य गांगुली - 2017-05-17 11:55
यह बात अपनी जगह है कि वन बेल्ट वन रोड की चीन की परियोजना उसके आर्थिक और सामरिक पौरुष को बढ़ाने के उद्देश्य से तैयार किया गया है, लेकिन इतना तो तय है कि अब वह देश सांस्कृतिक का्रंति के दौर से निकलकर आधुनिक युग में आ गया है।