आगामी अगस्त महीने में पटना में राष्ट्रीय जनता दल ने एक रैली का आयोजन किया है और उस रैली में उत्तर प्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्री मायावती और अखिलेश यादव मंच साझा करेंगे।
भारतीय जनता पार्टी हर संभव कोशिश कर रही है कि मायावती और अखिलेश की पार्टियों के बीच गठबंधन न हो, जबकि बिहार के नेता लालू यादव दोनों को एक साथ लाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले अखिलेश यादव ने कहा था कि भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए वे बहुजन समाज पार्टी से हाथ मिलाने को तैयार हैं। ऐसा उन्हें इस अनुमान के साथ कहा था कि चुनाव के बाद एक त्रिशंकु विधानसभा अस्तित्व में आ सकती है।
लेकिन मायावती ने उस पर ठंढी प्रतिक्रिया दी थी और कहा था कि चुनावी नतीजों के बाद वह निर्णय करेंगी कि उन्हें क्या करना है।
दिलचस्प बात यह है कि अब मायावती और अखिलेश यादव ने एक दूसरे की आलोचना करना बंद कर दिया है। दोनों सिर्फ भाजपा की ही आलोचना करते हैं। वे प्रदेश की योगी सरकार की ही नहीं, बल्कि केन्द्र की मोदी सरकार को भी अपने निशाने पर लेते रहते हैं।
अतीत में भी सपा और बसपा के बीच गठबंधन हुआ है। इटावा से कांशीराम को सांसद बनाने के लिए बसपा ने सपा की मदद ली थी और सपा के समर्थन के कारण ही कांशीराम तब संसद का सदस्य बन सके थे।
1993 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विघ्वंस के बाद हुए चुनाव में भी सपा और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था और उसके बाद मुलायम सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी थी।
लेकिन भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से सरकार बनाने की योजना के तहत कांशीराम और मायावती ने मुलायम सिंह यादव की सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। उसके बाद गेस्ट हाउस कांड हुआ, जिसके कारण दोनों पार्टियो के संबंध और भी खराब हो गए थे।
पर अब समाजवादी पार्टी का नेतृत्व मुलायम नहीं, बल्कि अखिलेश यादव कर रहे हैं और उनके साथ मायावती की निजी कड़वाहट नहीं है। इसके कारण दोनों के हाथ मिलाने की संभावना बलवती है।
पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने जबर्दस्त जीत हासिल की थी और सपा व बसपा के सूफड़े साफ हो गए थे। अब दोनों पार्टियां महसूस कर रही हैं कि यदि वे एक साथ नहीं आए, तो भाजपा को हराना लगभग असंभव होगा। इसका कारण यह है कि भारतीय जनता पार्टी प्रदेश में मतदाताओं को मजहब के आधार पर ध्रुवीकरण करने मे लगी हुई है।
मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी की अयोध्या यात्रा को इसी संदर्भ में देखा जा सकता है। वहां उन्होेंने मंदिर निर्माण की बात की और कहा कि वे अदालत से बाहर दोनों पक्षों में समझौते के बाद मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करेंगे।
राजनैतिक पंडितों का मानना है कि यदि सपा, बसपा और कांग्रेस ने आपस में हाथ मिला लिया, तो भाजपा के लिए मुश्किल हो जाएगी। यदि पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों में इन तीनों दलों के मिले हुए मतों को आपस में जोड़ दिया जाय, तो भाजपा 90 सीटों पर ही जीतती। यही कारण है कि भाजपा को अभी से इसकी चिंता सता रही है। (संवाद)
उत्तर प्रदेश में महागठबंधन
भाजपा को सता रही है इसकी चिंता
प्रदीप कपूर - 2017-06-17 11:52
लखनऊः 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले उत्तर प्रदेश में एक महागठबंधन बनने की संभावना हवा में तैर रही है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी को लगता है कि इससे उसे कोई खतरा नहीं है।