आखिर एकाएक अपराधियों की सक्रियता का क्या राज है? मुख्यमंत्री बनते ही आदित्यनाथ योगी ने प्रदेश के अपराधियों को प्रदेश छोड़ देने का फरमान जारी कर दिया था। कहा था कि यदि वे प्रदेश नहीं छोड़ना चाहते, तो अपराध ही छोड़ दें। उस तरह की चेतावनी के बावजूद अपराधियों ने अपनी सक्रियता क्यों बढ़ा दी और उत्तर प्रदेश की पुलिस उन पर लगाम लगाने में क्यों नाकाम रही है? ये सब कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब में ही उत्तर प्रदेश के वर्तमान जंगल राज की समस्या का समाधान मिल सकता है।
जंगल राज की इस अवस्था का एक कारण तो मुख्यमंत्री योगी में अनुभव की कमी का होना है। वे कभी किसी सरकारी प्रशासनिक पद पर नहीं रहे। वे पांच बार लोकसभा के सदस्य रहे हैं, लेकिन लोकसभा का सांसद कोई प्रशासनिक पदाधिकारी नहीं होता। वे केन्द्र सरकार में कभी मंत्री नहीं रहे और न ही किसी सरकारी संगठन को जिम्मा उन्हें सौंपा गया। वे निजी क्षेत्र में भी कभी पदाधिकारी के पद पर नहीं रहे। यही कारण है कि उनमें सरकार को नेतृत्व देने की क्षमता ही नहीं है। वे पदाधिकारियों को सही दिशा देना नहीं जानते।
राजनेता में यदि प्रशासनिक अनुभव की कमी हो, तो वह सख्त राजनैतिक संदेश देकर भी प्रशासन को अपनी इच्छा से मोड़ सकता है। यह काम मायावती ने बखूबी किया था। वे जब छह छह महीने के लिए तीन बार मुख्यमंत्री बनी थीं, तो उनके पास भी अनुभव या तो था ही नहीं या बहुत कम था, लेकिन सख्त संदेश देकर उन्होंने अपराधियों पर नकेल डालने में कुछ सफलता अवश्य पाई थी। उन सफलताओं के कारण ही वे 2007 के विधानसभा चुनावों में सफलता हासिल कर पाई थीं।
उसी तरह कल्याण सिंह जब मुख्यमंत्री बने थे, तो उन्होंने भी अपने पहले ही कार्यकाल मंे अपराधियों के बीच दहशत का माहौल बना दिया था। जब दूसरी बार वे मुख्यमंत्री बने, उस समय तक तो उनके पास पर्याप्त अनुभव भी था। अपने अनुभव और राजनैतिक परिपक्वता के कारण अपने दूसरे कार्यकाल में कल्याण सिंह ने उत्तर प्रदेश में अपराध पर नियंत्रण पाने में बहुत सफलता पाई थी।
पर आदित्यनाथ योगी प्रशासनिक अनुभव कम होने के साथ साथ राजनैतिक परिपक्वता से भी विहीन हैं। वे न तो प्रशासनिक अधिकारियों को सही दिशा दे पा रहे हैं और न ही कठोर राजनैतिक संदेश भेजने में सफल हो रहे हैं। इसका असर यह हो रहा है कि अपराधी उन्हें एक ढपोरशंख मुख्यमंत्री समझ रहे हैं, जो सिर्फ बयानबाजी कर सकता है, लेकिन कार्रवाई नहीं कर सकता।
जिस समय मुख्यमंत्री लंबा लंबा फेंक रहे थे, उसी समय पुलिस वालों की शामत आई हुई थी। उनके पिटने और अपमानित होने के विडियो सोशल मीडिया पर आ रहे थे। एक महिला आइपीएस अधिकारी तो सरे आम एक विधायक की डांट खाकर रोती दिखाई पड़ रही थीं। जब प्रदेश का आइपीएस अधिकारी एक विधायक की डांट खाकर सार्वजनिक रूप से रोता दिखाई पड़े, तो अंदाज लगाइये कि पुलिस का मनोबल उस प्रदेश में कैसा होगा? उस मामले में मुख्यमंत्री को कड़ा रुख लेना चाहिए था और उस महिला पुलिस अधिकारी के खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई की जानी चाहिए थी और यदि उस महिला के साथ वास्तव में विधायक ने कोई गलत हरकत की थी, तो विधायक पर मुकदमा किया जाना चाहिए था। लेकिन मुख्यमंत्री योगी ने कुछ भी नहीं किया।
