एटीएम में पैसे नहीं होते थे और बैंक से पैसा नहीं निकलता था। लेकिन लोगों ने इन सारी तकलीफों को झेल लिया कि काला धन समाप्त हो जाएगा। क्या यह अर्थव्यवस्था की सरलीकृत समझ का परिणाम था, और काला धन को समाप्त करने की जिद थी या इसके पीछे कोई और शक्ति काम कर रही थी?

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपनी इस राय पर कायम हैं कि नोटबंदी एक ‘‘संगठित लूट और वैधानिक डाका’’ था। एक साल बाद अहमदाबाद में व्यापारियों को संबोधित करते हुए उन्होंने अपनी यही राय दोहराई और कहा कि इससे छोटे उद्योगों का भारी नुकसान हुआ है और अर्थव्यवस्था पटरी पर से उतर गई। उनकी राय में सरकार ने लाभ-हानि का कोई आकलन नहीं किया था। लेकिन वह इसे सरकार की गलती मानते हैं। वह इसके पीछे कोई और मंशा नहंी देखते।

कंाग्रेस समेत ज्यादातर पार्टियों का मानना है कि यह एक ‘‘गलती’’ थी और ‘‘सही नियोजन करने में विफलता’’ थी। विपक्ष की इस नरमी का परिणाम है कि वित्त मंत्री अरूण जेटली यह दावा कर रहे हैं कि यह एक नैतिक कदम था।

अब कहानी के दूसरे पहलुओं को जांचने की कोशिश होने लगी है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कंाग्रेस की नेता ममता बनर्जी इसे गलती नहीं मानती हैं। उनका कहना है कि यह एक बड़ा घोटाला था और इसकी जंाच होनी चाहिए। धीरे-धीरे उनकी राय को दूसरे खेमों का समर्थन भी मिलने लगा है। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज ने नोटबंदी के पीछे की मंशा का पता लगाने के लिए संयुक्त संसदीय समिति की जंाच की जरूरत बताई है। उन्होंने एक राष्ट्रीय अखबार में लिखे अपने लेख में कहा है कि यह अमेरिका के इशारे पर उठाया गया कदम है। अपने लेख में उन्होंने विस्तार से बताया है कि मास्टर और वीजा कार्ड की कंपनियों और खुदरा व्यापार की श्रंखला के जरिए होने वाले आनलाइन लेन-देन में उपभोक्ताओं को होनेवाले नुकसान को बंद करने के खिलाफ अमेरिकी कंाग्रेस ने जब कानून पारित किया तो इन कंपनियों को खरबों का घाटा उठाना पड़ा। इस घाटे को कम करने के लिए इन कंपनियों ने विकासशील देशों की ओर रूख किया। इस काम में उन्हें अमेरिकी सरकार का भी समर्थन मिला हुआ है और इसके लिए उनके संगठन में सरकारी एजेंसियां भी शामिल हैं। नकदीविहीन लेन-देन को बढ़ावा देने के लिए ये संगठन अंतराष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय हंै। चव्हाण का मानना है कि इसी के इशारे पर नोटबंदी का कदम उठाया गया है। इससे इन कंपनियों का फायदा होने वाला है।

सरकार डिजिटल लेन-देन पर जितना जोर दे रही है उससे लोगोें का शक बढेगा ही। चव्हाण की इस राय को कंाग्रेस में कितना समर्थन है यह अंदाजा लगाना मुश्किल है क्यांेकि कांगे्रस भी डिजिटल लेन-देन के पक्ष में खड़ी रही है। लेकिन चव्हाण राहुल गंाधी के करीबी माने जाते हैं, इसलिए उनकी राय का महत्व है। इससे लगता है कि कंाग्रेस की नीतियां आगे आक्रामक हो सकती हैं।

