भारत के नजरिए से देखा जाए तो यहां के लोग बातचीत करने के मूड में ही नहीं है। भारत में बातचीत विरोधी माहौल बना हुआ है। यह माहौल 2008 के मुंबई हमले के कारण बना था। इस माहौल के अलावा भारत के नीति निर्धारकों में यह धारणा है कि पाकिस्तान के राजनैतिक नेतृत्व के हाथ में अब बहुत कुछ रह भी नहीं गया है और वहां की सत्ता असल में सेनाध्यक्ष कयानी के हाथ में है। इसलिए जरदारी और गिलानी की जोड़ी भारत को किसी तरह के वायदे देने की स्थिति में भी नहीं है। जाहिर है, बातचीत के नतीजों के प्रति किसी तरह की उम्मीद ऐसी परिस्थिति में नहीं की जा सकती।

जब परवेज मुशर्रफ से बातचीत की जाती थी, तो यह पता होता था कि मुशर्रफ जो कह रहे हैं, उसे पूरा करने की क्षमता भी रखते हैं, क्योंकि सत्ता पर उनकी पूरी पकड़ थी। लेकिन बगले सप्ताह जो बातचीत होगी उसमें भारतीय वार्ताकार को पता है कि पाकिस्तान की ओर से बातचीत की मेज पर बैठा अधिकारी के पास अधिकार ही नहीं है।

इसके बावजूद यदि भारत को बातचीत करनी पड़ रही है, तो इसका कारण यही है कि इसे यह दिखाना है कि यह बातचीत से दूर नहीं भागता है। भारत उक लोकतांत्रिक देश है और हमसे ज्यादा जिम्मेदार होने की उम्मीद की जाती है। सवाल उठता है कि किसी नतीजे पर पहुंचने की नाउम्मीदी के साथ बातचीत की जरूरत ही क्या है?

तो इसका जवाब यह है कि पाकिस्तान को अमेरिका और अन्य नाटो देश तालिबान के खिलाफ पूरी तरह से उतारना चाहते हैं। पाकिस्तान के तालिबानियों के खिलाफ पाकिस्तान की सेना न चाहते हुए भी कार्रवाई कर रही है, लेकिन अब उसे अफगानिस्तान के तालिबानियों के खिलाफ भी लगाने की कोशिश की जा रही है।

अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ नाटों की सेना ने दबाव बढ़ा दिया है। उस दबाव के बाद वे पाकिस्तान की ओर पलायन करेंगे। नाटो चाहता है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान से भागकर उसके देश में प्रवेश करने वाले तालिबानियों के खिलाफ कार्रवाई करे। ऐसा करने के लिए उसे अपनी सेना को भारतीय सीमा से हटाकर अफगानिस्तान की सीमा पर लगाना होगा। लेकिन पाकिस्तान भारत से आक्रमण के डर का हवाला देते हुए अपनी सेना के जमाव को भारत की सीमा के साथ ही रखना चाहता है।

पाकिस्तान अमेरिका और नाटो सेना की सहायता मात्र इसीलिए कर रहा है क्योंकि उसे उनसे सहायता चाहिए। उसकी आर्थिक हालत बेहद खराब है ओर वह अमेरिकी सहायता पर निर्भ हो गया है। लेकिन अपनी सेना को वह पूरी तरह तालिबान के खिलाफ झोंकना भी वह नहीं चाहता है। उसका कारण यह है कि तालिबान का इस्तेमाल वह भारत के खिलाफ करना चाहता है। उसे पता है कि नाटो की सेना के अफगानिस्तान से चले जाने के बाद फिर वहां तालिबान का राज हो जाएगा और तग वह उनका भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर सकेगा।

इसलिए पाकिस्तान चाहता है कि भारत के साथ उसके रिश्ते और भी खराब हो जाए और दोनों देशों के बीच तनाव बना रहे, ताकि उसे अपनी सेना को ज्यादा से ज्यादा संख्या में भारत की सीमा के साथ तैनात रखने का बहाना मिले। जाहिर है, इस तरह के माहौल में होने वाली बातचीत से क्या उम्मीद की जा सकती है? (संवाद)