आज देश के सामने अनेक समस्याएं है और उनमें से अनेक तो आपस में जुड़ी हुई भी हैं। आज जो समस्याएं सबसे ज्यादा परेशान कर रही हैं, वह आय की विषमता है। इसके कारण समाज में असंतुलन पैदा हो गया है। यह संतुलन सिर्फ लोगों की अमीरी और गरीबी के रूप में ही सामने नहीं आया है, बल्कि उसके कारण देश में क्षेत्रीय असंतुलन भी बढ़ता जा रहा है। इस बढ़ते क्षेत्रीय असंतुलन के कारण भारी पैमाने पर देश के एक इलाकांे से दूसरे इलाकों में लोगों का पलायन हो रहा है।

यह पलायन इतना तेज है और इसका स्तर इतना ज्यादा है कि इसके कारण अनेक किस्म की सांस्कृतिक समस्याएं पैदा हो गई हैं। कोई विकसित क्षेत्र बाहर से आए लोगों के कारण इतना आहत महसूस कर रहा है कि उसे लगता है कि उसकी भाषा ही खतरे में पड़ रही है और वह अपनी भाषा को बाहर से आए लोगों पर थोपने की कोशिश कर रहा है। महाराष्ट्र और कर्नाटक में हम इसकी बानगी देख रहे हैं।

सच कहा जाय, तो आजादी के बाद हमारी योजनाओं का उद्देश्य भी यही था कि हम सामाजिक न्याय के साथ विकास करें। सामाजिक न्याय से मतलब तब आरक्षण से नहीं था, बल्कि आय के समान वितरण से थे। सही शब्दों में कहा जाय, तो इसका मतलब आय की विषमता को कम से कम करने से था। इसके लिए सरकार ने अनेक कार्यक्रम चलाए। राजकोषीय नीतियों का इस्तेमाल अमीरों से ज्यादा से ज्याद टैक्स वसूलने और उसे ज्यादा से ज्यादा आर्थिक रूप से कमजोर लोगों पर खर्च करने के लिए किया गया।

लेकिन आय की विषमता बढ़ती गई और पाया गया कि सरकार की उन नीतियों के कारण विकास दर तेज नहीं हो रही है। उन नीतियों का समाजवादी नीतियां कहा जाता था। अनेक अर्थशास्त्री तो कहा करते थे कि यदि हमने आय का समान वितरण करने की कोशिश की, तो हम देश के सभी लोगों को गरीब बना डालेंगे। उन समाजवादी नीतियों के खिलाफ बात करने वाले लोग तेज आर्थिक विकास की बात करते थे और कहते थे कि विकास ज्यादा हुआ, तो विकास ऊपरी तबके के लोगों से छनकर नीचले तबके की ओर आएगा। अंग्रेजी में इसे ट्रिकल डाउन थ्योरी कहा गया।

1991 से शुरु हुई नई आर्थिक नीतियों के तहत इसी ट्रिकल डाउन थ्योरी पर जोर दिया गया और तेज विकास के लिए आय वितरण को सरकार ने अनदेखा कर दिया। इसका नतीजा बहुत ही भयावह हुआ है। भारत तो तेजी से विकास कर रहा है, लेकिन आय की विषमत बढ़ती जा रही है। यह विषमता न सिर्फ क्षेत्रीय है, बल्कि सेक्टर विषमता भी है, जिसके तहत खेतिहरों की आय घटती जा रही है और जो सेवा सेक्टर में हैं, उनकी आय बढ़ती जा रही है। उद्योग सेक्टर मे काम करने वाले लोगों की आय भी बढ़ रही है, हालांकि उस सेक्टर मे काम करने वालों के बीच भी भारी विषमता है। उसी तरह सेवा सेक्टर में काम करने वाले लोगों के बीच भी भारी विषमता है।

आय की विषमता को रोकने के लिए ध्यान नहीं देने का एक नतीजा किसानों की होने वाली आत्महत्याओं मे देखा जा सकता है। 1991 के पहले जब विकास की दर धीमी थी, तो किसानों की आत्महत्याएं अपवाद थीं, लेकिन विकास पर ज्यादा जोर और आय की विषमता की अनदेक्षी करने वाली नीतियों के कारण किसानों की आत्महत्याओं ने एक राष्ट्रीय समस्या पैदा कर दी है। किसानों का जो वर्ग कभी संपन्न हुआ करता था, आज विपन्न हो गया है और वे अपना फ्रस्ट्रेशन तरह तरह से निकाल रहे हैं। जाट, मराठा, कापू और पटेल जैसे संपन्न किसानों के वर्ग आज अपनी दुर्दशा के दबाव मंे आरक्षण पाने के लिए बड़े बड़े आंदोलन कर रहे हैं, जिससे देश की राजनीति भी प्रभावित हो रही है और समय समय पर काूनन व्यवस्था के लिए भी संकट पैदा हो जाता है।

यही कारण है कि आय की विषमता समाप्त करना मोदी सरकार के संकल्पों में प्राथमिकता की सूची में होना चाहिए। ट्रिकल डाउन थ्योरी यानी विकास का फल अपने आप नीचले तबकों के बीच टपक पड़ेगा वाला सिद्धांत गलत साबित हो गया है।

आर्थिक विषमता के बढ़ते कारणों की सही समीक्षा करना भी सरकार के लिए बहुत जरूरी है। अन्य कारणों के अलावा एक कारण भ्रष्टाचार भी है, जिसके कारण यह विषमता बढ़ रही है। सरकार सभी लोगों से टैक्स वसूल नहीं पाती है और जो टैक्स नहीे देते वे संपन्न होते जाते हैं। प्रशासनिक मशीनरी में भ्रष्टाचार भी सबसे टैक्स नहीं वसूल पाने का कारण है। इसके अलावा कल्याण कार्यो पर सरकार द्वारा किए जा रहे खर्च में भारी भ्रष्टाचार होता है। उसके कारण सही लोगों तक देश के खजाने तक पैसा नहीं पहुंच पाते और जो उसकी लूट करते हैं, वे संपन्न होते जाते हैं।

इसके कारण हमारी बाजार व्यवस्था में अंतर्निहित विषमता के तत्व और भी मजबूत हो जाते हैं। इसलिए जरूरत है कि राजस्व प्राप्ति में ही नहीं, बल्कि सरकारी खर्चो को भी भ्रष्टाचार मुक्त बनाया जाय। उसके कारण आय की विषमता बढ़ाने वाला एक बड़ा कारण समाप्त हो जाएगा।

मोदी सरकार ने जीएसटी लागू कर अप्रत्यक्ष कर की वसूली को पुख्ता बनाने की कोशिश की है। पर खतरा यह है कि भ्रष्टाचार के साये में यह विफल न हो जाए। आधार के द्वारा कल्याणकारी कार्यो में हो रहे भ्रष्टाचार को भी रोकने की कोशिश की जा रही है। यह रंग दिखा रहा है और सरकार बचत भी कर रही है और सही जगह पर पैसा जा रहा है।

टेक्नालाॅजी के कारण भी आर्थिक विषमता बढ़ रही है, क्योंकि जिसका उस पर अधिकार है, वह मालामाल हो रहा है। लेकिन उसी टेक्नालाॅजी का इस्तेमाल कर सरकार इस विषमता को समाप्त कर सकती है। (संवाद)