भाजपा के कुछ जोशीले कार्यकत्र्ता आडवाणी का नाम भी लेते थे, हालांकि बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में उनपर चल रहे मुकदमे के कारण कोई भी सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति ऐसा सोच भी नहीं सकता था। लोकसभा की स्पीकर सुमित्रा महाजन और नजमा हेपतुल्ला तक के नाम पर चर्चा हो जाया करती थी और सुषमा स्वराज के नाम को तो कुछ लोग गंभीरता से लेने लगे थे, लेकिन किसी ने श्री कोविंद के बारे में नहीं सोचा था कि उन्हें भी राष्ट्रपति बनाने की मोदी सोच सकते हैं।
आखिर श्री कोविंद प्रधानमत्री की पसंद क्यों बने? इसका एक कारण तो यह है कि मोदी लगातार कोशिश कर रहे हैं कि दलित उनकी पार्टी के साथ जुड़े। दूसरा कारण यह है कि श्री कोविंद उत्तर प्रदेश से हैं, जो लोकसभा में सबसे ज्यादा सांसद भेजता है। भारतीय जनता पार्टी ने न केवल लोकसभा में बल्कि विधानसभा के चुनाव में भी वहां भारी जीत हासिल की थी। आगामी चुनाव में भी वहां भाजपा का दबदबा बना रहे, इसके लिए श्री कोविंद का राष्ट्रपति बनना भाजपा के काम आ सकता है।
उसका एक कारण यह है कि उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी करीब 22 फीसदी है और उनमें भाजपा की पैठ बहुत कमजोर है। लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत की एकमात्र वजह अगड़ी जातियों और ओबीसी का उसे मिला समर्थन था। भारतीय जनता पार्टी और नरेन्द्र मोदी की नजर गैर जाटव दलित जातियों पर है, जिनका समर्थन वे श्री कोविंद को राष्ट्रपति बनाकर पा सकते हैं, क्योंकि श्री कोविंद उत्तर प्रदेश के एक गैर जाटव दलित हैं। प्रदेश में गैर जाटव दलितों मंे यह भावना घर कर गई है कि मायावती के कार्यकाल में सिर्फ जाटवों का सशक्तिकरण हुआ है और उनके इस अहसास का फायदा भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव में उठाना चाहती है।
उत्तर प्रदेश ही नहीं, गुजरात का चुनावी हित साधने की कोशिश भी श्री कोविंद को राष्ट्रपति बनाकर भाजपा कर रही है। श्री कोविंद कोली समुदाय से आते हैं, जिसकी आबादी गुजरात में 20 फीसदी है, हालांकि वह वहां एससी नहीं, बल्कि ओबीसी है। आरक्षण की मांग पूरी नहीं होने के कारण गुजरात के पटेल भाजपा के विरोधी होते जा रहे हैं और इसकी भरपाई भाजपा वहां कोलियों के बीच अपनी स्थिति को मजबूत बनाकर कर सकती है।
लेकिन कांग्रेस भी वहां कोलियों के समर्थन पाने की रणनीति पर इस बार काम कर रही है और इसके लिए उसने माधवसिंह सोलंकी के बेटे भरतसिंह सोलंकी को वहां अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। गौरतलब हो कि माधवसिंह सोलंक भी कोल हैं और उन्होंने गुजरात के पटेलों को राजनैतिक चुनौती देने के लिए जो ‘‘खाम’’ रणनीति बनाई थी, उसके केन्द्र में कोली ही थे, जो वहां अपने आपको क्षत्रीय कहते हैं। क्षत्रीय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम गठजोड़ की रणनीति का नाम ही खाम था। कांग्रेस इस बार फिर खाम गठजोड़ को खड़ा करने की कोशिश कर रही थी, पर एक कोली को राष्ट्रपति बनाकर नरेन्द्र मोदी गुजरात में उस कोशिश को पलीता लगाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें उनके सफल होने की पूरी संभावना है।
