वर्ष 1950 में ही हमारे पहले राष्ट्रपति का चुनाव हुआ था। 1946 से लेकर 1949 तक संविधान सभा की कार्यवाही की अध्यक्षता डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद ने की थी। इस दरम्यान उनकी विद्वता की धाक पूरे देश में जम चुकी थी। 1950 में राजेन्द्र बाबू बिना किसी विरोध के राष्ट्रपति चुन लिए गए थे। जहां नेहरू जी राजगोपालाचारी को राष्ट्रपति बनाना चाहते थे वहीं सरदार पटेल की पसंद डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद थे। नेहरू जी का विचार था कि राजेन्द्र बाबू एक दक्षिणपंथी राजनीतिज्ञ हैं जबकि राजगोपालाचारी एक प्रगतिशील दूरदर्शी राजनीतिज्ञ हैं। नेहरू जी को यह भी भरोसा था कि राजाजी से उनकी अच्छी पटेगी।
नेहरू जी ने दिनांक 5 अक्टूबर, 1949 को कांग्रेस सांसदों की एक बैठक बुलाई और इस बैठक में उन्होंने राजाजी के नाम की चर्चा की। परंतु उन्हें यह महसूस हुआ कि राजाजी के नाम पर अनेक कांग्रेसी सांसद सहमत नहीं थे। नेहरू जी ने जब इस बात को महसूस किया तो राजेन्द्र बाबू के नाम पर अपनी सहमति दे दी। अंततः नेहरू जी ने स्वयं राजेन्द्र बाबू के नाम का प्रस्ताव किया और सरदार पटेल ने उसका समर्थन किया।
इस तरह प्रथम राष्ट्रपति का चुनाव सर्वसहमति से हो गया। दूसरे चुनाव में ऐसी स्थिति नहीं थी। राजेन्द्र बाबू के विरोध में केटी शाह ने चुनाव लड़ा। केटी शाह संविधान सभा के सदस्य रहे थे। इस तरह दूसरा चुनाव सर्वसहमति से सम्पन्न नहीं हो सका।
प्रथम चुनाव के बाद जो सबसे दिलचस्प और विवादग्रस्त चुनाव रहा उस समय इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं। वे 1966 में प्रधानमंत्री बनी थीं। उस समय डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन राष्ट्रपति थे। राधाकृष्णन के अवकाश प्राप्त करने के बाद ज़ाकिर हुसैन राष्ट्रपति बने। ज़ाकिर हुसैन एक अत्यधिक विद्वान व्यक्ति थे। उन्हें वर्ष 1972 तक राष्ट्रपति के पद पर रहना था परंतु 1969 में उनकी आकस्मिक मृत्यु हो गई। इससे नए राष्ट्रपति चुनने की आवश्यकता हुई। राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस का उम्मीदवार कौन हो, इस पर विचार करने के लिए 11 जुलाई, 1969 में बैंगलोर में कांग्रेस संसदीय बोर्ड की बैठक हुई। बैठक में एस. निजलिंगप्पा कांग्रेस अध्यक्ष थे, उन्हें सिंडीकेट गुट का नेता समझा जाता था और सिंडीकेट एक तरह से इंदिरा गांधी विरोधी गुट थी। बैंगलोर की बैठक में निजलिंगप्पा ने नीलम संजीव रेड्डी का नाम राष्ट्रपति पद के लिए प्रस्तावित किया। इंदिरा गांधी ने इसका विरोध किया और उन्होंने उस समय के अत्यधिक लोकप्रिय दलित नेता जगजीवन राम का नाम प्रस्तावित किया। दोनों नामों पर मत मांगा गया। रेड्डी के पक्ष में चार मत आए और जगजीवन राम के पक्ष में दो। इंदिरा जी को यह निर्णय पसंद नहीं आया। उन्हें संदेह था कि यदि रेड्डी राष्ट्रपति बनेंगे तो उनकी स्थिति को कमज़ोर करने का षड़यंत्र हो सकता है।
इसी बीच स्थानापन्न राष्ट्रपति व्ही.व्ही. गिरी ने घोषणा कर दी कि वे एक आज़ाद उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति का चुनाव लडें़गे। इस घोषणा से देश में सनसनी फैल गई। गिरी की घोषणा के बाद इंदिरा जी से पूछा गया कि उनका उम्मीदवार कौन है? उन्होंने जवाब दिया कि सभी अपनी ‘आत्मा की आवाज़’ के अनुसार मतदान करें। इंदिरा जी की घोषणा के बाद निजलिंगप्पा ने स्वतंत्र पार्टी और जनसंघ से सहयोग की अपील की। परंतु इन पार्टियों ने सीडी देशमुख को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया गया थ। इस पर निजलिंगप्पा ने अन्य पार्टियों से कहा कि वे कम से कम द्वितीय वरीयता का मत रेड्डी को दें, परंतु इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। चुनाव इतना कश्मकश पूर्ण था कि प्रथम वरीयता की गिनती में कोई भी उम्मीदवार आवश्यक मत प्राप्त नहीं कर सका। इसके बाद द्वितीय वरीयता के मतों की गिनती हुई जिसमें गिरी को 4.20 लाख मत मिले और रेड्डी को 4.05 लाख मत मिले। देशमुख को 1.13 लाख मत मिले। गिरी विजयी घोषित किए गए। परंतु उसके बाद कांग्रेस में जो फूट पड़ी, उसने आगे जाकर और भी गंभीर रूप ले लिया और अंततः सिंडीकेट ने इंदिरा जी को कांग्रेस से निष्काषित कर दिया और इंदिरा जी ने अलग से अपनी पार्टी बनाई।।
