पिछले एक साल में यदि किसी को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है, तो वह शशिकला हैं। उन्होंने पार्टी और सरकार दोनों अपने कब्जे में लेना चाहा था, लेकिन वे दोनों में विफल रहीं। पर उनकी अनुपस्थिति ने आॅल इंडिया अन्ना डीएमके को एक रहने में मदद नहीं की। आज यह एक विभाजित पार्टी है।

जयललिता प्रदेश की राजनीति पर जिंदा रहते हुए जिस तरह से हावी हुआ करती थीं, आज मौत के बाद भी वे उसी तरह इस पर हावी हैं। उनकी जगह लेने वाला आज कोई और दूसरा नहीं दिखाई पड़ रहा है। न तो पन्नीरसेल्वम में उनकी जगह लेने का माद्दा है और न ही पलानीसामी में। वे दोनों जयललिता जैसा सम्मान लोगों के बीच नहीं पा सकते।

यह सवाल अभी भी अपनी जगह पर है कि जयललिता के निधन से जो राजनैतिक खालीपन पैदा हुआ है, उसे कौन भरेगा? इस सवाल का जवाब अभी तक नहीं मिला है। जयललिता के निधन से आरके नगर विधानसभा क्षेत्र की सीट खाली हुई थी। वहां उपचुनाव हो रहा है। शायद उस चुनाव के नतीजे से इस सवाल का जवाब मिल सके। लेकिन उसके नतीजों से भी कोई पुख्ता जवाब न मिल सके। लेकिन हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि उन नतीजों से अनुमान लगाने का कोई आधार शायद हासिल हो जाए।

आरके नगर से आॅल इंडिया अन्ना डीएमके के दोनों खेमे के उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। शशिकला खेमे से दिनकरण चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि पन्नीरसेल्वम- पलानीसामी के खेमे से मधुसूदनन चुनाव मैदान में हैं। दोनों जयललिता की विरासत का दावा कर रहे हैं। पूरे चुनाव माहौल पर जयललिता का ही बोलबाला है।

आयकर विभाग के अनेक छापे पड़े हैं और उन्होंने चुनावी माहौल को थोड़ा और संजीदा बना डाला है। ये छापे शशिकला ही नहीं, बल्कि जयललिता के ठिकानों पर भी पड़े हैं। शशिकला तो इस समय जेल में हैं। छापों के कारण जयललिता की छवि को जो नुकसान पहुंच रहा है, उसके लिए सफाई देने का जिम्मा पन्नीरसेल्वम और पलानीसामी का ही है।

जयललिता की भतीजी दीपाकुमार भी उनकी विरासत का दावा कर रही हैं, लेकिन इस उपचुनाव से वे बाहर हो चुकी हैं। उनके नामांकन पत्र को निरस्त कर दिया गया है। चुनाव अधिकारियों ने उनके नामांकन पत्र को दोषपूर्ण पाया। अनेक काॅलम को वह पूरी तरह से भर नहीं पाई थीं। चुनाव के पहले भी दीपाकुमार अपनी बुआ जयललिता के बंगले में घुसने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन उनकी कोशिश को शशिकला और उनके लोगों ने विफल कर दिया था।

तमिलनाडु मे अपनी स्थिति बेहतर करने के लिए भारतीय जनता पार्टी भी लगातार कोशिश कर रही है, लेकिन उसमें सफलता मिलती नहीं दिखाई पड़ रही है। भाजपा पहले भी हाशिए पर थी और आज भी हाशिए पर है। (संवाद)