एक अनुमान के अनुसार भारत में कम से कम 40 हजार रोहिंग्या शरणार्थी आ गए हैं। वे पिछले महीने से हो रही हो रही हिंसा के बीच नहीं आए हैं, बल्कि जब 2012 में वहां भारी हिंसा हुई थी, उसी समय से यहां आए हुए हैं। जब एक बार फिर म्यान्मार भारी खून खराबे की चपेट हैं, तो यहां की सरकार यहां रह रहे शरणार्थियों को वापस भेजने की बार बार घोषणा कर रही है। फिलहाल मामला सुप्रीम कोर्ट में है और सरकार वहीं करेगी, सुप्रीम कोर्ट कहेगा, लेकिन राजनैतिक कारणों से नेता उस तरह का बयान दे रहे हैं, जिसकी आज जरूरत ही नहीं है।
आज जरूरत इस बात की है कि भारत म्यान्मार सरकार से इस समस्या के हल के लिए ठोस पहले करे। यह सच है कि म्यान्मार सरकार की अपनी सुरक्षा संबंधित चिंताएं हैं। वहां रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों के बीच आतंकवादी तत्व घुस गए हैं। बांग्लादेश का कहना है कि पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन पाकिस्तान एजेंसी आईसआई की मदद से रोहिंग्या में आतंकवादी तत्वों को पैदा कर रहे हैं और उन्हें प्रश्रय दे रहे हैं। वहां अराकान रोहिंग्या साल्वेशन नाम की एक संगठन भी खड़ा कर दिया गया है। उस संगठन से जुड़े आतंकवादियों ने फौज, पुलिस और बौद्ध भिक्षुओं पर हमला कर दर्जनों की हत्या कर दी। उसके बाद सेना ने रोहिंग्या के खिलाफ खूनी कार्रवाई शुरू कर दी, जिसमें ज्यादातर नादान लोग ही मारे गए हैं।
उस खून खराबे के बाद एक बार फिर रोहिंग्या म्यान्मार छोड़ कर भाग रहे हैं और पड़ोसी बांग्लादेश में भारी संख्या में जा चुके हैं। भारत में और शरणार्थियों की आने की संभावना है। भारत सरकार ने मानवीय कदम उठाते हुए बांग्लादेश को 60 हजार टन अनाज आपूर्ति करने का वचन दिया है, ताकि वहां रह रहे शरणार्थियों को भोजन की कमी नहीं हो। भारत सरकार का यह रवैया सराहनीय है। पर उसे सिर्फ मानवीय सहायता तक अपनी भूमिका को सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि म्यान्मार सरकार से उस समस्या के हल का स्थाई हल निकालना चाहिए।
रोहिंग्या की समस्या एक पहलू उसके अंदर आतंकवादी गतिविधियों की सक्रियता है, जिसके कारण म्यान्मार के अन्य लोग उनके खिलाफ हिंसक हो जाते हैं। आतंकवादी घटनाओं के बाद रोहिंग्या लोग भारी हिंसा के शिकार हो जाते हैं। लेकिन समस्या का एक दूसरा पहलू म्यान्मार द्वारा उन्हें अपना नागरिक मानने से इनकार कर दिया जाना है। म्यान्मार में उन्हे बांग्लादेशी शरणार्थी माना जा रहा है, जबकि वे वहां पिछले कई दशकों और कुछ तो सदियों से रह रहे हैं। औरंगजेब ने जब चटगांव पर कब्जा किया था, उसके बाद से ही बांग्लाभाषी उसे इलाके में जाकर बसने लगे थे, जिसे आज अराकान या रखाईन कहा जाता है। रखाईन को ही बांग्लाभाषी रोहंग कहा करते थे और उनकी रोहंग्या पहचान उसी से बनी है।
अंग्रेज के जमाने में उन रोहिंग्या लोगो को अराकान इंडियन भी कहा जाता था। जब भारत का बंटवारा हो रहा था, उस समय वहां की मुस्लिम आबादी ने भी पूर्वी पाकिस्तान में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की थी, लेकिन मुस्लिम लीग के नेता जिन्ना ने उनका साथ देने से यह कहते हुए मना कर दिया था कि उनकी बात को उठाना उनके वश की बात नहीं है। वह इलाका म्यान्मार में पड़ता था और जिन्ना की चिंता भारत को दो हिस्सों में विभाजित करने की थी।
