गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के नेता बिमल गुरुंग अभी भूमिगत हो गए हैं, जबकि उनकी पार्टी के अनेक नेता और कार्यकर्ता गिरफ्तार हो चुके हैं। उनकी पार्टी के कुछ कार्यालयों को भी पुलिस ने सील कर दिया है। जाहिर है, जिस अंदाज में बिमल गुरुंग आंदोलन चला रहे हैं, उसी अंदाम में प्रदेश की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उन्हें जवाब दे रही है।

आखिर आंदोलन के तात्कालिक कारण क्या हैं? क्या यह आंदोलन जरूरी हो गया था अथवा समय चुनने में बिमल गुरुंग ने गलती कर दी। उनकी पार्टी के कुछ नेता ऐसा ही मानते हैं। दरअसल, बिमल गुरुंग गोरखा क्षेत्रीय प्रशासन के प्रमुख हैं और पांच साल पहले इस पद पर वे निर्विेरोध आसीन हुए थे। अब उनका कार्यकाल पूरा हो रहा है और इस पद पर आगे बने रहने के लिए उन्हें फिर से चुनाव का सामना करना पड़ेगा। यदि जीत हुई, तो वे अगले 5 सालों के लिए फिर इस पद के लिए चुन लिए जाएंगे।

पर जब उन्हें अगले कार्यकाल के लिए चुनाव की तैयारी करनी थी, तो वे अब अलग राज्य की मांग कर रहे हैं। गुरखा क्षेत्रीय प्रशासन की व्यवस्था भी उनके आंदोलन की वजह से हुई थी और उन्होंने यह व्यवस्था उस समय यह कहते हुए स्वीकार कर ली थी कि गोरखालैंड राज्य की गठन की ओर यह एक बड़ा कदम है।

अब इस क्षेत्रीय प्रशासन की व्यवस्था के 5 साल के बाद फिर से अगल प्रदेश की मांग कर रहे हैं। वे यह मांग यह कहते हुए कर रहे हैं कि प्रदेश सरकार अनावश्यक हस्तक्षेप करती है, जबकि सच्चाई यह है कि पुलिस और भूमि सुधार के अधिकार को छोड़कर गोरखा क्षेत्रीय प्रशासन को अन्य वे सारे अधिकार प्राप्त हैं, जो किसी राज्य की सरकार के पास होता है।

प्रशासन को प्रदेश और केन्द्र सरकार से पैसे भी मिलते हैं। प्रदेश सरकार ने जब प्रशासन को दिए पैसे का हिसाब मांगा और आॅडिटर उसकी जानकारी लेने के लिए क्षेत्रीय प्रशासन के दफ्तरों पर जाने लगे, तो एकाएक गुरुंग बागी तेवर दिखाने लगे। आंदोलन का तो यह एक तात्कालिक कारण है। एक कारण इस क्षेत्र में तृणमूल कांग्रेस का विस्तार होना भी है।

ममता बनर्जी अपनी पार्टी का इस क्षेत्र में तेजी से प्रसार करी रही हैं। पिछले दिनों हुए स्थानीय चुनाव मे तृणमूल का एक उम्मीदवार पहली बार चुनाव जीता। सीटों की संख्या के लिहाज से यह जीत ज्यादा मायने नहीं रखती, लेकिन तृणमूल कांग्रेस को 30 से 35 फीसदी मत मिले हैं और इसके कारण बिमल गुरुंग के कान खड़े हो गए हैं। गुरुंग की पार्टी के कुछ नेता और कार्यकर्ता तृणमूल में शामिल भी हो गए हैं और उनकी अपनी पार्टी के एक बड़े नेता ने विद्राह करके एक दूसरी क्षेत्रीय पार्टी बना ली है। जाहिर है कि बिमल गुरुंग का रुतबा अ बवह नहीं रहा, जो पांच साल पहले था। उनकी पार्टी भी अब उतनी मजबूत नहीं रही, जितनी वह पांच साल पहले थी।

यही कारण है कि बिमल गुरुंग एक बार फिर बागी तेवर दिखाने लगे हैं, ताकि वे अपनी खोई हुई जमीन वे फिर से हासिल कर सकें। आने वाले चुनाव में वे हिस्सा लेंगे या नहीं, इसके बारे में उन्होंने अभी तक कुछ नहीं कहा है, लेकिन इतना तो साफ है कि पहले से कुछ कमजोर होने के बावजूद उनकी पार्टी फिर सत्ता में आ सकती है और वे एक बार फिर गोरखा क्षेत्रीय प्रशासन के प्रमुख बन सकते हैं। इसलिए इस समय आंदोलन करने को कुछ लोग आश्चर्यजनक मानते हैं। लेकिन उनके आंदोलन का मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उन्हीं के अंदाज में जवाब दे रही हैं।(संवाद)