प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विदेश नीति का मूल मंत्र है, ‘ सबसे पहले पड़ोसी देश’। इस मूल मंत्र के साथ बांग्लादेश और म्यान्मार के साथ संबंधों को संतुलित रखना भारत के लिए कठिन साबित हो रहा है।
रोहिंग्या मसले पर म्यान्मार और बांग्लादेश के विचार एक दूसरे के विपरीत हैं। एक ही साथ भारत दोनों के साथ खड़ा नहीं हो सकता। इस मसले पर साफ साफ रुख रखने का मतलब होगा, दोनों मे से एक को नाराज कर देना। यदि मोदी म्यान्मार की आंग सान सू की को मनाते हैं, जो बांग्लादेश की शेख हसीना नाराज हो जाएगी और यदि हसीना को खुश करने की कोशिश करते हैं तो सू की नाराज हो जाएगी।
ढाका म्यान्मार के साथ द्विपक्षीय स्तर पर निबटने की कोशिश कर रहा है। उसका रवैया बहुत ही संतुलित है। वह एक तरफ तो रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण दे रहा है और दूसरी ओर म्यान्मार के साथ उसके मसले को भी उठा रहा है, पर म्यान्मार का रवैया नकारात्मक है। दिलचस्प बात यह है कि रोंिहंग्या मसले पर भारत और चीन दोनांे ही म्यान्मार के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने रोहिंग्या को दुनिया का सबसे ज्यादा सताया हुआ समुदाय घोषित कर दिया है। वहां बौदधों का बहुमत है और रोहिंग्या अल्पसंख्यक पर वे पिछले लंबे समय से अत्याचार कर रहे हैं। इस समय म्यान्मार में करीब 10 लाख रोहिंग्या हैं। वे पश्चिमी रखाइन प्रान्त में रहते हैं। करीब 10 लाख रोहिंग्या अन्य देशों में भी रह रहे हैं।
पिछले 25 अगस्त से नई समस्या का ताजा दौर शुरू हुआ है। उस दिन रोहिंग्या अतिवादियों ने सैन्य बलों पर हमला कर उनमें से कई को मार दिया। कहते हैं कि सैन्य बल के करीब 80 लोग रोहिंग्या अतिवादियों के हमले मे मारे गए। उसके बाद सुरक्षा बलों ने रोहिंग्या आबादी पर कहर ढाह दिया है। भारी संख्या में उनके पलायन का एक दौर और शुरू हो गया। एक अनुमान के अनुसार करीब पौने चार लाख रोहिंग्या बांग्लादेश आ गए हैं।
भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर म्यान्मार का साथ दिया है। इस मसले पर वह उसकी का समर्थन करता रहा है। इसका कारण यह है कि म्यान्मार के साथ भारत के अपने रणनीतिक हित जुड़े हुए हैं। भारत के पूर्वात्तर राज्यों के उग्रवादियों की गतिविधियों पर नियंत्रण रखने के लिए भारत को म्यान्मार की सहायता की जरूरत पड़ती रहती है।
म्यान्मार के अपने दौरे में प्रधानमंत्री मोदी ने वहां की नेता सू की की प्रशंसा की और रोहिंग्या समस्या को लेकर उनकी चिंता के प्रति अपनी सहानुभूति भी दिखाई। दोनों पक्षों ने इस बात पर सहमति जताई कि आतंकवाद से मानवाधिकारो का हनन होता है। आतंकवाद के खिलाफ शून्य सहिष्णुता होनी चाहिए। इस बात पर भी दोनों नेताओं ने सुर मिलाए।
भारत के इस रवैये से म्यान्मार की नेता तो बहुत खुश हो रही थीं, लेकिन बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को यह नागवार गुजरा। सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बांग्लादेश से संबंध सुधारने के लगातार प्रयास कर रहे हैं। लेकिन इस समय बांग्लादेश रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्या से जूझ रहा है और वहां की सरकार चाहती है कि भारत इस समस्या से निबटने में उसका साथ दे।
यही कारण है कि भारत के प्रधानमंत्री द्वारा रोहिंग्या मसले पर म्यान्मार की नेता सू की की प्रशंसा करना बांग्लादेश की नेता हसीना को चुभ गया। उसके बाद भारत ने स्थिति संभालने की कोशिश की। उसने म्यान्मार से संयम बरतने का अनुरोध किया और बांग्लादेश को शरणार्थी समस्या से निबटने के लिए 7 हजार टन अनाज देने का फैसला किया। भारत ने इस बात को भी रेखांकित किया कि शरणार्थी समस्या म्यान्मार द्वारा की गई कार्रवाई के कारण पैदा हुई है। जाहिर है कि भारत इस मसले पर अपने दोनों पड़ोसी देशों के बीच फंसा पा रहा है। (संवाद)
रोहिंग्या संकट से दक्षिण एशिया में अस्थिरता
भारत बांग्लादेश और म्यान्मार के बीच फंसा
कल्याणी शंकर - 2017-09-28 10:30
राज्यविहीन रोहिंग्या की समस्या ने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। वे म्यान्मार से खदेड़े जा रहे हैं और बांग्लादेश और भारत जैसे पड़ोसी देशों में शरण ले रहे हैं। अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों ने रोहिंग्या की समस्या पर संयुक्त राष्ट्र संघ मे चिंता जताई है।