राजेन्द्र बाबू के अवकाश प्राप्त करने के बाद डाॅ. राधाकृष्णन राष्ट्रपति बने। उनका विरोध एक हरीनाम नाम के व्यक्ति ने किया जिसको सिर्फ 6,341 मत मिले। वर्ष 1967 में ज़ाकिर हुसैन राष्ट्रपति बने। संयोग से वे देश के प्रथम मुस्लिम राष्ट्रपति थे। परंतु वे अपनी टर्म पूरी नहीं कर सके और उनकी 1969 में आकस्मिक मृत्यु हो गई। व्ही.व्ही. गिरी के राष्ट्रपति पद से हटने के बाद फखरूद्दीन अली अहमद राष्ट्रपति बने। उनका चुनाव भी निर्विरोध नहीं रहा और दिलीप चैधरी नाम के एक जानेमाने नेता ने उनका विरोध किया। ज़ाकिर हुसैन के समान फखरूद्दीन अली अहमद की मृत्यु भी पद पर रहते हुए हुई। फखरूद्दीन अली अहमद के राष्ट्रपति पद पर रहते हुए ही देश में आपातकाल लागू किया गया। वर्ष 1977 में इंदिरा जी के हाथ से सत्ता चली गई। मोरारजी भाई प्रधानमंत्री बने। जो विपक्ष में थे वे सत्ता में आ गए और उन्होंने लगभग इंदिरा जी से बदला लेने के लिए संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति बनाया। वे निर्विरोध राष्ट्रपति बने।।
इंदिरा जी 1980 में फिर प्रधानमंत्री बन गई। 1982 में संपन्न चुनाव में जैल सिंह राष्ट्रपति बने। उनका विरोध सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एचआर खन्ना ने किया। इंदिरा जी की मृत्यु के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने और उनके कार्यकाल में आर वेंकटरमण राष्ट्रपति बने। उनका विरोध सर्वोच्च न्यायालय के एक पूर्व न्यायाधीश वी.आर. कृष्णाअय्यर ने किया। वेंकटरमण के बाद भोपाल निवासी मध्यप्रदेश में मंत्री रहे डाॅ. शंकरदयाल शर्मा राष्ट्रपति बने। राष्ट्रपति बनने के पूर्व डाॅ. शर्मा केन्द्रीय मंत्री परिषद के सदस्य भी रहे, कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे और पंजाब और आंध्रप्रदेश के राज्यपाल भी रहे। डाॅ. शंकरदयाल शर्मा के बाद के.आर. नारायणन जिन्होंने वर्षों तक विदेश विभाग को सेवाएं दीं राष्ट्रपति बने। के.आर. नारायणन को इंदर कुमार गुजराल के प्रधानमंत्रित्व वाली सरकार ने राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया था। नारायणन देश के प्रथम दलित राष्ट्रपति थे। उनका विरोध पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन सेशन ने किया था। सेशन को शिवसेना का समर्थन प्राप्त था।
उसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। उस समय नारायणन को यह उम्मीद थी कि उन्हें पुनः राष्ट्रपति बनाया जाएगा। नारायणन को कांगे्रस वामपंथी और क्षेत्रीय दलों का समर्थन प्राप्त था। परंतु वाजपेयी इस बात से सहमत नहीं हुए। इस बीच उपराष्ट्रपति कृष्णकांत का नाम चर्चा में आया। परंतु शिवसेना और भाजपा ने पूर्व राज्यपाल पीसी एलेक्जेंडर का नाम प्रस्तावित किया, जो विरोधी दलों को पसंद नहीं आया। इस पर वाजपेयी ने एपीजे अब्दुल कलाम का नाम प्रस्तावित कया। कलाम का समर्थन मुलायम सिंह यादव, तेलुगु देशम पार्टी, अन्ना डीएमके और बहुजन समाज पार्टी ने भी किया। कांग्रेस ने भी अंततः समर्थन दे दिया। परंतु वामपंथी दलों ने आज़ाद हिन्द फौज की कमांडर रहीं लक्ष्मी सहगल का नाम प्रस्तावित किया अंततः कलाम राष्ट्रपति बन गए। वे देश के पहले गैर राजनीतिज्ञ राष्ट्रपति थे।
उसके बाद श्रीमती प्रतिभा पाटिल राष्ट्रपति बनीं वे भी देश की पहली महिला राष्ट्रपति थीं। उनका नाम कांग्रेस ने प्रस्तावित किया था और वामपंथी पार्टियों ने भी उनका समर्थन किया था। उसके बाद कांग्रेस के अत्यधिक वरिष्ठ नेता प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति बने। उन्हें कांग्रेस के अतिरिक्त जनता दल यूनाईटेड और शिवसेना ने भी समर्थन दिया और वे अच्छे-खासे बहुमत से चुनाव जीते। (संवाद)
राष्ट्रपति चुनावः दो को छोड़कर सारे चुनाव मतदान से ही हुए
एल.एस. हरदेनिया - 2017-06-30 10:53
हमारे देश में राष्ट्रपति का चुनाव अनेक अवसरों पर काफी विवादग्रस्त वातावरण में संपन्न हुआ है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि राष्ट्रपति पद का पहला चुनाव भी विवादग्रस्त था। वर्ष 1949 के दिनांक 25 नवंबर को हमने अपने संविधान को पारित कर लिया था। उसके बाद 26 जनवरी को हम पूर्ण संप्रभुता प्राप्त लोकतंत्र देश बन गए थे।