जब 1948 में म्यान्मार आजाद हुआ, तो मुस्लिम आबादी से अलग देश बनाने की मांग उठी थी। उन्हें अलग देश तो मिला नहीं, उल्टे स्थानीय लोग, जो बौद्ध के साथ उनका दुराब बहुत ज्यादा बढ़ गया। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब वहां की स्थानीय आबादी जापान का साथ दे रही थी, तो मुस्लिम रोहिंग्या आबादी से ब्रिटिश सेना में भर्तियां हो रही थी। अग्रेजी सेना में शामिल होने के बाद उनको जो अस्त्र शस्त्र मिले थे, उनका इस्तेमाल उन्होंने स्थानीय बौद्धांे के खिलाफ किया था। इसके कारण दोनों समुदायों में पहले से ही ठनी हुई थी।
बांग्लादेश ने यह स्वीकार किया है कि रोहिंग्या लोगों के बीच आतंकी तत्वों ने अपना स्थान बना लिया है। भारत सरकार उनको बाहर निकालने के पीछे सबसे बड़ा तर्क यही दे रही है। भारत आतंक की समस्या का सामना पहले से ही कर रहा है। इसलिए उसके लिए भी रोहिंग्या के बीच आतंकी तत्वों का प्रवेश चिंता का एक बड़ा कारण है। लेकिन सच यह भी है कि सारे रोहिंग्या आतंकवादी नहीं हैं। उनमें से कुछ ही तत्व आतंकवादी हैं। इस बात को म्यान्मार की सरकार भी स्वीकार करती है।
इसलिए आतंकवाद की समस्या को अपने तरीके से हल किया जाय, लेकिन पूरी की पूरी रोहिंग्या आबादी को निशाना बनाना गलत है। म्यान्मार सरकार ने उनको नागरिक मानने से इनकार कर दिया है और यदि वह उसे अपना नागरिक मानती भी है, तो दोयम दर्जे का नागरिक मानती है। ऐसा मानना गलत है। उन लोगों को पूर्ण नागरिकता का अधिकार दिया जाना चाहिए। उसके बाद आतंकवादी तत्वों को मिलने वाली पनाह खुद ब खुद घट जाएगी।
एक समय था, जब बांग्लादेश अपने पड़ोसी देशों को परेशान करने वाले आतंकवादी तत्वों को पनाह देता था, लेकिन हसीना की सरकार आतंकवादियों के खिलाफ सख्त है। वह म्यान्मार की सरकार से सहयोग कर रोहिंग्या आतंकियों की कमर तोड़ देना चाहती है। अच्छा तो यह रहेगा कि भारत, बांग्लादेश और म्यान्मार मिलकर आपसी सहयोग से रोहिंग्या आबादी में पैठ बनाने वाले आतंकी तत्वों से निपटे। भारत को इसकी कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि उसके पास आतंकवाद से लड़़ने का अच्छा अनुभव है और आतंक गतिविधियों पर नजर रखने के लिए उसके पास एक बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर भी है। (संवाद)
रोहिंग्या एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है
इसे सुलझाने के लिए भारत को पहल करनी होगी
उपेन्द प्रसाद - 2017-09-22 12:18
रोहिंग्या की समस्या बद से बदतर रूप ले रही है और इधर भारत में इस पर गंदी राजनीति हो रही है। आज जरूरत इस बात की है कि भारत इस समस्या हो हल करने के लिए कोई ठोस पहले करे, लेकिन सरकार सिर्फ इस बात पर अड़ी है कि यहां आए हुए शरणार्थियों को वापस भेज दिया जाएगा। अब तो केन्द्रीय गृह मंत्री ने उन रोहिंग्या शरणार्थियों को शरणाथी मानने से भी इनकार कर दिया है और उन्हें घुसपैठिया कह रहे हैं।