मंत्री ने सरकार के कदम से अपने को अलग करने की कोशिश की और कहा कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिश के आधार पर यह फैसला किया गया है। सीतारमन को पुनर्विचार के लिए इसलिए बाध्य होना पड़ा कि सेना ने कहा कि अगर सरकार ने जवानों के बच्चों की शिक्षा पर होने वाले खर्च की दस हजार रूपया की सीमा को नहीं हटाया तो सेना अपनी जेब से इस खर्च को उठाएगी।
नौसेना प्रमुख सतीश लंाबा ने भी इस फैसले की समीक्षा और पहले की स्कीम, जो 1972 में शुरू की गई थी, पर लौटने की जरूरत बताई। 1972 की स्कीम में शहीद या विकलांग हुए जवानों के बच्चों की स्कूल, कालेजों तथा पेशेवर संस्थानों की फीस पूरी तरह माफ करने की व्यवस्था है।
पिछली एक जुलाई को सरकार ने एक आदेश जारी कर इस पर दस हजार रूपए प्रतिमाह की सीमा लगा दी। इससे जवानों के करीब 34 हजार बच्चे प्रभावित हुए। भारत पर शासन करने वाली नौकरशाही इस तरह के भ्रामक फैसले लेती है।
पंजाब के मुख्य मंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने फैसले की आलोचना की। पीटीआई के मुताबिक उन्होंने कहा, ‘‘ दस हजार रूपया प्रतिमाह की सीमा लगाने का कदम 1971 में लोकसभा में घोषित स्कीम तथा 1972 में इसे लागू करने के पीछे के उद्देश्यों का मजाक उड़ाने वाला है’’।
रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन के इरादे नेक होने के कारण यह उम्मीद है कि सरकार इस सीमा को हटा देगी। नौसेना प्रमुख सतीश लंाबा को इस बारे में ज्यादा पता है। उन्होंने फैसले को वापस लेने का आग्रह करते हुए मंत्री को खत लिखा।
सीतारमन जिन्होंने सेना के कुछ रिटायर्ड अधिकारियों को नाराज करते हुए जवानों को स्वच्छ भारत अभियान तथा सड़कों की सफाई में शामिल होने के लिए कहा, शहीद जवानों के बच्चों को शिकार बनाने का मौका सरकार को कभी नहीं देना चाहिए।
ऐसा लगता है रक्षा मंत्री लोगों को चैंकाने तथा अचरज में डालना पसंद करती हैं। मुबई के पुल, जहां मची भगदड़ में 23 लोग मर गए थे और 40 घायल हो गए थे, वाली जगह पर र्गइं तो उन्होंने घोषणा कर डाली कि रेलवे के लिए सेना हादसे वाली जगह का पुल बनाएगी।
एडमिरल लांबाने उन्हें अवगत कराने की कोशिश की ‘‘इन लोगों ने देश के लिए अंतिम बलिदान दिया है और उनके बच्चों को शिक्षा में रियायत देश की रक्षा की उनकी प्रतिबद्धता को पहचानने का एक छोटा संकेत है’’, लंाबा ने अपने पत्र में लिखा।
कुछ साल पहले तक कर्तव्य का पालन करते हुए जान देने तथा विकलंाग होनेवाले जवानों के बच्चों की फीस छात्रावास शुल्क, किताबें तथा पोशाक कपड़ों का पूरा खर्च वापस मिलता था। सेना इस पर किसी भी सीमा को हटाना चाहती है। लंाबा सेना प्रमुखों के अध्यक्ष हैं, इसलिए इसका मतलब है कि रक्षा मंत्री को पत्र लिखने के निर्णय में थल और वायु सेना के प्रमुख भी शामिल हैं।
इस तरह की रिपोर्ट है कि सरकार आदेश को हटाने पर विचार कर रही हैं। (संवाद)
शहीदों के बच्चों को रियायत वापस आएगी?
रक्षा मंत्री के इरादे तो नेक लगते हैं
जय भगवान - 2017-12-11 13:12
कर्तव्य का पालन करते हुए मारे गए जवानों के बच्चों की शिक्षा पर होने वाले खर्च की सीमा तय करने को लेकर रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन से सशस्त्र सेना नाराज है और मोदी सरकार पर बुरी तरह खफा। बुधवार को वह इस मुद्दे पर एक बैठक की अध्यक्षता करने वाली थीं। उन्होंने कहा ‘‘यह एक भावनात्मक मुद्दा है और मैं शहीदों तथा उनके परिवारों का सम्मान करती हूं और जानती हूं कि यह आदेश उन्हें चोट पंहुचा रहा है। मैं इस पर पुनर्विचार करूंगी।’’