भारतीय जनता पार्टी भी आज यही कर रही है। यह साफ हो गया है कि उसकी दिलचस्पी राजनैतिक दलों के नेताओं के खिलाफ जांच को उसके तार्किक अंजाम तक पहुंचाने की नहीं है। वह सिर्फ यह आभास देना चाहती है कि उसकी सरकार कार्रवाई कर रही है। वह सीबीआई छापों का इस्तेमाल भ्रष्टाचार को मिटाने या भ्रष्ट नेताओं को दंडित करने के लिए नहीं, बल्कि मात्र यह दिखाने के लिए करती है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ संवेदनशील है।
अब फिर सीबीआई छापेमारी का दौर शुरू हो गया है। इस बार पी चिदंबरम और उनके बेटे के खिलाफ छापेमारी हुई है। आयकर विभाग का छापा लालू और उनकी बेटी के खिलाफ हुई है। लेकिन यदि अतीत में हुई छापामारी की घटनाओं के हश्र को देखें तो पाते हैं कि इनसे न तो लालू का कुछ बिगड़ने वाला है और न ही चिदंबरम का, क्योंकि ये छापे उन नेताओं को चुप कराने के लिए मारे गए हैं, न कि उनके भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी प्रतिबद्धता के तहत किए गए हैं।
उदाहरण के लिए हम तृणमूल कांग्रेग के दो नेताओ के मामले को देख सकते हैं। उनमें से एक तो तृणमूल कांग्रेस के लोकसभा में नेता सुदीप बंदोपाघ्याय हैं। शारदा चिट घोटाले में उनके खिलाफ छापेमारी हुई थी और कार्रवाई चल रही है। लेकिन उनके खिलाफ जांच आगे बढ़ नहीं रही। बस बीच बीच में उनके खिलाफ बयानबाजी का दौर शुरू हो जाता है और बयानबाजी को आधार देने के लिए जांच को थोड़ा और आगे बढ़ाकर छोड़ दिया जाता हैं। उन्हें ओडिसा उच्च न्यायालय ने बहुत पहले जमानत दे रखी थी। लेकिन लंबे समय तक उनकी जमानत को सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई ने चुनौती नहीं दी। लेकिन अब उनको धमकी मिल रही है कि उनकी जमानत को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिल सकती है।
लालू के मामले में भी यही किया गया। लालू चारा घोटाले के पांच मुकदमों में नामजद हैं। एक में तो उन्हें सजा भी मिल गई है। फिलहाल उन्होंने उसके खिलाफ हाई कोर्ट में अपील कर रखी है और सुप्रीम कोर्ट से जमानत पाकर वे जेल से बाहर हैं।
चार अन्य मुकदमों मे आगे की कार्रवाई को उन्होंने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी और हाई कोर्ट ने उन मुकदमों पर रोक लगा दी थी। यह 2014 की घटना है। लंबे समय तक केन्द्र सरकार की सीबीआई ने हाई कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कोई पिटीशन नहीं दिया। लेकिन पिछले दिनों पिटीशन देकर हाई कोर्ट के फैसले को रुकवा दिया और अब लालू पर सीबीआई की अदालत में मुकदमा चलेगा।
सुदीप बंदोपाघ्याय और चारा घोटाले में लालू को सजा दिलाने की कोशिश करने में सीबीआई की दिलचस्पी यदि होती, तो मामले को तेजी से आगे बढ़ाया जाता, लेकिन वैसा नहीं किया जा रहा है। सबकुछ शांत हो जाता है और फिर कार्रवाई शुरू होती है। कार्रवाई जब शुरू होती है, तो बहुत ही हल्ला हंगामा होता है और उसके बाद फिर सबकुछ शांत हो जाता है।
यह मानने में कुछ भी गलत नहीं कि पी चिदंबरम और उनके बेटे के खिलाफ की गई छापामारी भी राजनैतिक कारणों से की गई है, न कि इससे केन्द्र सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई प्रतिबद्धता झलकती है। जिन मामलों मे छापेमारी की गई है, वे बहुत ही पुरानी हैं। मोदी सरकार को सत्ता में आए भी तीन साल हो गए हैं। सवाल उठता है कि इतने दिनों तक सरकार कहां जाकर सो रही थी और एकाएक उसने सीबीआई को छापामारी करने का आदेश क्यों दे दिया। जाहिर है, इसका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ राजनैतिक है। पी चिदंबरम का मुह बंद करने के लिए ऐसा किया गया है। एक बार उनका मुह बंद हुआ नहीं कि फिर सबकुछ शांत हो जाएगा। (संवाद)
सीबीआई की कार्रवाई: हंगामा ज्यादा काम बहुत कम
नन्तू बनर्जी - 2017-05-23 13:12
सत्तारूढ़ दलों ने अबतक सीबीआई का इस्तेमाल अपने विरोधी दलों के नेताओं के खिलाफ इस्तेमाल उन्हें दंडित करने के लिए नहीं, बल्कि अपने राजनैतिक हित साधने के लिए किया है। ऐसा सभी पार्टियों ने किया है। उनकी दिलचस्पी अपने भ्रष्ट विरोधियों को सजा दिलाने की नहीं होती, बल्कि कमजोर करने की होती है, ताकि उनकी कमजोरी का सत्तारूढ़ पार्टी फायदा उठाती रहें।