‘‘ दुनिया में सबसे ज्यादा बंधुआ मजदूरों की संख्या पाकिस्तान में है। पाकिस्तान के 23 लाख बंधुआ मजदूरों में करीब 80 प्रतिशत हिंदु हैं, ग्रीन रूरल डेवलपमेंट आरगेनाइजेशन के डा. गुलाम हैदर ने ‘डाउन’ अखबार को 2015 में बताया। उन्होंने बताया कि बंधुआ मजदूरी की अमानवीय प्रथा खेती इंट भट्टों और मछली पालन में प्रचलन में है।

ये तेरह मजदूर रामजी कोहली नामक गंाव से एक निचली अदालत के आदेश पर छुड़ाए गए। अदालत ने यह आदेश धर्मून कोहली की याचिका पर दिया गया, कोहली ने अपनी याचिका में जमींदार की कैद से अपने परिवार के सदस्यों को रिहा कराने के लिए अदालत में अर्जी दी थी।

तेरह लोगों को आरोपी जमींदार ने 15 वर्षो से अपने निजी जेल में रखा हुआ था। एक पुलिस टीम ने उन्हें रिहा कराया। रिहा कराए गए 13 लोगों में से चार औरतें तथा पंाच बच्चे थे। कोहली ने अदालत से कहा कि उन्हें जमींदार के लिए जबर्दस्ती काम कराया जाता था और कोई मजदूरी, नगद या सामग्री में, नहीं दी जाती थी। रिहा हुए एक व्यक्ति ने बताया कि जमींदार और उसके रिश्तेदार औरतों का यौन शोषण भी करते थे।

साल 2016 में सिंध के विभिन्न जिलों से औरतों और बच्चों समेत कुल 257 बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराया गया। बलूचिस्तान से 94 मजदूरों को रिहा कराया गया जिसमें सारे हिंदु थे।

बलूचिस्तान से रिहा हुए बंधुआ मजदूर बुनियादी तौर पर सिंध के विभिन्न जिलों के हिंदु किसान थे जिन्हें केच तथा तुरबात जिलों मंे जर्बदस्ती खेती का काम कराया जाता था, डाउन ने अपनी रिपोर्ट में कहा। डाउन ने कहा है कि कई बंधुआ मजदूरों की निर्मम पिटाई तथा शोषण प्रभावशाली जमींदार करते थे जो कमजोर समुदायों पर अत्याचार करने में नहीं हिचकते।

‘‘पाकिस्तान बंधुओं मजदूरों की बीमारी वाला तीसरे नंबर का देश है, डा हैदर ने कहा। उन्होंने आरोप लगाया कि बंधुआ मजदूरी निर्मूलन कानून, 1992 का जितनी कड़ाई से पालन होना चाहिए था, उतनी कड़ाई से नहीं हो रहा है।

डाउन के मुताबिक 2013 के 1260 मजदूरों की रिहाई की तुलना में 2014, 2015 तथा 2016 में रिहा होनेवालों की संख्या घटी है। इन सालों में क्रमशः 275, 132 तथा 257 मजदूरों को रिहा कराया गया।

सिंध विधान सभा ने सिंध बंधुआ मजदूरी प्रथा निर्मूलन बिल पारित किया जो 2016 में कानून बन गया। लेकिन अभी तक जिला स्तरीय निगरानी समिति नहीं बनाई गई है और न ही दोषियों को पकड़ कर सजा दी गई है।

डाउन की रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में करीब 1580 परिवार और 8984 लोग आठ कैंपों में रहते थे। इसमें 4358 बच्चे थे जिनकी उम्र 18 साल से कम थी। इन कैंपों में स्वास्थ्य, शिक्षा तथा अन्य बुनियादी सुविधाएं नहीं थी। (संवाद)