वह मैच दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में हो रहा था और उसके बगल में ही आइटीओ है, जहां प्रदूषण मापक यंत्र लगा हुआ है। उस यंत्र में भी पदूषण का स्तर 220 से ऊपर दिखाई दे रहा था। प्रदूषण के यंत्र में 50 तक का अंक आदर्श वातावरण माना जाता है। यदि अंक 100 तक रहे, तो उसे भी ठीकठाक माना जाता है। पर यदि यह 100 से 150 के बीच में हो, तो बीमार लोगों को सतर्क रहने को कहा जाता है। उन्हें सलाह दी जाती है कि वे घर से बाहर नहीं निकलें। स्वस्थ व्यक्ति के लिए प्रदूषण के इस रेंज को माॅडरेट माना जाता है।

लेकिन यदि प्रदूषण का यह सूचकांक 150 से भी ऊपर हो जाय, तो स्वस्थ लोगों के लिए भी यह हानिकारक माना जाता है और कहा जाता है कि वे खुले में बहुत ज्यादा शारीरिक कसरत या दौड़धूप नहीं करें और यदि करें भी तो ठहर ठहर कर करें। प्रदूषण के इस रेंज को अस्वास्थ्यकर माना जाता है। 200 के सूचकांक तक इस अस्वास्थ्यकर प्रदूषण का रेंज है। और यदि सूचकांक 200 से भी अधिक हो जाय, तो इसे अति अस्वास्थ्यकर या बहुत ही खराब कहा जाता है और सलाह दी जाती है कि खुले में किसी प्रकार का मेहनत वाला काम नहीं किया जाय। खेलने और दौड़ने के लिए मना कर दिया जाता है।

जब श्रीलंका के खिलाड़ियों ने पहली बार खेलने से मना किया था, तो प्रदूषण सूचकांक या सही शब्दों मे कहिए तो वायु गुणवत्ता का सूचकांक 200 से पार था और सूचकांक पर डाॅक्टर किसी प्रकार का खेल नहीेे खेलने या दौड़ नहीं लगाने की सलाह देते हैं। प्रदूषण के स्तर पर तेज से सैर करने को भी मना किया जाता है। वायु गुणवत्ता के इस स्तर पर हवा में आॅक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है और जहरीली पदार्थाें की वहुतायत हो जाती है। दौड़ने और खेलने कूदने के कारण हम श्वास में ज्यादा हवा लेने लगते हैं। सामान्य से तीन से 10 गुना ज्यादा हवा हमारे फेफड़े में जाने लगती है और उसके कारण फेफड़ा व अन्य श्वसन यंत्र बीमार होने लगता है। खून में भी जहरीला तत्व मिलने लग जाता है। खेल के समय शरीर को ज्यादा आॅक्सीजन चाहिए, क्योंकि उस समय ब्लड सेल ज्यादा टूटते फूटते हैं और उनकी मरम्मत के लिए आॅक्सीजन की जरूरत होती है। पर प्रदूषित वायु के कारण जरूरी मात्रा में आक्सीजन नहीं पहुंच पाता है। इसके कारण सांस फूलने लगते है। सांस के द्वारा जहरीली पदार्थों के शरीर के खून में मिलने के कारण उबकाई आने लगती है और प्रदूषित खून सिर में पहुंचकर सिर दर्द और चक्कर का कारण बन जाता है।

जाहिर है, कायदे से 200 से अधिक सूचकांक होने के बाद खेल होना ही नहीं चाहिए। इसलिए श्रीलंका के खिलाड़ियों द्वारा खेल रोकने की मांग सही थी। उसके बाॅलर की सांस फूल रही थी और बाॅलिंग सही तरीके से नहीं कर पा रहे थे। अगले दिन तो उनके खिलाड़ियों ने मैदान पर उलटियां तक कर डाली। यह पूछा जा सकता है कि भारत के खिलाड़ियो को वह समस्या क्यों नहीं हो रही थी? तो इसका जवाब यह है कि जो प्रदूषित माहौल में रहने का अभ्यस्त हो जाता है, वह प्रदूषण से कम प्रभावित होता है। उसके कारण ही भारत के खिलाड़ियों को ज्यादा परेशानी नहीं हो रही थी, लेकिन यह कहना गलत होगा कि वे सुरक्षित थे। उनके शरीर पर भी उसका बुरा प्रभाव पड़ रहा होगा।

पर प्रदूषण के कारण क्रिकेट का अंतरराष्ट्रीय मैच रोकने का कोई प्रावधान नहीं है। इसलिए अंपायरों और रेफरी ने मैच को नहीं रोका। अब श्रीलंका के क्रिकेट प्रशासक कह रहे हैं कि वे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल से मांग करेंगे कि अब प्रदूषण के बढ़े स्तरों के कारण भी मैच रोकने का प्रावधान करें। यदि इस तरह की मांग औपचारिक रूप से की जाती है, तो इसे मांगना अंतरराष्ट्रीय काउंसिल की विवशता होगी, क्योंकि खेल का मूल उद्देश्य स्वास्थ्य बेहतर करना होता है न कि अस्वस्थकर और प्रदूषित माहौल में खेलकर स्वास्थ्य खराब करना। जीतना और हारना तो खेल का गौन उद्देश्य होता है।

जब प्रदूषण के आधार पर क्रिकेट का खेल या अन्य खेल रोकने की व्यवस्था होगी, तो इसके साथ भारत का नाम भी जुड़ जाएगा। यानी भविष्य में लिखे जाने वाले इतिहास में यह कहा जाएगा कि भारत में प्रदूषण के कारण मैदान पर ही खिलाड़ी उलटियां कर रहे थे, तो यह प्रस्ताव आया था और इसे स्वीकार कर मैच के समय अंपायर के पास प्रदूषण मीटर रखने की व्यवस्था कर दी गई।

यह भारत के लिए बहुत ही अपमानजनक स्थिति है। प्रदूषण के कारण हम न सिर्फ अपने देश के नागरिकों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, बल्कि दुनिया भर में अपनी भद्द पिटवा रहे हैं। यह समस्या सिर्फ देश की राजधानी तक ही नहीं सीमित है, बल्कि अन्य अनेक नगरों और महानगरों की स्थिति भी यही है। यदि प्रदूषण पैमाना हो, तो सर्दियों के मौसम में भारत के अनेक महानगरों और नगरों के क्रिकेट या अन्य खेल का अंतरराष्ट्रीय आयोजन ही असंभव हो जाएगा। और यदि आयोजन हो भी रहा हो तो प्रदूषण के बढ़े स्तर के कारण खेल रोक दिया जाएगा।

आखिरकार हम अपनी भद्द कबतक पिटवाते रहेगे और अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करते रहेंगे? प्रदूषण हमारे देश की आज सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है, लेकिन यह हमारे नीति निर्माताओं की प्राथमिकता सूची में है ही नहीं। हम विकास की बात करते हैं, लेकिन प्रदूषित विकास को भी क्या विकास कहा जा सकता है? (संवाद)