यह मामला है आरईसीएस अधिनियम के तहत एकत्रित 2,270 करोड़ रुपये धन का जिसमें से राज्यों ने कल्याणकारी योजनाओं पर मात्र 638 करोड़ खर्च किये।
श्रम एवं रोजगार मंत्रालय से संबद्ध सलाहकार समिति की बैठक में आज इसी कारण केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री श्री मल्लिकार्जुन खडगे ने कहा है कि राज्यों से आरईसीएस अधिनियम, 1996 के कल्याणकारी विभिन्न प्रावधानों को लागू करने हेतु प्रभावी कदम उठाने के लिए कहा जा रहा है।
संसदीय सलाहकार समिति की बैठक को संबोधित करते हुए श्री खडगे ने कहा कि राज्यों ने सेस के रूप में 2,270 करोड़ रुपये एकत्रित किये जिसमें से उन्होंने आरईसीएस अधिनियम के तहत निर्माण तथा निर्माणकारी कार्यों के लिए कल्याकारी योजनाओं पर 638 करोड़ रुपये खर्च किये हैं। उन्होंने बताया कि अब तक देशभर में राज्यों के कल्याणकारी बोर्डों में 52 लाख श्रमिकों का पंजीकरण हुआ है।
अधिनियम के कार्यान्वयन के बारे मंे विस्तृत जानकारी देते हुए श्री खडगे ने कहा कि अब 33 राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों ने अधिनियम के तहत नियमों को अधिसूचित किया है। 30 ने कल्याणकारी बोर्ड गठित किये हैं। 31 सेस संग्राहक या क्रियान्वयक प्राधिकरणों की अधिसूचना जारी की गई है। 27 राज्य सलाहकार समितियों को गठन किया गया है और 16 कल्याणकारी योजनाएं तैयार की गई हैं।
श्रम मंत्री ने आशा व्यक्त की कि बाकी राज्य भी अधिनियम को लागू करने में पीछे नहीं रहेंगे और जल्द से जल्द अधिनियमों के प्रावधानों का क्रियान्वयन आरंभ कर देंगे।
चर्चा में भाग लेते हुए समिति के सदस्यों ने राज्यों द्वारा अधिनियम के क्रियान्वयन पर निरंतर निगरानी रखने की आवश्यकता पर जोर दिया और यह सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को भी इसके क्रियान्वयन की स्थिति पर निगरानी रखनी चाहिए। कछ सदस्यों ने यह भी सुझाव दिया कि जो कर्मचारी इस अधिनियम के प्रावधानों का पालन न करे उसे दंडित करने के लिए एक पैनल का इस अधिनयम में प्रावधान होना चाहिए।
इस बैठक में श्री आर.के. सिंह पटेल, श्री कमलेश पासवान, श्री एन. पीताम्बर कुरूप, श्री बद्री राम जाखड़, श्री मोहम्मद आमिन और श्री नारायण सिंह केसरी ने भाग लिया।
भारत
कल्याण के नाम पर सरकार द्वारा धन उगाही, पर खर्च सिर्फ 28 प्रतिशत
विशेष संवाददाता - 2010-02-19 12:40
नई दिल्ली: भारत के नेताओं और अधिकारियों का एक पसंदीदा मनोरंजन है जनता के लिए कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा करना क्योंकि यह राजनीतिक रुप से भी फायदेमंद होता है और आर्थिक रुप से भी। इसके नाम पर जनता से कर और सेस वसूलकर हजारों करोड़ इकट्ठा किये जाते है। लेकिन जब जनकल्याण पर इसे खर्च करने की बारी आती है तो उन्हें बहुत तकलीफ होती है। उनकी इसी मनोदशा के कारण उगाही किये गये धन का एक मामले में मात्र 28 प्रतिशत खर्च किया गया है।