सहारनपुर में तो अपराधियों ने एसएसपी लवकुमार के घर पर ही धावा बोल दिया और उन अपराधियों का नेतृत्व कोई और नहीं, बल्कि वहां के स्थानीय भाजपा सांसद ही कर रहे थे। वे इस बात से भड़के हुए थे कि उन्हें अंबेडकर शोभा यात्रा मुस्लिम मुहल्ले से निकालने की अनुमति नहीं दी गई थी और हिन्दु-मुस्लिम दंगों को रोकने के लिए एसएसपी ने बल का प्रयोग किया था, जिससे भाजपा के कार्यकत्र्ता आहत थे और उनमें से अनेक ने कानून अपने हाथ में लेकर अपराध करते हुए एसएसपी के घर पर ही धावा बोल दिया और एसएसपी लवकुमार की पत्नी और बच्चे मौत के शिकार होते होते बचे।
उस घटना के बाद आतताइयों के खिलाफ कड़ा कदम उठाकर भी योगी एक सख्त संदेश भेज सकते थे कि कानून व्यवस्था को बिगाड़ने वाले के वे खिलाफ हैं, चाहे वैसा करने वाले उनके अपने सगे ही क्यों न हो। लेकिन योगी ने बिल्कुल उलटा काम किया। अपनी पार्टी के सांसद के खिलाफ कार्रवाई करने के बदले उन्होंने एसएसपी लव कुमार का ही वहां से स्थानांतरण कर दिया। उसका पूरे पुलिस प्रशासन में बहुत ही खराब संदेश गया। पुलिस और प्रशासन को लगा कि योगी से जुड़े किसी व्यक्ति या समुदाय के खिलाफ कार्रवाई करना खतरे से खाली नहीं है, क्योंकि उससे योगीजी की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है।
लव कुमार के तबादले के बाद सहारनपुर में जातीय हिंसा होने लगी। ठाकुरांे और जाटवों के झगड़े में प्रशासन ने ठाकुरों को रियायत दे दी और सारी गाज जाटवों पर गिरानी शुरू कर दी। प्रतिक्रिया में जाटवों ने कानून खुद अपने हाथ में ले लिया, क्योंकि उसे लगा कि प्रशासन से उसे न्याय मिलेगा ही नहीं।
जब पुलिस की वर्दी का रौब ही लोगों पर नहीं रहे, तो फिर अपराध कम कैसे हो सकते हैं। एक पुलिस जवान या अधिकारी की अपनी सीमा होती है। उसका राज नहीं चलता। राज चलता है उसकी बर्दी की रौब का। मुख्यमंत्री के रूप में योगी जी को बर्दी का रौब बढ़ाना चाहिए था, क्योंकि अखिलेश सरकार के दौरान भी बर्दी की धमक कमजोर हुई थी। बर्दीधारी अधिकारी समाजवादी नेताओं के पैर छूते दिखाई पड़ते थे। लेकिन योगी ने पहले से ही कम रौब वाली बर्दी की धकम को और भी कमजोर कर दिया और परिणाम सामने है। (संवाद)
उत्तर प्रदेश में जंगलराज
बर्दी की रौब बहाल की जानी चाहिए
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-05-30 12:43
उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति कभी बेहतर नहीं रही, लेकिन इस समय जो स्थिति है, वह पहले कभी नहीं रही होगी। चारों तरफ अराजकता का माहौल है। सभी तरह के अपराध बढ़ रहे हैं। 15 मार्च और 15 मई के बीच पिछले साल और इस साल के गंभीर अपराधों के मामलों की तुलना की जाय, तो उन अपराधों में 4 गुना से भी ज्यादा का इजाफा हुआ है। हत्या, बलात्कार, लूट, डकैती और अपहरण के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। जातीय तनाव ने भी विस्फोटक रुख अख्तियार कर लिया है।