दूसरी, वह थी जब प्रधानमंत्री ने पूर्व मंत्री और हरदम कष्ट देने वाले मणिशंकर अय्यर पर यह हास्यास्पद आरोप लगा दिया उन्होंने मोदी को निबटाने के लिए ‘‘सुपारी’’ की साजिश की ताकि प्रधानमंत्री को परिदृश्य से गायब किया जा सके। यहंा भी वही काल्पनिक पाकिस्तानी उनके सहयोगी थे।
ऐसा समझा जाता है कि ये, शत्रुघ्न सिन्हा के शब्दों में, ‘‘बेबुनियाद और विश्वास नहीं करने योग्य‘‘, आरोप भाजपा ने अपनी गिरती लोकप्रियता की जमीनी रिपोर्ट की
असभ्य प्रतिक्रिया में लगाए। यह अब साफ है कि ये निश्चित तौर पर अपने गढ़ के खोने की संभावना से भयभीत पार्टी की घबराहट भरी प्रतिक्रियाएं थी। ये प्रतिक्रियाएं गैर-जरूरी थीं क्योंकि एग्जिटपोल ने भाजपा को भारी जीत भले न दी हो, उसे एक सुविधाजनक जीत जरूर दी है।
फिर भी यह साफ है कि भाजपा का अहंकार से भरा आत्मविश्वास चट्टान की तरह मजबूत नहीं है और कठिनाई के छोटे से संकेत पर भी वह घबरा जाती है। यह प्रवृत्ति पूरी पार्टी में फैली हुई नहीं दिखाई देती, अगर किसी छोटे स्तर के कार्यकर्ता ने मनमोहन सिंह पर विध्वंसक कार्रवाई या अय्यर के बारे में पेशेवर हत्यारा ठीक करने का आरोप लगाया होता। लेकिन प्रधानमंत्री का इस तरह का आरोप लगाना मानसिक उन्माद को दर्शाता है।
प्रधानमंत्री बनने के बाद, मोदी काफी हद तक नरम हुए हैं। वह अब मुसलमानों पर परिवार नियोजन के नियमों के उल्लंघन और चार बीवियों से पच्चीस बच्चा हम पांच, हमारे पच्चीस का आरोप नहीं लगाते जो वह गुजरात में खुलकर किया करते थे। सुप्रीम कोर्ट ने जिन्हें ‘‘2002 का आधुनिक नीरो’’ बताया था, उन्होंने इस बार मुसलमानों के शरणार्थी शिविर को बच्चा पैदा करने की मशीन भी नहीं बताया।
इसलिए यह अचरज की बात है कि वह संभावित नाकामयाबी को लेकर इतने चिंतित क्योें हो गए कि उन्होंने अपना आपा खो दिया। शायद तनाव बढ़ने का यह भी कारण हो कि एक व्यक्ति वाली अध्यक्षीय पार्टी में वही एक असरदार प्रचारक हैं। बाकी ज्यादा उपयोगी नहीं हैं।
लिहाजा, इसके बावजूद कि वह गुजरात में पिछले दो दशकों से सत्ता से बाहर है और देश के बाकी हिस्सों में भी अच्छी हालत में नही है, कांग्रेस लगातार फोकस में रही। फोकस नेहरू गंाधी परिवार पर भी था। मोदी ने राहुल की तुलना भाजपा के पुराने दुश्मन औरंगजेब से की और पार्टी के एक प्रवक्ता बाबरी मस्जिद के खलनायक बाबर तथा पदमावती विवाद के दौरान भाजपा खेमे के लिए भारी नफरत का स्रोत बने अलाउद्दीन खिलजी को भी बीच में ले आए।
यह संभव है कि अगले साल जब भाजपा गुजरात और हिमाचल के मुकाबले ज्यादा गंभीर चुनौती का सामना करेगी तो और भी तीखे हमले सामने आएंगे। इसमें जरा भी संदेह नहीं है कि भाजपा गुजरात में सत्ता विरोधी भावना के भय से इसलिए बच गई कि यह मोदी का गृह राज्य है। यह सोचना अवास्तविक होगा कि राज्य के लोग एक गुजराती प्रधानमंत्री के खिलाफ वोट करें।
इसके अलावा, हिंदुत्व की प्रयोगशाला के रूप में प्रचारित राज्य में दो दशकों के भगवा शासन ने मुसलमानों को अलग बस्तियों में सीमित कर देने के साथ समाज पर गहरे ध्रुवीकरण वाला ऐसा असर डाला है कि इसके शासन को हिलाने के लिए दैविक शक्ति की आवश्यकता होगी। राज्य पर अल्पसंख्यक विरोधी राजनीति की पकड़ मजबूत होने के मामले में गुजरात देश के बाकी हिस्सों से एकदम अलग है। यहां हिंदुत्व का प्रयोग एकदम सफल रहा है।
लेकिन 2018 में मध्य प्रदेश, छतीसगढ़ तथा राजस्थान में वही स्थिति नहीं होगी क्योकि भाजपा को वैसी सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है जैसी गुजरात में उसे नहीं करनी पड़ी। ऐसा हो सकता है कि भाजपा वैसा ही जहरीला प्रचार अभियान चलाए जैसा इसने गुजरात में चलाया क्योंकि इन तीन राज्यों में किसी भी तरह की नाकामयाबी और कर्नाटक तथा त्रिपुरा में करीब-करीब निश्चित पराजय चुनावों के पहले भाजपा तथा आरएसएस काडरों को बेहद निराशाजनक संदेश देगा।
भाजपा की घबराहट और भी बढ़ जायगी अगर राहुल गांधी गुजरात चुनाव का अधिक प्रभावित करने में अपनी असफलता से सही सबक लेंगे। इनमें से एक यह है कि ‘नरम हिंदुत्व’ काम नही करता है, जैसा अरूण जेटली ने कहा कि असली अगर उपलब्ध है तो प्रतिकृति को कोई क्यों वोट करेगा।
कांग्रेस अध्यक्ष का ज्यादा प्रभाव पड़ता अगर वह सांप्रदायिक रूप से विभाजित राज्य में भी सिर्फ मंदिरों में जाने के बदले सभी मजहब के अराधना स्थलों पर जाते क्योंकि उनके इस कदम को भाजपा से सिर्फ राजनीतिक मुद्दा छीनने के रूप में बताए जाने का खतरा नहीं रहता।
इसके विपरीत, अगर वह बार-बार नहीं, कभी-कभार, मस्जिद, चर्च तथा गुरूद्वारा गए होते तो भाजपा चकरा गई होती क्योंकि वह इस तरह के समन्वयवाद की सोच ही नहीं सकती। (संवाद)
अगले साल और भी बुरे तरीके से प्रचार कर सकती है भाजपा
अमूल्य गांगुली - 2017-12-16 10:56
इसमें कोई शक नहीं है कि गुजरात में चुनावी भाषण एकदम नीचे के स्तर पर पहुंच गया। दो जगहों पर यह खासतौर पर निम्नस्तर की रहीं। एक थी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अपने पूर्ववर्ती पर करीब-करीब गद्दार होने का आरोप लगाना कि उन्होंने एक "गुप्त" बैठक में गुजरात के चुनावों को प्रभावित करने के लिए पाकिस्तान से मिलकर साजिश की।