इसका कारण यह है कि भारतीय जनता पार्टी की अपने सहयोगी दलों के साथ पहले से ही निर्वाचक मंडल में लगभग आधे मतों पर पकड़ थी। शेष मतों को जुटाना कोई मुश्किल काम नहीं था। कांग्रेस से किसी तरह का ताल्लुक नहीं रखने वाले सभी भाजपा विरोधी दलों ने कोविंद का समर्थन कर दिया। कांग्रेस के साथ बिहार में सत्ता की भागीदारी कर रहे नीतीश कुमार भी कोविंद के समर्थन में आ गए। इसके बाद कोविंद की जीत में किसे संदेह रह गया होगा?
रामनाथ कोविंद कौन हैं? वे एक वकील हैं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे हैं। वे मोरारजी देसाई के सहयोगी भी हुआ करते थे। भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें दो बार राज्यसभा का सांसद बनाया है। वे भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा के 4 सालों तक अध्यक्ष भी रह चुके हैं। जब देश में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी, उसी समय वे अनुसूचित जाति मोर्चे के अध्यक्ष थे। वे अखिल भारतीय कोली समाज के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। कोली जाति किसी प्रदेश में अनुसूचित जाति है तो किसी राज्य में ओबीसी।
आखिर नरेन्द्र मोदी ने कोविंद को राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में क्यों चुना? इसका एक बड़ा कारण तो यह है कि नरेन्द्र मोदी दलितों को अपने साथ जोड़ने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। वैसे तो उनकी नजर देश भर के दलितों पर है, लेकिन खासकर वे उत्तर प्रदेश के दलित समर्थन को अपने लिए बहुत निर्णायक मानते हैं। वहां भाजपा ने लोकसभा के साथ साथ विधानसभा के चुनाव में भारी जीत हासिल की और दोनों चुनावों में मायावती की बसपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। लोकसभा चुनाव में तो मायावती को एक भी सीट नहीं मिली और विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को महज 19 सीटों पर जीत हासिल हुई।
भाजपा की जीत और मायावती की हार का एक कारण यह है कि माया का सामाजिक आधार कमजोर हो रहा है और उसकी कीमत पर भाजपा का सामाजिक आधार मजबूत हो रहा है। नरेन्द्र मोदी इस प्रक्रिया को और मजबूत करना चाहते हैं। हार के बावजूद मायावती को लोकसभा चुनाव में 22 फीसदी मिले। जाहिर है, दलितों के बीच अभी भी उनकी पकड़ मजबूत है। दलितों पर होने वाले अत्याचार के कारण भाजपा की उस समुदाय मे स्थिति कमजारे हो रही है। इस तथ्य से नरेन्द्र मोदी वाकिफ हैं। इसलिए दलितों का समर्थन हासिल करने के लिए उन्होंने रामनाथ कोविंद का राष्ट्रपति पद पर बैठाना उचित समझा।
उत्तर प्रदेश में दलितों में भी जाटव और गैर जाटव का विभाजन है। वहां 55 फीसदी जाटव हैं, तो 45 फीसदी गैर जाटव। प्रधानमंत्री जानते हैं कि जाटवों को मायावती से अलग करना आसान नहीं है। इसलिए भारतीय जनता पार्टी वहां जोर गैरजाटवों पर लगा रही है। रामनाथ कोविंद गैरजाटव दलित समुदाय से आते हैं और वे संघ के प्रतिबद्ध कार्यकत्र्ता भी रहे हैं।
अगले कुछ दिनों में देश के चार सबसे बड़े पदों पर आरएसएस के लोग ही दिखाई देंगे। नरेन्द्र मोदी तो आरएसएस के हैं ही, लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन भी आरएसएस की ही हैं। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के दोनों बड़े पदों पर भी संघ के लोग ही काबिज होंगे। (संवाद)
        
            
    
    
    
    
            
    कोविंद होंगे पहले संघी राष्ट्रपति
चारों बड़े पद का भगवाकरण
        
        
              कल्याणी शंकर                 -                          2017-07-19 11:20
                                                
            
                                            जब भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए रामनाथ कोविंद का नाम घोषित किया, तो ममता बनर्जी ने पूछा कि ये कोविंद कौन हैं। लेकिन उनकी जीत के प्रति किसी को कोई मुगालता नहीं है। जिस दिन नतीजे आएंगे, उस दिन सबको पता चल जाएगा कि कोविंद देश के राष्ट्रपति बनने वाले हैं और वे राष्ट्रपति बन भी जाएंगे।