इस बात के प्रमाण है कि परमाणु ऊर्जा के उत्पादन में कदम कदम पर खतरे हैं। यूरेनियम के खनन से ही यह खतरा शुरू हो जाता है। उसे खदान से उठाकर परमाणु संयंत्रों तक ले जाने में भी खतरा है। संयंत्रों में उसके इस्तेमाल भी खतरे से खाली नहीं है। परमाणु ़ऊर्जा के उत्पादन के बाद जो कचरा निकलता है, उसे ठिकाने लगाने में भी बहुत खतरों का सामना करना पड़ता है।
दुनिया में अबतक अनेक बार परमाणु ठिकानों पर दुर्घटनाएं हुई हैं और उनका भारी खामियाजा भुगतना पड़ा है। 1979 में थ्री माइल टापू पर दुर्घटना हुई थी। 1986 में चेर्नोबिल में बहुत बड़ा हादसा हुआ था। पिछले 2011 में जापान के फुकुसामा में तो अब तक का सबसे बड़ा परमाणु हादसा हुआ हैं
भारत में भी छोटे छोटे स्तर की परमाणु दुर्घटनाएं होती रही हैं। लेकिन उनके बारे में खबरें दबा दी गईं। सूचना के अधिकर का कानून के तहत भी इस तरह की जानकारियां पाने की व्यवस्था नहीं की गई है।
परमाणु ऊर्जा के उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर भारी संख्या में काम करने वालों की जरूरत पड़ती है। चूंकि परमाणु ऊर्जा का सीधा संबंध विकिरण से है, इसलिए समय समय पर यह पता लगाना जरूरी होता है कि परमाणु संयंत्रों में काम करने वाले लोग अथवा संयंत्रों के आसपास रहने वाले लोगों को इसके कारण कोई नुकसान हो रहा है या नहीं।
इंडियन डाॅक्टर्स फाॅर पीस एंड डेवलेपमंेट ने जादूगोड़ा यूरेनियम खदान के आसपास के लोगों के स्वाथ का सर्वेक्षण किया। यह खदान झारखंड में स्थित है। डाॅक्टर शकील उर रहमान के नेतृत्व में यह अध्ययन किया गया। वे इस समय इंडियन डाॅक्टर्स फाॅर पीस और डेवेलपमेंट के महासचिव हैं।
अध्ययन में पाया गया कि वहां के लोगों को विकिरण से संबंधित अनेक प्रकार की बीमारियां हैं। जन्म के साथ ही बच्चे डिफाॅमिटीज के शिकार हो रहे हैं। मतलब कि उनके किसी न किसी अंग में कोई न कोई विकृति पैदा हो रही है। करीब साढ़े चार प्रतिशत बच्चे आंगिक विकृति के साथ पैदा हो रहे हैं।
अध्ययन मे यह भी पाया गया कि इन क्षेत्रों मे विकलांगों की संख्या राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है।
इतना ही नहीं, इन शारीरिक विकृतियों के कारण मरने वाले बच्चों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। जितने बच्चों की इस इलाके में मौत हुई, उनमें से सवा नौ फीसदी की मौत उन्हीें विकृतियों के कारण हुई थी, ऐसा उनकी मांओं ने बताया।
इसका मतलब हुआ कि इस इलाके के बच्चों पर विकिरण का असर हो रहा है। वे इससे प्रभावित हो रहे हैं। उनमें विकलांगता आ रही और कई तो उनमें मर भी जा रहे हैं।
विकिरण के कारण बांझपन और नपुंसकता की समस्या भी पैदा रही है। इसके कारण जल्दी बच्चा भी पैदा नहीं हो रहे। अध्ययन में पाया गया कि साढे़ नौ फीसदी से भी ज्यादा शादीशुदा जोड़ों को उस समय तक बच्चा पैदा नहीं हुआ था, जबकि वे गर्भ निरोधक का इस्तेमाल नहीं कर रहे थे।
यूरेनियम खदान के पास रहने वाले लोगों पर कैंसर का खतरा भी ज्यादा पाया गया। यह नहीं, उनकी औसत आयु भी कम पाई गई। (संवाद)
परमाणु संयंत्रों में काम करने वाले विकिरण से ग्रस्त
यूरेनियम खदानों में काम करने वालो का स्वास्थ्य भी खतरे में
डाॅ अरुण मित्र - 2017-10-07 11:36
परमाणु ऊर्जा को हमारे देश में ऊर्जा समस्या का रामबाण माना जा रहा है। यह सच है कि हमारे सामने ऊर्जा का गंभीर संकट है। हमें इसके लिए आयात पर निर्भर होना पड़ रहा है। हमारे विकास के लिए इसकी बहुत जरूरत है। लेकिन सवाल यह भी खड़े हो रहे हैं कि इस समस्या के समाधान का जवाब क्या वाकई परमाणु ऊर्जा है?