विपक्ष के हमले के हिसाब से और नोटबंदी के नतीजों को देख कर सरकार ने भी कहानी को बदल लिया है। आठ नवंबर, 2016 के अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि पांच सौ और हजार के नोटों को बंद कर देने से लोगों के पास जमा काला धन बेकार हो जाएगा। अब इस बयान को पलट दिया गया है क्योंकि चलन के 99 प्रतिशत नोट बैंकों में वापस आ गए हैं। एक प्रतिशत बचे नोट का हिसाब-किताब भी साफ होने की उम्मीद है। नोटों की इस पैमाने पर वापसी का नतीजा यह हुआ है कि सरकार को अपने कहे शब्द पलटने पड़े हैं। अब काले धन के रूप में जमा नोटों के बेकार होने की बात को छोड़कर सरकार यह दावा कर रही है कि काला धन बैंकों में आ गया है और इसे जमा करने वालों से हिसाब लिया जाएगा और कारवाई की जाएगी। सभी को पता है कि ऐसी कार्रवाई करने में महीनोें लगेंगे और कुछ निकलेगा नहीं।

कहानी मेें और भी मोड़ आ रहे हैं। नोटबंदी का कारोबार पर कितना असर पड़ा है, इसके आंकड़े आने लगे हैं। नोटबंदी ने असंगठित क्षेत्र को इस तरह उजाड़ दिया कि वह अभी तक पटरी पर नहीं आ पाया है। छोटे-छोटे कारोबार में लोगों की अर्थव्यवस्था टूट कर बिखर चुकी है। भिवंडी के करघा चालक हों या मुरादाबाद के बर्तन-निर्माता सभी का धंधा चैपट हो चुका है।

हाल में आए सीएमआई के एक आंकड़े के मुताबिक जनवरी से अपै्रल 2017 के बीच 15 लाख नौकरियां खत्म हो गईं। जाहिर इसमें ज्यादातर असंगठित क्षेत्र के थे।

असंगठित क्षेत्र के कारोबार की जगह किस ने ली? इस बारे में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अहमदाबाद के भाषण में एक दिलचस्प आंकड़े का जिक्र किया जो बताता है कि देशी कारोबार चैपट होने के कारण चीन से आने वाले सामानों की तादाद बढ़ गई है। उन्होंने जो अंाकडें दिए उसके मुताबिक, चीन से होने वाला आयात 2016-17 की पहली छमाही के एक लाख 96 हजार करोड़ रूपए से 2017-18 में दो लाख 41 हजार रूपए का हो गया।

जहिर है लोगों की बढ़ती तकलीफों को देखकर राजनीतिक पार्टियों ने इसे मुद्दा बनाया और आठ नवंबर, 2017 को काला दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया।

हालंाकि सरकार अभी भी अपने इस विचार पर कायम है कि नोटबंदी जिन उद्देश्यों के लिए की गई थी वे पूरे हुए हैं। उसका कहना है कि आतंकवादी गतिविधियों में कमी हुई है। उसने आठ नवंबर के एक बरस होने पर तमाम अखबारों को पूरे पेज का विज्ञापन दिया जिसमें नोटबंदी से हुए फायदे गिनाए गए हैं। उसने अपने अंाकडों में कहा है कि कश्मीर में पत्थर फेंकने की घटनाएं कम हो र्गइं और नक्सली हिंसा में भी 20 प्रतिशत की कमी आई है। काले धन पर प्रहार को लेकर उसने अंाकड़ें दिए हैं जिसमें कहा गया है कि फर्जी कंपनियों को बंद करने से 17 हजार करोड़ रूपए का काला धन बाहर निकला है।

नोटबंदी के साथ रिजर्व बैंक की स्वायतत्ता का सवाल भी उठने लगा है। विपक्ष इस मुद्दे को उठा रहा है। कई लोगों ने रिजर्व बैंक के फैसले और कैबिनेट की चर्चा आदि सार्वजनिक करने की मांग की है। कहानी में कई मोड़ आ रहे हैं। (संवाद)