रायसिना की पहाड़ी पर बने राष्ट्रपति भवन में अब तक अनेक लोग रह चुके हैं और उन्होंने अपन पदचिन्ह वहां छोड़े हैं। डाॅक्टर राजेन्द्र प्रसाद उनमें से एक थे, जो सबसे ज्यादा समय तक वहां रहे। जनता का राष्ट्रपति कहे जाने वाले कलाम भी वहां रहे। संजीव रेड्डी और ज्ञानी जैल सिंह जैसे राष्ट्रपति भी वहां रहे, जिनका संबंध प्रधानमंत्री से कड़वा हो गया था। फखरूद्दी अली अहमद जैसे राष्ट्रपति भी हुए, जिन्होंने आधी रात में आपातकाल के आदेश पर आंखे मूंदकर दस्तखत कर दिए। आर वेंकटरमण और के आर नारायणन ने अपने आपको नियम के अनुसार चलने वाले राष्ट्रपति के रूप में विख्यात किया। प्रतिभा पाटिल ने किसी तरह की विरासत नहीं छोड़ी।

सवाल उठता है कि प्रणब मुखर्जी अपने पांच साल के कार्यकाल के बाद किस तरह की विरासत छोड़कर जा रहे हैं। उनसे जब यह सवाल पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि वे किसी प्रकार की विरासत नहीं छोड़कर जाना चाहते, क्योंकि यह लोकतंत्र है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र एक बहुत बड़ी चीज है और वे खुद उसका एक छोटा हिस्सा हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद वे जनसमुदाय में विलीन हो जाएंगे।

श्री मुखर्जी का यह कार्यकाल आम तौर पर बिना किसी विवाद का था। उनके सामने ज्यादा चुनौतियां भी नहीं थीं। वे यूपीए के उम्मीदवार थे और उनके पास कांग्रेस नेता के रूप में राजनैतिक अनुभव का लंबा इतिहास था। राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने कहा कि वे भारत की जनता को उन्हें राष्ट्रपति चुनने पर धन्यवाद देते हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने देश को जितना दिया है, उससे बहुत ज्यादा पाया।

2014 के लोकसभा चुनाव के बाद उनके राजनैतिक कौशल की परीक्षा हो सकती थी, लेकिन भारतीय जनता पार्टी उस चुनाव के बाद पूर्ण बहुमत के साथ उभरी। इसलिए सरकार के गठन मे किसी प्रकार की समस्या या चुनौती श्री मुखर्जी के सामने खड़ी नहीं हो सकी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ उनके संबंध बहुत अच्छे रहे।

राष्ट्र के संवैधानिक प्रमुख के रूप में उन्होंने प्रदेश के राज्यपालों के सम्मेलन बुलाए और अनेक बार विडियो कान्फ्रेंसिंग भी उनके साथ की। संसद के साथ उनका संबंध भी बहुत अच्छा रहा। सभी पार्टियों के सांसद उनसे मिलते रहे और सभी पार्टियों के नेताओ के लिए भी उन्होंने अपने सारे दरवाजे खुले रखे हुए थे, क्योंकि देश की राजनैतिक परिस्थितियों से वे अपने आपको अवगत रखना चाहते थे।

जयपुर में पिछले महीने उन्होंने कहा था कि देश के सांसदों और राज्यों के विधायकों के पास बहुत अधिकार हैं और यदि उन अधिकारों का इस्तेमाल वे जनता के हित के लिए नहीं करते हैं, तो इसके लिए वे खुद ही जिम्मेदार हैं।

राजनयिक मोर्चे पर उन्होंने उन सभी उच्चायुक्तों और राजदूतों का अपने भवन पर स्वागत किया, जिनकी भारत में पोस्टिंग होती थी। भारत आने वाले दूसरे देशों के राज्य प्रमुख और सरकार प्रमुखों की आगवानी भी वे बहुत ही विनम्रता के साथ करते थे। उन्होंने राष्ट्रपति भवन के अतिथि गृह को खुला रख छोड़ा था और अनेक देशों के प्रमुखों और सरकार प्रमुखों को वे अपने अतिथि गृह में जगह दिया करते थे।

अपने कार्यकाल में श्री मुखर्जी ने अनेक देशों की यात्राएं भी कीं। वे जनता के मूड को समझने की कोशिश करते थे और सही समय पर सही मसलों को उठाते थे, हालांकि राष्ट्रपति शासन लगाने के मसले पर मंत्रिमंडल के निर्णय पर दस्तखत करने में विलंब नहीं करते थे और उसके औचित्य का निर्घारण न्यायलयों पर छोड़ देते थे। (संवाद)