हमारे देश की आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित है। उन्हें बेसिक सेवा तक उपलब्ध नहीं है, उन्नत स्वास्थ्य सेवा की तो बात करना ही बेकार है। भारत ने उस अल्मा अता की घोषणा पर दस्तखत किया है, जिसमें कहा गया है कि सदी के अंत तक सभी लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करा दी जाएंगी। वर्तमान सदी के 17 साल बीत चुके हैं, लेकिन अभी भी सभी लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवा सपना बनी हुई है। ब्रिक्स देशों में हमारा स्थान स्वास्थ्य सेवा पर सरकारी खर्च के मामले में सबसे नीचे है।

स्वास्थ्य पर हमारा सरकारी खर्च सकल घरेलू उत्पाद का एक प्रतिशत से ही कुछ ज्यादा है, जबकि अन्य ब्रिक्स देश हमसे बहुत ज्यादा खर्च करते हैं। दक्षिण अफ्रीका लगभग 9 फीसदी खर्च करता है। ब्राजील भी सवा आठ फीसदी से ज्यादा खर्च करता है। रूस का खर्च भी 7 फीसदी से ज्यादा है। सच कहा जाय तो अन्य सार्क देश भी इस मद मंे हमसे ज्यादा खर्च करते हैं। मालदीव पौने 14 फीसदी खर्च करता है, तो अफगानिस्तान करीब सवा आठ फीसदी खर्च करता है। हमारा पड़ोसी नेपाल भी पौने छह फीसदी से ज्यादा खर्च करता है।

सरकार द्वारा कम खर्च किए जाने के कारण स्वास्थ्य सेवा के मामले में हमारे देश में भारी विषमता है। यही कारण है कि पाकिस्तान को छोड़कर अन्य सार्क देशों के सामने हमारे देश में स्वास्थ्य सूचकांक कम है। इसका मतलब यह हुआ कि नेपाल, बांग्लादेश, श्री लंका, अफगानिस्तान, मालदीव और भूटान के लोग भारत के लोगों से ज्यादा स्वस्थ हैं। तो क्या हम यह सोच सोच कर खुश रहें कि हम स्वास्थ्य के मामले में पाकिस्तान से बेहतर स्थिति में हैं?

2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति इस बात को स्वीकार करती है कि हमारा सरकारी खर्च स्वास्थ्य पर बहुत कम हो रहा है और इसे बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद का ढाई प्रतिशत तक लाया जाएगा। अनेक विशेषज्ञ समूह मांग कर रहे हैं कि स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम 5 फीसदी होना चाहिए। दुनिया भर में यह देखा गया है कि जिस देश में स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च ज्यादा होता है, वहां के लोगों का औसत स्वास्थ्य सूचकांक भी बेहतर होता है। इसका कारण यह है कि निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य केन्द्र मुनाफा कमाने का उद्देश्य रखता है और उसे उन लोगों की चिंता नहीं होती है, जिनके पास पैसे नहीं होते हैं या बहुत कम होते हैं।

वर्तमान स्वास्थ्य नीति समस्या की व्याख्या सही तरीके से करती है, लेकिन अप्रोच गलत है। यह पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप की बात करती है और देश में मेडिकल टूरिज्म को बढ़ावा देने की बात करती है, ताकि विदेशियों को भारत में स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराकर उनसे पैसा कमाया जा सके। यह पूरा का पूरा काॅर्पोरेट अप्रोच है, जो उस समिति द्वारा तैयार किया गया है, जिसमें मुकेश अंबानी और कुमारमंगलम बिरला शामिल हैं। (संवाद)