इस खबर से दिल्ली और असम में काफी हलचल मची। हालांकि चीन ने आधिकारिक तौर से उस रिपोर्ट का खंडन कर दिया है, लेकिन उसका अतीत डराने वाला है। सच कहा जाय तो चीन पहले से ही ब्रह्मपुत्र के पानी को नियंत्रित कर रहा है और उसके कारण पानी का प्रवाह कमजोर हो गया है। उसने ब्रह्मपुत्र पर डैम बनाकर बिजली उत्पादन का काम शुरू कर दिया है। ब्रह्मपुत्र में मिलने वाली एक नदी की तो उसने धारा ही बदल डाली है। यही कारण है कि चीन द्वारा आधिकारिक रूप से खंडन जारी करने के बावजूद हमें इस मसले पर सतर्क रहने की जरूरत है।

अपने पड़ोसी देशों के हितों की अनदेखी करने में चीन कुख्यात रहा है। खासकर जब नदियों का मामला होता है तो उसने कभी भी उन देशों के हितों की चिंता नहीं की, जिन देशों में उनके देश से नदी निकल कर जाती है। ब्रह्मपुत्र के पानी का दोहन तो वह भारत के हितों को नुकसान पहुंचाते हुए कर ही रहा है एक और नदी मेकांग के साथ भी वह वैसा ही कर रहा है।

मेकांग अनेक देशों से गुजरकर बहने वाली नदी है। वह चीन से निकलकर म्यान्मार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया और वियतनाम में बहती है। इसका पानी वियतनाम के डेल्टा क्षेत्र को सिंचित करता है। वियतनाम का डेल्टा क्षेत्र बहुत उपजाऊ है और वह अपनी जैविक विविधता के लिए मशहूर है। लेकिन चीन मेकांग के पानी को भी नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा है। पनबिजली बनाने के लिए वह उस पर भी बड़े बड़े बांध बना रहा है। इसके कारण चीन के नीचे वाले देशों को भारी नुकसान होगा। सवाल उठता है कि जब चीन दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के हितों को नकार सकता है, तो वह दक्षिण एशिया के भारत और बांग्लादेश के हितों की परवाह क्यों करने लगा?

ब्रह्मपुत्र तिब्बत से होते हुए अरुणाचल प्रदेश में भारत में प्रवेश करती है। फिर वह असम होते हुए बांग्लादेश जाती है और फिर वहां बंगाल की खाड़ी में समा जाती है। वह असम और बांग्लादेश के लिए खास मायने रखती है। असम की ब्रह्मपुत्र घाटी 56 हजार वर्ग किलोमीटर से भी बड़ी है। वहां के लोगों का जीवन ब्रह्मपुत्र ही है।

यदि चीन ने ब्रह्मपुत्र के पानी को सुरंग बनाकर अपने पश्चिमी हिस्से की ओर मोड़ दिया तो असम का क्या होगा? यह सवाल बेहद गंभीर है। ब्रह्मपुत्र पहले से ही एक बड़ी समस्या का सामना कर रहा है। 1950 में भूकंप आने के बाद इसके ब्रह्मपुत्र के तल में गाद तेजी से बन रहा है और यह लगातार उथला होता जा रहा है। इसके उथला होते जाने के कारण प्रत्येक साल मानसून शुरू होते ही इसका पानी चारों ओर फैलने लगता है, जिसके कारण जबर्दस्त बाढ़ आती है और भारी बर्बादी होती है। गाद जमा होने की इस समस्या को अभी तक हल नहीं किया जा सका है और इस समस्या हल आसान भी नहीं है। इसका कारण यह है कि गाद का हटाकर यदि किनारे कर दिया जाए, तो अगले मानसून में वह पानी के बहाव के साथ फिर नदी में मिल जाएगा और यदि दूर दराज इलाके में उसे भेजा जाय, तो वह बहुत महंगा पड़ेगा।

यदि चीन ने वास्तव में सुरंग बनाकर ब्रह्मपुत्र नदी के पानी की दिशा को मोड़ दिया, तो भारत में ब्रह्मपुत्र के अस्तित्व को ही खतरा पैदा हो सकता है। (संवाद)