बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद सत्तारूढ़ मोर्चे के उम्मीदवार हैं। नरेन्द्र मोदी ने उन्हें उम्मीदवार बना कर पूरे देश को अचरज में डाल दिया। वे उत्तर प्रदेश के दलित हैं। विपक्ष ने भी एक दलित को अपना उम्मीदवार बना दिया है। उसने बाबू जगजीवन राम की बेटी मीरा कुमार को अपना उम्मीदवार बनाया है। वह पूर्व राजनयिक हैं। कई बार लोकसभा की सदस्य भी रह चुकी हैं। एक बार वह लोकसभा की स्पीकर भी थीं। केन्द्र में वे भी रह चुकी है।
इस बार के राष्ट्रपति चुनाव की कई दिलचस्प बाते हैं। यह एनडीए बनाम यूपीए का संघर्ष तो है ही, इसे दलित बनाम दलित का संघर्ष भी बना दिया गया है। 2007 के राष्ट्रपति चुनाव में भी दो शेखावत एक दूसरे के सामने डटे हुए थे। उस समय सत्तारूढ़ यूपीए की उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल शेखावत थीं, तो विपक्षी एनडीए का उम्मीदवार भैरों सिंह शेखावत थे। इस बार तो चुनाव मे लिंग का भी मामला है, जैसा कि खुद मीरा कुमार ने दावा किया है।
हालांकि राष्ट्रपति का पद दिखावटी है और कार्यपालिका की सारी ताकत प्रधानमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद के पास होती है, लेकिन फिर भी इस बार राष्ट्रपति का चुनाव लोगों में भारी दिलचस्पी का केन्द्र बना हुआ है।
राष्ट्रपति के चुनावों में जीतने वाले उम्मीदवार के मतों को देखा जाय, तो अबतक सबसे ज्यादा मत राजेन्द्र प्रसाद को 1952 के चुनाव में प्राप्त हुआ थाा। उन्हें 99 फीसदी मत मिले थे। 1962 के चुनाव में राधाकृष्णन को 98 फीसदी मत मिले थे। 1997 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में के आर नारायणन को 95 फीसदी मत मिले थे। 2002 में हुए चुनाव में डाॅक्टर अब्दुल कलाम को 90 फीसदी मत मिले थे।
लेकिन यह चुनाव एकतरफा नहीं है। सच कहा जाय, तो 1969 के बाद का यह सबसे ज्यादा टक्कर वाला चुनाव होगा। 1969 में कांग्रेस के नीलम संजीव रेड्डी और वी वी गिरी के बीच मुकाबला हुआ था। श्री गिरी निर्दलीय उम्मीदवार थे। पर तब के प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी द्वारा कांग्रेसियों को अपनी अंतरात्मा की आवाज पर वोट देने का आग्रह करने के बाद कांग्रेसी मतदाताओ के एक बड़े हिस्से ने श्री गिरी को मतदान कर दिया था और वे दूसरे चक्र की गिनती के बाद बहुत ही मामूली मतों से विजयी हुए थे। कांग्रेस उम्मीदवार श्री रेड्डी की हार के कारण कांग्रेस का विभाजन ही हो गया था।
राष्ट्रपति का पहली बार चुनाव 1950 में हुआ था। उस समय आज जैसा राष्ट्रपति का निर्वाचक मंडल नहीं था। संविधान सभा ही संसद का काम कर रही थी। उस चुनाव में राजेन्द्र प्रसाद निर्विरोध चुने गए थे। उसके बाद के दो चुनावो में भी राजेन्द्र प्रसाद राष्ट्रपति चुने गए थे, लेकिन तब उन्हें मतदान का सामना करना पड़ा था।
1977 में नीलम संजीव रेड्डी निर्विरोध चुने गए थे। उस समय केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार थी और कांग्रेस विपक्ष में थी। तब कांग्रेस ने श्री रेड्डी के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा किया और वे बिना मतदान के ही राष्ट्रपति चुन लिए गए। 1982 में ज्ञानी जैल सिंह राष्ट्रपति बने थे। 1987 में वेंकटरमण इस पद पर विराजमान हुए, तो 1992 में शंकर दयाल शर्मा को राष्ट्रपति भवन सुशोभित करने का मौका मिला।
इस बार एनडीए का पलड़ा पहले से ही भारी था। उत्तर प्रदेश विधानसभा में शानदार जीत हासिल करने के बाद भारतीय जनता पार्टी के सामने अपनी पसंद के राष्ट्रपति बनाने के लिए किसी प्रकार की चुनौती रह ही नहीं गई थी। अब तो उसे गैर एनडीए के अनेक दलों का समर्थन हासिल हो गया है। नरेन्द्र मोदी के धुर विरोधी समझे जाने वाले नीतीश कुमार भी रामनाथ कोविंद का समर्थन कर रहे हैं। इसलिए उनकी जीत निश्चित है। (संवाद)
संघ परिवार का राष्ट्रपति
रामनाथ कोविंद मीरा कुमार को हरा सकते हैं
कल्याणी शंकर - 2017-06-28 13:25
अब यह लगभग निश्चित हो गया है कि नरेन्द्र मोदी के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद भारत के अगले राष्ट्रपति होंगे। वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी 25 जुलाई को अपना कार्यकाल पूरा कर रहे हैं और उसके पहले 17 जुलाई को नये राष्ट्रपति के लिए मतदान होना है।