1988 के चुनाव के बाद वहां दोनों पार्टियां बारी बारी से सत्ता में आ रही है। इस बार वहां सीधा मुकाबला है, क्योंकि इस बार तीसरा पक्ष वहां है ही नहीं। गौरतलब हो कि 1998 के चुनाव में सुखराम की हिमाचल विकास पार्टी वहां चुनाव में हिस्सा ले रही थी। 2003 के चुनाव में भी सुखराम अपनी पार्टी की ताकत आजमा रहे थे। 2007 में मायावती की बहुजन समाज पार्टी बड़े जोर शोर से मैदान में आ गई थी। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मुनेश्वर सिंह ने हिमाचल लोकहित पार्टी का गठन कर अपनी ताकत की आजमायश कर डाली थी।

कांग्रेस ने इस बार फिर वीरभद्र सिंह को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर डाला है। वे इस समय भी मुख्यमंत्री हैं और 83 साल के हो चुके हैं। उन्हें कांग्रेस को इसलिए अपना उम्मीदवार घोषित करना पड़ा, क्योंकि उनसे अच्छा उम्मीदवार उसके पास है ही नहीं। पिछले 5 दशकों की अपनी राजनीति में वीरभद्र सिंह ने कांग्रेस के लिए अपनी उपयोगिता साबित की है। पर क्या वे अब भी उतने ही कामयाब साबित होंगे? वीरभद्र सिंह इस चुनाव में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्हें अपने बेटे विक्रमादित्य को भी राजनीति में स्थापित करना है। विक्रमादित्य शिमला ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं।

कांग्रेस इस समय गुजरात में एक बार फिर सरकार में आने की कोशिश कर रही है, जबकि हिमाचल प्रदेश को वीरभद्र सिंह के हवाले कर दिया गया है। वे भ्रष्टाचार के आरोप का सामना कर रहे हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय में उनका मामला लंबित है। मुख्यमंत्री 15 से 20 सभाएं रोज संबोधित कर रहे हैं। वे उम्रदराज हैं और सत्ता विरोधी लहर का सामना भी कर रहे हैं। इसके अलावा उनका अभियान भी बहुत शांतिपूर्ण है। कांग्रेस के वरिष्ठ राष्ट्रीय नेता वहां चुनाव प्रचार से बाहर हो गए हैं। राहुल गांधी ने वहां तीन रैलियों को संबोधित किया। आनंद शर्मा भी वहां आ जा रहे हैं, क्योंकि वे हिमाचल प्रदेश के ही हैं। इसके अलावा कांग्रेस का प्रचार बहुत ही सुस्त है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मजाक उड़ाते हुए कहा कि कांग्रेस के बड़े नेता चुनाव मैदान से बाहर भाग गए हैं।

दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी ने प्रेम कुमार धूमल को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाया है। वे पहले भी प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। एक अनुमान के अनुसार हिमाचल प्रदेश में राजपूतों की आबादी 38 फीसदी है। वहां के मतदाता वीरभद्र सिंह की ओर झुक रहे थे। इसे देखते हुए भाजपा ने चुनाव प्रचार के शुरू हो जाने के बाद प्रेम कुमार धूमल को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया, क्योंकि वे भी राजपूत जाति से आते हैं। धूमल की उम्र भी 70 पार कर चुकी है। वे 73 साल के हो चुके हैं। वे भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, क्योंकि 2012 के चुनाव में पराजित होने के बाद पार्टी के अंदर उन्हें दरकिनार कर दिया गया था। दिलचस्प बात यह है कि दोनों नेता नई सीटों से इस बार चुनाव लड़ रहे हैं और अपने अपने क्षेत्रों से चुनाव जीतने के लिए भी उन्हें भारी मशक्कत करना पड़ रहा है। (संवाद)