और यह मसला सिर्फ भूटान की संप्रभुता से ही ताल्लुकात नहीं रखता, बल्कि भारत की सुरक्षा भी इससे जुड़ी हुई है। जिस डोकलाम में चीन रोड बना रहा है, वह चुंबी घाटी में है और इस घाटी के ठीक नीचे भारत का सिलीगुड़ी गलियारा है, जो भारत की मुख्यभूमि को इसके पूर्वोत्तर प्रांतों से जोड़ता है। यह गलियारा बहुत ही पतला है और यह भारत व भूटान के बीच में है। एक जगह तो यह सिर्फ 17 किलोमीटर ही है। इसके कारण इसे चिकेन नेक यानी मुर्गे की गर्दन तक कहा जाता है।
यह गलियारा भारत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। यदि इसे हमारा कोई दुश्मन बाधित कर दे, तो भारत की मुख्यभूमि से पूर्वोत्तर राज्यों का संपर्क ही टूट जाएगा। इसलिए इस गलियारे की सुरक्षा को सुनिश्चित करना भारत के लिए बहुत जरूरी है। पर चीन जिस डोकलाम में रोड बना रहा है, वह इस गलियारे से सिर्फ 50 किलोमीटर की दूरी पर ही है और यह गलियारे के ठीक ऊपर है। फिलहाल चुंबी घाटी की स्थिति ऐसी है कि वहां सैनिक कार्रवाई अथवा सेना का मूवमेंट बहुत ही कठिन है। इसके कारण भारत का यह गलियारा चीन से खतरा महसूस नहीं करता है।
पर चीन उस दुर्गम चुंबी घाटी में सैनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण कर रहा है, जो भारत की सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा है। चीन अपने इलाके में क्या करता है, इस पर तो भारत का कोई वश नहीं, लेकिन जब कोई उसके या उसके किसी सहयोगी देश के इलाके में सैन्य निर्माण करता है, तो उसे वैसा करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। और भूटान भारत का सिर्फ सहयोगी देश नहीं है, बल्कि इसका भारत के साथ सुरक्षा समझौता भी है, जिसके तहत भारत उसकी सुरक्षा की गारंटी देता है।
वर्तमान तनानती का एक और संदर्भ है और वह यह है कि भूटान का चीन के साथ कोई सीधा राजनयिक संबंध नहीं है। भूटान में चीन का कोई दूतावास नहीं है और चीन का भूटान में कोई दूतावास नहीं है। दोनों के संबंधों के बीच भारत आ जाता है। यदि भूटान को चीन से बात करनी होती है, तो उसे दिल्ली की सहायता लेनी होती है और यही काम चीन को भी भूटान से बातचीत करने के लिए करना होता है।
यही कारण है कि जब चीन ने भूटान में अतिक्रमण किया, तो भूटान उस मामले को लेकर भारत आ गया। कहा जाता है कि चीन ने सिक्किम सेक्टर में अतिक्रमण करने के क्रम में एक भारतीय सैनिक पोस्ट को भी हटा दिया। भूटान के लोगों ने जब चीन द्वारा उसके इलाके में सड़क निर्माण पर आपत्ति उठाई, तो उनकी आपत्ति को दरकिनार कर दिया गया और उन्हें वहां से खदेड़ दिया गया। उसके बाद ही भारत को हस्तक्षेप करना पड़ा और चीन द्वारा बनाए जा रहे रोड के काम को उसे जबरन रोकना पड़ा।
भारत द्वारा सड़क निर्माण को रोकने की कार्रवाई के बाद चीन अब आंखें दिखा रहा है और प्रच्छन्न रूप से भारत को युद्ध की धमकी भी दे रहा है। लेकिन क्या भारत को इस धमकी से डर जाना चाहिए? 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया था और भारत की उस युद्ध में हार भी हो गई थी। उसी को चीन याद दिलाता है, लेकिन रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने सही कहा है कि इस समय का भारत 1962 का भारत नहीं रहा, इसलिए चीन को अपनी ताकत के बारे में किसी प्रकार की गलतफहमी नहीं पालनी चाहिए।
चीन का रवैया विस्तारवादी रहा है और भारत भी उसके इस रवैये का शिकार रहा है। वह भारत पर आरोप लगाता है कि उसने उसके हिस्से पर कब्जा कर रखा है, लेकिन सच्चाई यह है कि भारतभूमि का एक हिस्सा चीन के कब्जे में है। उसने अक्षय चीन पर 1962 के युद्ध के बाद कब्जा कर रखा है। वह ऐतिहासिक रूप से भारत का हिस्सा था। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के एक हिस्से को चीन ने दान में ले लिया है। जब उसे पता है कि पाकिस्तान भी उस हिस्से को अपना नहीं मानता, बल्कि विवादास्पद क्षेत्र मानता है, तो फिर चीन उसे पाकिस्तान से कैसे ले सकता है? जाहिर है कि सक्षम घाटी, जिसे पाकिस्तान ने कथित तौर पर चीन को दान में दे रखा है भारत का हिस्सा है, जिस पर चीन का अवैध कब्जा है।
बात सिर्फ अवैध कब्जे तक सीमित नहीं है, बल्कि उससे आगे बढ़कर पाकिस्तान द्वारा गैरकानूनी रूप से कब्जा किए हुए गिलगित और बल्तिस्तान से होकर चीन एक आर्थिक गलियारा बना रहा है। भारत ने आपत्ति दर्ज करवा दी है, पर चीन भारत की उस आपत्ति को भी नजरअंदाज कर रहा है और उस गलियारे के निर्माण पर आमादा है। आश्चर्य नहीं दोनों देशों के बीच उस गलियारे को लेकर भी तनातनी हो।
आश्चर्य की बात यह है कि चीन अब पंचशील समझौते की दुहाई दे रहा है। यह समझौता 1950 के दशक में भारत और चीन के बीच हुआ था। इस समझौते की धज्जियां तो चीन 1962 में ही उड़ा चुका है और उसके पहले भी उड़ा रहा था, जब वह भारतीय इलाके में चोरी छिपे सड़क निर्माण कर रहा था। 1962 के बाद भी वह यही करता आ रहा है, पर आज उसे एकाएक पंचशील की याद आने लगी है।
भारत को डोकलाम मामले पर अपना रवैया हरगिज नरम नहीं करना चाहिए। भूटान की उसने जो जिम्मेदारी ली है, उसे पूरी करनी ही होगी और इसके साथ उसका अपनी सुरक्षा समस्या भी जुड़ी हुई है। सिलीगुड़ी गलियारे को खतरे में नहीं डाला जा सकता। लगता है कि चीन का मंसूबा उस गलियारे को ब्लाॅक कर पूर्वोत्तर राज्यों से भारत का संबंध विच्छेद करना है। चीन के उस मंसूबे को नाकाम करने के लिए भारत को किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहना चाहिए। (संवाद)
डोकलाम में भारत-चीन तनाव
सुरक्षा के साथ समझौता नहीं
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-07-06 10:39
भारत और चीन के बीच 1962 के बाद का सबसे बड़ा तनाव आज सिक्किम सेक्टर में पैदा हो गया है। भारत के सिक्क्मि, चीन और भूटान का त्रिवेणी संगम डोकलाम में है और वहां भूटान की सीमा में घुसकर चीन रोड बना रहा था। भारत और भूटान के बीच एक सामरिक समझौता है, जिसके तहत भूटान की सुरक्षा की जिम्मेदारी भारत की है। जाहिर है, भारत भूटान की भूमि में चीनी अतिक्रमण को रोकने के लिए बचनबद्ध है।