उत्तर प्रदेश और गुजरात के चुनावी समीकरण को अपने अनुकूल बनाने के अलावा श्री कोविंद को राष्ट्रपति बनाने के पीछे मोदी की मंशा पार्टी के चेहरे को बदलने की भी है। पार्टी अभी तक अगड़ी जातियों की पार्टी के रूप में जानी जाती है। नरेन्द्र मोदी खुद ओबीसी हैं, लेकिन इसके बावजूद इस पर से अगड़ी जातियों के वर्चस्व का ठप्पा समाप्त नहीं हुआ है। इसका कारण यह है कि सत्ता के केन्द्रों पर अगड़ी जातियों के लोग ही भरे हुए हैं और दलित व ओबीसी अपने आपको भाजपा की सत्ता की स्कीम से अलग थलग पा रहे हैं। एक दलित को सत्ता के सर्वाेच्च पद पर बैठाकर नरेन्द्र मोदी उन्हें आश्वस्त करना चाहते हैं कि भाजपा उनकी ही पार्टी है। इस कोशिश में मोदी कितना सफल हो पाते हैं, यह कहना अभी मुश्किल है, क्योंकि राष्ट्रपति का पद महज नुमाइशी होता है और असली सत्ता प्रधानमंत्री के पास होती है और अपने उस अधिकार का इस्तेमाल मोदी ने अभी तक ओबीसी और दलितों के सशक्तिकरण के लिए प्रत्यक्ष तौर पर नहीं किया है।
बिहार के राज्यपाल को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाकर श्री मोदी ने विपक्षी खेमे में भी बिखराब की स्थिति पैदा करने में सफलता पाई है। राजग के उम्मीदवार की जीत में पहले भी कोई शक नहीं था, क्योंकि उसके पास अपने और कुछ मित्र दलों के साथ राष्ट्रपति निर्वाचक मंडल में पर्याप्त वोट हैं, लेकिन कोविंद के उम्मीदवार बनने से अपने विरोधी खेमे से भी कुछ वोट वह प्राप्त कर सकता है। मायावती अभी से किसी अन्य दलित उम्मीदवार न होने की स्थिति में कोविंद के समर्थन की बात कर रही है, तो नीतीश कुमार भी बिहार के राज्यपाल के प्रति नर्मी का रुख अपना रहे हैं। उसके कारण जनता दल(यू) में भी मतभेद पैदा हो सकता है और बिहार का महागठबंधन भी उससे प्रभावित हो सकता है। सबसे बड़ी बात यह होगी कि 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए राष्ट्रपति चुनाव के समय बन रही विपक्षी एकता अभी से धराशाई होती दिखाई दे रही है। इस तरह एक तीर से कई निशाने कर रहे हैं प्रधानमंत्री मोदी। (संवाद)
रामनाथ कोविंद राजग के राष्ट्रपति उम्मीदवार
एक तीर से कई निशाने
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-06-20 13:22
सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने बिहार के राज्यपाल डाॅक्टर रामनाथ कोविंद को अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाकर वास्तव में सभी को चैंका दिया है। इसका कारण यह है कि जिन नामों की चर्चा राजग की उम्मीदवारी को लेकर हो रही थी, उनमें यह नाम था ही नहीं। हां, कुछ लोग यह अनुमान अवश्य लगा रहे थे कि प्रधानमंत्री शायद किसी दलित को इस पद के लिए चुनें। जब दलित राष्ट्रपति की चर्चा होती थी, तो बात आदिवासी राष्ट्रपति की ओर बढ़ जाती थी और तब झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के नाम की भी चर्चा होने लगती थी। जब दक्षिण भारत के व्यक्ति को राष्ट्रपति बनाने की बात आती थी, तो लोग वेंकैया नायडू का नाम भी लेने लगते थे, लेकिन जिस दिन भाजपा अमित शाह ने राष्ट्रपति के नाम पर सहमति बनाने वाले तीन लोगों की एक समिति में श्री नायडू का नाम डाला, उसी दिन जाहिर हो गया कि श्री नायडू के उम्मीदवार बनने की संभावना समाप्त हो गई है।