इस तरह के हालात में कांटो भरा ताज पहन राहुल गांधी नये संकल्प एवं दृृढ़ विश्वास के साथ कांग्रेस के नये खेवनहार के रूप में मैदार में उतर आये है। गुजरात चुनाव के दौरान राहुल गांधी का जो स्वरूप उजागर हुआ है वह एक नई पृृष्ठिभूमि को उजागर करता है जहां वे अपने पुराने चोला को उतार कर नये तेवर के साथ आक्रामक भूमिका में अपने विपक्ष पर प्रहार करते दिख रहे है जिससे ऐसा लगने लगा है कि कांग्रेस के अब अच्छे दिन लौटने वाले है।

गुजरात चुनाव के दौरान राहुल गांधी का वर्तमान तेवर एक परिपक्व नेतृृत्व की झलक दे रहा है जहां वे सŸाा पक्ष को घेरते हुए अपनी बात गुजरात की जनता के समक्ष रखने में जरा सा भी नहीं हिचकते एवं दृृढ़ विश्वास के साथ जनमत को अपनी ओर आकर्षित करते हुए नजर आते दिख रहे है। उनके इस तेवर से सŸाा पक्ष भी तिलमिला गया । इस तरह के हालात ने गुजरात चुनाव पर मृुद््दों के बजाय भावनात्मक प्रभाव उजागर करने का प्रयास करने के लिये सŸाा पक्ष को मजबूर कर दिया, जिस परिवेश को हवा राहुल के अपने ही लोगों ने ही दी । इस तरह की विषम चुनौतियों को झेलते हुए राहुल गांधी ने अपने तेज तेवर शालीनता के साथ बनाये रखा। इस दौरान पूर्व की भाॅति कहीं भी वे उतेजित नजर नहीं आये। इस तरह के नये तेवर निश्चित तौर पर भविष्य में कांग्रेस को बेहतर खेवनहार के रूप में साबित करने में मददगार होगें ,ऐसा अभी से ही नजर आने लगा है।

कांग्रेस को पूर्व ढांचे में लाने के मार्ग में राहुल गांधी के सामने अनेक कठिन चुनौतियां है जहां संगठन के पुराने मठाधीशों के अप्रत्यक्ष रूप से क्रियाशील विरोधी गतिविधियों के निस्तारण के साथ - साथ आमजन का विश्वास फिर से हासिल करना होगा जो कांग्रेस की नई आर्थिक नीतियों के कराण कांग्रेस से बहुत दूर जा चुके है। राहुल गांधी को मिली कांग्रेस की वर्तमान विरासत कांग्रेस के पूर्व नेताओं से अलग ही है, जहां उन्हें नये सिरे से कांग्रेस को समेटना होगा । इस दिशा में उनके सामने अनेक कठिन चुनौतियां है जिसका समाधन स्वयं ही अपनी सूझबुझ से कांग्रेस के पुराने शभचिंतकों को जो पार्टी में ऐन - केन प्रकारेण दबाये हुये है, उन्हें साथ लेकर निकालना होगा । साथ ही कांग्रेस को कमजोर करने वाली क्षेत्रीय दलों को भी अपने साथ मिलाकर एक साथ चलना होगा । इस दिशा में वे सफल हो पायेंगे, गुजरात चुनाव में उभरते नये तेवर से इस बात की झलक मिल रही है।

राहुल गांधी के नये तेवर के साथ गुजरात चुनाव सम्पन्न हो गये जिसपर पूरे देश की नजर टिकी हुई है, जहां पूरे समय तक सŸाा पक्ष पर वे प्रहार करते रहे। अब परिणाम पर सभी की नजरें टिकी हुई है। गुजरात चुनाव में जीत हार भले ही किसी की हो पर राहुल गांधी पूरे चुनाव में प्रमुख भूमिका में कुशल नेतृृत्व में उभरते दिखाई दिये जिसने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पूरे समय गुजरात में रहने पर मजबूर ही नहीं कर दिया बल्कि विचलित भी कर दिया जहां वे अपने गरिमापूर्ण पद से भटकते नजर आये। गुजरात चुनाव के परिणाम भले ही कुछ भी हो , राहुल गांधी के नेतृृत्व में एक नये तेवर की झलक मिली है, जहां से कांग्रेस के अच्छे दिन की शुरूआत हो सकती है। इस तरह के हालात में कांग्रेस का अध्यक्ष पद का भार संभाल रह है।

कांग्रेस के इतिहास पर एक नजर डालें तो इसमें उतार-चढ़ाव बराबर आता रहा है। कांग्रेस नेहरू परिवार के इर्द गिर्द ही सदैव घूमती नजर आई है। जब भी कांग्रेस इस धुरी से अलग हुई, बिखरती ही नजर आई। इस दिशा में कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में पूर्व प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिंहा राव एवं पूर्व कोषाध्यक्ष सीताराम केसरी के अध्यक्षीय कार्यकाल को देखा जा सकता है। कांग्रेस में पं. जवाहरलाल नेहरू से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष पद पर जो भी इनके वारिस आते रहे है कांग्रेस की हालत वर्तमान जैसी कभी नहीे रही । इस तरह के हालात में कांग्रेस के नये खेवनहार के रूप में राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद ग्रहण कर रहे है, जब आगामी चुनावों में गिरती जा रही कांग्रेस की साख को बचाना ही नहीं ,आगे बढ़ाना है। इस दिशा में देश के बदलते राजनीतिक समीकरण का लाभ राहुल गांधी को मिल सकता है। वर्तमान में देश के सभी क्षेत्रीय राजनीतिक दल जो कभी कांग्रेस के विरोध में खड़े दिखाई देते थे ,वे आज कांग्रेस के नजदीक आते दिखाई दे रहे है। इस तरह का नया राजनीतिक ध्रुवीकरण राहुल गांधी के नेतृृत्व में कांग्रेस को सफल बना सकता है। देश के युवा वर्ग में रोजगार को लेकर भारी असंतोष है। रोजगार देने वाले उद्योग नये तो आ नहीं रहे है,जो चल रहे है , धीरे-धीरे बंद होते जा रहे है। किसानों की फसल का उचित मुवावजा नहीं मिलने से, वे कर्ज में डूबते जा रहे है। राहुल गांधी को इस तरह के मुद््दों को समझना होगा (संवाद)