सच कहा जाय, तो राहुल गांधी के कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के रास्ते में कभी कोई चुनौती थी ही नहीं। अध्यक्ष के रूप में वे सोनिया के वारिस उसी दिन बन गए थे, जिस दिन उन्होंने राजनीति में सक्रिय होने का फैसला किया था। उस समय तक कांग्रेस सोनिया गांधी परिवार पर पूरी तरह आश्रित हो गई थी, क्योंकि शरद पवार जैसे नेता, जो अध्यक्ष बनने का दावा कर सकते थे, पहले ही कांग्रेस से बाहर हो चुके थे और माधव राव सिंधिया व राजेश पायलट जैसे नेता तो इस दुनिया से ही विदा हो चुके थे।
एक बार राहुल गांधी ने कहा था कि यदि वे चाहते तो देश का प्रधानमंत्री बन सकते थे। उनके उस बयान का मजाक उड़ाया गया, जबकि उनके उस बयान में पूरी सच्चाई थी। राहुल 2004 की चर्चा कर रहे थे, जब सोनिया गांधी ने खुद प्रधानमंत्री नहीं बनने का निर्णय कर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनवा दिया था। यदि वह चाहती तो राहुल गांधी को भी प्रधानमंत्री बना सकती थीं और कोई उनको रोक नहीं पाता। लालू यादव जैसे नेता तब राहुल गांधी को अपने कंधे पर उठाकर घूमते और उनका जयकारा लगाते।
हालांकि सच्चाई यह भी थी कि राहुल गांधी पहली बार लोकसभा में चुनाव जीतकर आए थे। लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था, क्योंकि उनके पिता राजीव गांधी भी जब प्रधानमंत्री बने थे, तो लोकसभा के सदस्य के रूप में वह उनका पहला की कार्यकाल था। संजय गांधी की दुर्घटना में मौत के अमेठी लोकसभा सीट खाली हो गई थी। वहां उपचुनाव में जीतकर राजीव गांधी संसद में आए थे। दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों में जब इन्दिरा गांधी की हत्या 31 अक्टूबर 1984 को कर दी गई थी, तो राजीव को प्रधानमंत्री बना दिया गया था और कहीं से विरोध का स्वर नहीं उठा था। उस समय तो उनका परिवार का कोई सदस्य भी उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में बैठाने वाला नहीं था, जबकि 2004 में सोनिया गांधी कांग्रेस की सर्वोच्च नेता के रूप में मौजूद थीं और राहुल को प्रधानमंत्री पद पर बैठा देना उनके लिए पलक झपकाने के समान था।
जो भी हो, सोनिया गांधी ने तब राहुल को इस योग्य नहीं समझा कि वे प्रधानमंत्री बन सकें। इसका कांग्रेस को फायदा भी हुआ, क्योंकि 5 साल बाद हुए चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस सत्ता में आ गई। वह मनमोहन सिंह की ईमानदार छवि और वैश्विक आर्थिक संकट के समय भारतीय अर्थव्यवस्था को सुरक्षा देने के कारण संभव हुआ। हालांकि 2009 के चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस के ऊपर भ्रष्टाचार के बड़े बड़े आरोप एक के बाद एक लगने लगे और कांग्रेस मनमोहन सिंह की ईमानदार छवि को ढाल के रूप में इस्तेमाल करने की नाकाम कोशिश करती रही।
सोनिया गांधी की नजरिए से देखा जाय, तो उन्होंने राहुल गांधी को बिल्कुल सही समय पर अध्यक्ष का पद सौंपा है। श्री गांधी को राजनीति का अच्छा खासा अनुभव प्राप्त हो चुका है। अनेक चुनाव कांग्रेस उनके नेतृत्व में लड़ चुकी है, हालांकि कुछ अपवाद को छोड़कर कांग्रेस को हार का सामना ही करना पड़ा है। लेकिन हार का अनुभव किसी नेता के लिए जीत के अनुभव से भी ज्यादा फायदेमंद होता है। हार का सही विश्लेषण कर नेता जीत का मार्ग प्रशस्त करता है।
अनुभव के साथ साथ राहुल गांधी एक अच्छे वक्ता के रूप में भी सामने आ रहे हैं। गुजरात में कांग्रेस ने जिस तरह से पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के दबाव में आने से इनकार कर दिया, उससे भी पता चलता है कि राहुल गांधी अब राजनैतिक रूप से काफी परिपक्व हो गए हैं और वे यह जान गए हैं कि ओबीसी मतों को नकार कर जीत हासिल नहीं की जा सकती। गौरतलब है कि हार्दिक पटेल चाह रहे थे कि उनके पाटीदार जाति को ओबीसी के तहत आरक्षण देने का आश्वासन कांग्रेस दे दे, तो वे उसे समर्थन कर देंगे। यदि पहले वाली कांग्रेस होती तो इसे स्वीकार भी कर लेती, क्योंकि कांग्रेस की समझ में ओबीसी का कोई मूल्य नहीं होता है। 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले उसकी सरकार ने जाटों को खुश करने के लिए केन्द्र की ओबीसी सूची में उन्हें शामिल कर लिया था, जिसके खामियाजा उसे भुगतना पड़ा था। 2012 के उत्तर प्रदेश चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस की केन्द्र सरकार ने ओबीसी को ही हिन्दू और गैर हिन्दू वर्गाें में मुलमानों को खुश करने के लिए कर दिया था।
इसलिए लग रहा था कि कहीं इस बार भी पाटीदारों का वोट पाने के लिए कांग्रेस कहीं फिर न फिसल जाए, लेकिन इस बार ऐसा नहीं होना यह साबित करता है कि राहुल गांधी अब जमीनी राजनैतिक हकीकत को समझने लगे हैं। ठीक वैसे समय में उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना सोनिया गांधी की बेहतर राजनैतिक सूझबूझ का नतीजा ही कहा जा सकता है।
राहुल तो अब कांग्रेस के प्रमुख बन ही गए हैं या कुछ दिन में बन ही जाएंगे, लेकिन क्या वह देश की जनता का भी प्रमुख नेता बन पाएंगे? इसका कारण यह है कि कांग्रेस अब बहुत कमजोर हो गई है और वह चुनावों में जनता द्वारा ज्यादातर नकार दी जा रही है। खासकर वैसे प्रदेशों में जहां एक तीसरा मजबूत दल भी है, कांग्रेस को मुह की खानी पड़ती है। इस सवाल को जवाब तो बाद में समय ही देगा, लेकिन इतना तो तय है कि उनके अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस वह कांग्रेस नहीं रह पाएगी, जो सोनिया गांधी के समय में थी। (संवाद)
राहुल गांधी की ताजपोशी
क्या कांग्रेस की वापसी हो सकेगी?
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-11-20 11:53
सोनिया गांधी के राजनैतिक नेपथ्य में जाने के इरादे के साथ ही राहुल गांधी अब अगले महीने ही कांग्रेस के अध्यक्ष का पद संभाल रहे हैं। 11 तारीख को वे पार्टी का अध्यक्ष बन जाएंगें और उसके पहले उनके अध्यक्ष बनने की जो प्रक्रिया पार्टी अपनाएगी, वह महज औपचारिकता ही होगी। इस तरह मीडिया में लंबे समय से चल रही यह अटकलबाजी कि राहुल अब अध्यक्ष बने और तब अध्यक्ष बनेंगे, समाप्त हो जाएगी।