इस हिंसा में कम से कम छह लोग पुलिस की गोली से मारे गए हैं। दर्जनों लोग घायल हुए हैं और घायल होने वालों में कम से कम 50 पुलिस वाले भी हैं। लोगों ने तो जिला कलेक्टर को भी पीट डाला। पीटने के बाद उन्हें दौड़ा दिया गया। जिला कलेक्टर स्वतंत्र कुमार पुलिस की गोली से मारे गए एक किसान के परिवार को दिलासा देने उनके घर गए थे। उसी दौरान यह घटना घटी थी।

आखिरकार मध्यप्रदेश में यह सब हो क्यों रहा है? मध्यप्रदेश के मंदसौर में हिंसा की भारी घटना हुई, लेकिन हिंसा की घटनाएं प्रदेश के अन्य भागों में भी तेजी से फैली। इस संवाददाता ने प्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों, कुछ पूर्व मंत्रियों और कुछ सेवानिवृत नौकरशाहों से बात कर इसके बारे में जानने की कोशिश की।

उन लोगों का कहना था कि प्रदेश में तेजी से भ्रष्टाचार फैला है। अब एसपी और कलेक्टर की बहाली के लिए भी उनके पदों को नीलाम कर दिया जाता है और जो सबसे बड़ी बोली लगाते हैं, उन्हें इन पदों पर बैठाया जाता है। पहले इस तरह की नीलामी आमतौर पर पुलिस थानों और चेकपोस्टों की ही होती थी। लेकिन अब यह बीमारी कलेक्टर और एसपी के पदों तक भी पहुंच गई है।

पैसे लेकर पदस्थापन की इस बीमारी के कारण अब योग्यता का ध्यान नहीं रहता और उन महत्वपूर्ण पदों पर अयोग्य लोग भारी संख्या में पहुंचने लगे हैं। और जब मंदसौर जैसी स्थिति पैदा होती है, तो माहौल को संभालने के बदले वे और भी बिगाड़ देते हैं। मंदसौर में हुई गोलीबारी उसका एक उदाहरण है।

जहां तक वर्तमान हिंसा का सवाल है, तो आंदोलन की तैयारी तो पिछले दो महीने से हो रही थी। 21 मई को यह तय किया गया कि आंदोलन 1 जून से शुरू किया जाएगा। सरकार को इसके बारे में जानकारी थी या नहीं, इसके बारे में सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है। यदि उसे जानकारी नहीं थी, तो उसकी खुफिया विभाग को लानत है और यदि उसे पता था, तो उसका प्रशासन कर क्या रहा था?

एक जून को यह आंदोलन शुरू हो गया था, लेकिन पुलिस और प्रशासन ने उसे गंभीरता से लिया ही नहीं। जब आंदोलन गंभीर रूप लेने लगा तो आरएसएस के किसान संगठन भारतीय किसान संघ ने घोषणा कर दी कि वह भी इसमें शामिल होने जा रहा है। उसकी घोषणा के कुछ ही घंटे के अंदर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने उन्हें बातचीत के लिए आमंत्रित कर दिया। बातचीत हुई और संघ के नेताओं ने घोषणा कर दी कि सरकार ने ज्यादातर मांगें स्वीकार कर ली है और आंदोलन को वापस लिया जा रहा है।

यह घोषणा आरएसएस के भारतीय किसान संघ के नेताओं ने की थी, लेकिन किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वालों का बातचीत में शामिल ही नहीं किया गया था और उनकी जानकारी के बिना ही संघ के नेताओं ने आंदोलन समाप्त कर देने की घोषणा कर दी थी। यह उन्हें नागवार गुजरा और उन्होंने आंदोलन को और तेज कर दिया। वे हिंसक भी होने लगे और उसका नतीजा मंदसौर का वह गोली कांड था, जिसने पूरे प्रदेश को ही हिला कर रख दिया है।

जाहिर है कि मध्यप्रदेश सरकार ने आंदोलनरत नेताओं से बातचीत करने की जगह आरएसएस के भारतीय किसान संघ के नेताओं से बातचीत कर आंदोलन समाप्त करने का तरीका अपनाकर आग में घी डालने का काम किया और उसके कारण ही आंदोलन धधकने लगा ळें (संवाद)