उनका एकमात्र एजेंडा है पटेलों को आरक्षण दिलाना। कंाग्रेस ने पटेलों को आरक्षण देने का वायदा किया है। वैसे पटेल ऐसी जाति नहीं है जिनके बीच विभाजन नहीं है। इसमें भी विभाजन है। गुजरात का पटेल दक्षिण गुजरात के पटेल से अलग ढंग से मतदान करता है। बुजुर्ग पटेल और युवा पटेल भी अलग -अलग दिशाओं में चलते हैं।
देश भर के बहुत से मोदी विरोधी हार्दिक पटेल पर भरोसा किए बैठे हैं कि वह भाजपा को खत्म कर देगा, यानि दूसरे रूप में कहें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को। अगर हार्दिक गुजरात को मोदी से अलग करने में मदद करता है तो मोदी गुजरात-माडल की डींग नहीं मार पाएंगे। यह ताजमहल के बिना आगरा या एफिल के बगैर पेरिस होगा। मोदी के नाव की पाल बिना हवा के रह जाएगा। उनकी नैया डगमगायगी और डूब जाएगी। इस तरह की कल्पनाएं की जा रही है।
बीस साल पहले मोदी डगमगाए थे। उसी के आसपास जब हार्दिक पैदा हुए थे। 24 वर्षीय नेता रैलियों में भीड़ से अपील करते हैं कि वे भाजपा को वोट नहीं दें। वह कहते हैं,‘‘ ऐसी पार्टी को वोट दें जो जीत सकती है।
हार्दिक पटेल गंभीर व्यक्ति की तरह आएं हैं। इतने गंभीर जितना हृदयाघात होता है। ऐसी धारणा बनाई जा रही है कि भाजपा के लिए वह एक कांटे की तरह हैं। अगर मीडिया को विश्वास है कि वह मोदी की नाव को उथले पानी में डगमगा देगें तो यह ऐसा माने।
ऐसा मानना खुद को और हमें, मूर्ख बनाना हैं। हार्दिक पटेल का मानना है कि जब तक गंाव के लोगों का शहर की ओर पलायन बंद नहीं हो जाता तब तक इसे सही विकास नहीं माना आएगा। वह नदियों के संमातर खड़ी अट्टालिकाओं को विकास का संकेत नहीं मानते। उनकी राय बहस का विषय है। लेकिन उन्हें जानना चाहिए कि नदियों सेे दूर पनपने वाली सभ्यताओं के मुकाबले नदियों के किनारे ज्यादा सभ्यताएं पनपी हैं।
हार्दिक का आरोप है कि भाजपा ने समाज को विभाजित कर दिया है। वह मतदाताओें पर चोट करते हैं कि वे ‘गुलामी के आदी हो गए हैं। हार्दिक को उत्तर तथा दक्षिण गुजरात में मिला-जुला समर्थन है। उनके कट्टर समर्थक हंै- हीरे तथा कपड़ा व्यापारी, जो ज्यादातर पटेल हैं और सौराष्ट् से आए हैं।
रैलियों को संबोधित करते हुए वह बीच में रूक जाते हें और लोगों से अपील करते हैं कि वे सौराष्ट् के अपने रिश्तेदारों को भाजपा के खिलाफ मतदान करने के लिए मोबाइल फोन से मैसेज भेजें। वह मोदी के डिजिटल इंडिया की धज्जियां उड़ा देते हैं और विदेशी निवेश के लिए विदेशों की यात्रा के लिए मोदी का मजाक उड़ाते हे। वह भीड़ से कहते हैं, इन उद्दंड नेताओं को बाहर फेंक दो और अखबार की सुर्खियां इसे चिल्लाकर बता सकें।
वह अपने हर भाषण के अंत में लोगों को कसम दिलाते हैं- मतदान के दिन जाकर वोट करो, लेकिन भाजपा के लिए नहीं। वह किसी पार्टी को वोट देने के लिए नहीं कहते हैं सिर्फ भाजपा को वोट नहीं देने के लिए कहते हैं। वह जिन मुद्दों पर बोलते हैं वे हैं -निजी स्कूल-कालेजों की महंगी शिक्षा, रोजगार का अभाव, प्राकृतिक अनिश्चितता और फसलों का नुकसान।
पटेल समुदाय और गुजरात की कुल सीटों में से 90 ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां हार्दिक को भारी समर्थन है। शहरी क्षेत्रों में हार्दिक का असर महसूस नहीं होने वाला हैं। टीवी चैनलों के सभी चुनाव सर्वेक्षणों में हार्दिक फैक्टर की बात कही गई है और सभी का मानना है कि सेक्स-टेप का उनकी लोकप्रियता पर कोई असर नहीं हुआ हैं। अगर इसका असर हुआ भी तो यही कि उनके प्रति लोगों की सहानुभूति बढ़ी है।
हार्दिक पटेल की एक कमी यह है कि वह पटेल समुदाय तक सीमित है। और गुजरात की जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। यह उम्मीद की जा रही है कि 2019 के चुनाव आने तक, जब वह 26 वर्ष के हो चुके होेंगे, वह चुनाव लड़ने के काबिल हो जाएंगे।
हार्दिक की तुलना अक्सर सरदार पटेल से की जाती है। चुनाव सर्वेक्षणों ने यही दिखाया है कि कांग्रेस, सरदार पटेल की पार्टी भाजपा को गुजरात में सत्ता में आने से नहीं रोक पाएगी। (संवाद)
भीड़ उमड़ रही है हार्दिक की सभाओं में
उनका असर 2019 के चुनाव में भी दिख सकता है
अंजलि मैथ्यू - 2017-12-08 11:35
गुजरात विधान सभा चुनावों में हार्दिक पटेल चुनाव महत्वपूर्ण भूमिका में है और इसके नतीजों पर अप्रत्याशित असर डाल सकते हैं। वह सिर्फ 24 साल के हैं और इस कारण चुनाव नहीं लड़ सकते। लेकिन वह अपनी पसंद की पार्टी को वोट दिला सकते हैं। अभी के समय में कंाग्रेस उनकी पसंद की पार्टी लगती है। इसके साथ ही, यह बात भी जुड़ी है कि उनका करिश्मा सिर्फ एक जाति पटेल तक सीमित है। लेकिन उनकी रैलियों में बड़ी भीड़ जमा होती है जिसमें जरूरी नहीं है कि सिर्फ पटेल ही हों।