2019 के लोकसभा एवं आस- पास के राज्यों के होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर देश में अभी से राजनीतिक सरगर्मिया तेज हो गई । इस दिशा में वर्तमान केन्द्र की एनडीए सरकार द्वारा सौभाग्य योजना शुरू की जाने की घोषणा की जा रही है जिसमंे सभी को आवास, बिजली, लोन आदि देने की बात की तो जा रही है पर उद्योग लाकर युवा पीढ़ी को रोजगार देने की कहीे योजना नजर नहीं आ रही है। सड़क, बिजली, पानी , बेहतर शिक्षा आमजन को उपलब्ध कराना हर सरकार का दायित्व है पर उद्योग के बिना सबकुछ अधूरा है। आज देश के कृृषि उद्योग , बड़े उद्योग के साथ - साथ लघु उद्योग संकट के दौर से गुजर रहे है। नये उद्योग आ नहीं रहे है जहां रोजगार एवं आज के बाजार में टिकने की संभवनाएं समाहित है।

स्वतंत्रता उपरान्त देश को विकास पथ पर ले जाने में उद्योगों की भूमिका काफी महŸवपूर्ण रही है। उद्योगों से ही बेरोजगारी की ज्वलंत समस्याएं सुलझी और आज सर्वाधिक रोजगार देने वाले उद्योग धीरे - धीरे बंद होते जा रहे है। इस दिशा में सरकार भी अवचेतन की स्थिति में मौन है, जहां उसका लक्ष्य नकरात्मक ही नजर आ रहा है, जिससे देश में एक भी नये बड़े उद्योग नहीं आये जबकि उद्योगों से जुड़े प्रवासी उद्योगपतियों का प्रदेश स्तर पर कई सम्मेलन बुलाये जा चुके है। देश के भीतर भी उद्योगपतियों की कमी नहीं फिर भी सर्वाधिक रोजगार देने वाले एवं देश को विकास पथ पर ले जाने वाले नये उद्योग सृृजित नहीं हो रहे है। सार्वजनिक क्षेत्रों में पूर्व से संचालित देश के बड़े उद्योग सरकार की अनदेखी रवैये एवं संबंधित प्रशासन की लापरवाही व इस क्षेत्र में फैली लूट के कारण लाभकारी होते हुये भी घाटे में जाते रहे एवं सभी इस तरह के उजडते परिवेश पर मौन साधे रहे, जिसके कारण जनोपयोगी ये उद्योग देश के लिये घाटे का सौदा साबित होने लगे। इन उद्योगों में लाभ की जगह घाटा दिखाई देने लगा । इस तरह के हालात को सुधारने के बजाय इन उद्योगों को सरकार नई आर्थिक नीतियों के तहत औने - पौने दाम में निजी हाथों में सांैपने लगी। इन उद्योगों में आज अधिकांश बंद हो गये, जो चल रहे हैं , वे बंदी के कगार पर खड़े दिखाई दे रहे है।

इस तरह के हालात में इन उद्योगों से कार्य कर रहे हजारो लोगों को समय से पूर्व ही सवैच्छिक सेवा निवृृति के तहत कार्य मुक्त कर दिया गया एवं इनकी जगह नई नियुक्ति हुई नहीं, जिससे देश में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी फैल गई। इसके साथ ही इन जगहों पर लूट का एक और परिदृृश्य उभरकर सामने आया। निजी कम्पनियों के साथ - साथ निजी ठेकदारों की चांदी हो गई । सरकार के प्रतिनिधि से लेकर, स्थानीय प्रशासन एवं श्रमिकों की हितैषी यूनियनें सभी मिलकर इसे उजाड़कर अपनी जेब भरने में लग गये । इन उद्योगों को बचाने के बजाय इस धंधे में सभी के सभी शामिल हो गये, जिससे सर्वहितकारी एवं सर्वाधिक रोजगार देने वाले इन बड़े उद्योगों की हालत आज बदतर हो चली है। पहले इन उद्योगों को लगाने से लेकर संचालन प्रक्रिया तक जी भर कर लूटा गया और आज इसे उजाड़कर आपनी जेब भरी जा रही है। इस तरह के परिवेश से प्रभावित हुए देश के लाखों परिवार एवं भावी भविष्य के धरोहर बेरोजगार हो रही युवा पीढ़ी। जबकि आने वाली हर सरकार चुनाव पूर्व प्रतिवर्ष लाखों युवाओं को रोजगार देने की बात करती है पर समझ में नहीं आता जब संचालित बड़े - बड़े उद्योग ही बंद हो रहे है एवं नये उद्योग आ नहीं रहे है तो कैसे लाखों बेरोजगार युवा पीढ़ी को रोजगार दिया जा सकेगा ?

केन्द्र की भाजपा वर्चस्व वाली वर्तमान एनडीए सरकार भी बेरोजगार युवा पीढ़ी को रोजगार देने की बात तो करती है पर प्रधानमंत्री की सर्वाधिक विदेश यात्रा के बावयूद भी अभी तक देश में बाहर से एक भी कम्पनी द्वारा उद्योग लगाने के परिदृृश्य उजागर नहीं हो पा रहे है। जापान से करोड़ो की बजट वाली बुलेट ट्रेन आने की चर्चा जोर - शोर से जरूर हो रही है, ऐसे परिवेश में जहां वर्तमान संचालित भारतीय रेल भी सही ढंग से संचालित नहीं हो पा रही है। यहां ट्रेन की संख्या जिस अनुपात में बढ़ती जा रही है, उस अनुपात में न तो रेल लाइनें विकसित हो रही है , न नई तकनीकी। ट्रेन का लेट हो जाना, पटरी से बार - बार उतर जाना एवं आपस में टकरा जाना आम बात हो गई। बुलेट ट्रेन लाने से पूर्व इस दिशा में नई तकनीकी द्वारा बेहतर सुधार किये जाने की आज आवश्यकता है। जिससे भविष्य में यहां कोई ट्रेन न लेट हो सके, न पटरी से उतरे सके न आपस में टकरा सके।

आज देश में मेट्रो की होड़ मची हुई है। मोबाईल एवं इंटरनेट सेवा का विस्तार हो रहा है। निजी कम्पनियां पग पसार रही है । पर रोजगार देने वाले उद्योग लाने की कोई बात नहीं कर रहा है। जो उद्योग बंद हो रहे है, उसे बचाने की कोई बात नहीं कर रहा है। देश का विकास सभी चाहते है पर इस तरह की प्रक्रियाओं से नहीं जहां देश पर अनावश्यक अर्थ भार पड़े एवं देश की लाखों युवा पीढ़ी रोजगार के लिये दर - दर भटके । उस समय को याद करें जब तत्कालीन केन्द्र की कांग्रेस सरकार के तहत विदेशों के सहयोग से देश में केन्द्र स्तर एवं राज्य स्तर पर खनन,मेटल, कपड़ा ,सड़क, परिवहन, बिजली सहित अन्य क्षेत्रों में बड़े -बड़े उद्योग लगाये गये जिससे देश में एक बार बेरोजगारी नाम की चीज मिट गई। इस तरह के बेहतर परिवेश को हम संभाल तो नहीं सके पर सबक जरूर ले सकते है। (संवाद)