कांग्रेस इस पर अपने को शाबासी दे सकती है कि उसने अच्छी लड़ाई की। लेकिन उसे पता है कि पार्टी वहीं पहुंच गई है जहां वह पिछले 20 साल से है कि सत्ता उसकी पहंुच से बाहर है और उसके पास कोई स्थानीय नेता नहीं है जो उसे जमीनी स्तर पर मजबूत कर सके।

दूसरी ओर, भाजपा इसे लेकर राहत महसूस करेगी कि आखिरकार वह सरकार बना लेगी, क्योंकि उसकी जान पर आन पड़ी थी। पार्टी के सामने यह भय राहुल गंाधी के अचानक और असंभावित उभर जाने के कारण आ खड़ा हुआ। इसने प्रधानमंत्री को इसके लिए बाध्य किया कि वह खुद को गुजरात के बराबर बताएं जैसा 2002 के दंगों के समय उन्होंने सफलता पूर्वक किया था। इसलिए उन्होंने पहले कंाग्रेस के सनकी नेता मणिशंकर अय्यर पर हमला किया कि अय्यर ने प्रधानमंत्री को खत्म करने के लिए ‘सुपारी’ दी और फिर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर हास्यास्पद आरोप लगाया कि उन्होंने पाकिस्तान के साथ मिलकर साजिश की ।

इन आरोपों, जिन्हें शत्रुध्न सिन्हा ने ‘‘ अविश्वससनीय’ की संज्ञा दी है, ने यही जाहिर किया कि भाजपा कितनी बदहवास थी। और कोई नहीं बल्कि खुद मोदी की ही ओर से राहुल गंाधी की तुलना औरंगजेब से करने से भी भाजपा के मन के भय के पता चलता है। इसलिए चुनाव परिणामों का इंतजार कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा चिंता के साथ किया होगा। अंत में, भाजपा ने अपने भाग्यशाली ग्रहों को धन्यवाद दिया होगा कि वह सम्मान बचा कर निकल आई, हालांकि बड़ी मुश्किलसे।

इसके बावजूद भाजपाको यह दिखाई दे रहा होगा कि मोदी का जादू अब उतर रहा है, जैसा शिवसेना के प्रवक्ता ने कुछ समय पहले कहा। जब भाजपा को हिंदुत्व की प्रयोगशाला कहे जाने वाले अपने गढ़ पर अपनी पकड़ बनाए रखने में इतनी कठिनाई हुई तो यह साफ है कि राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा छतीसगढ़ के उन भाजपा शासित राज्यों में यह ज्यादा कठिन होगा जंहा अगले साल चुनाव हो रहे हैं। यह संभव नहीं है कि मोदी-शाह की जोड़ी गुजरात की तरह इन राज्यों में सत्ता विरोधी लहर को टालने में सक्षम हो पाए।

दूसरी ओर, कंाग्रेस यह महसूस करेगी कि राजनीतिक निर्वासन का उसका दौर खत्म हो गया है। जब शेर को उसकी मंाद में ही चुनौती देने में वह करीब-करीब सफल हो गई तो देश की इस सबसे पुरानी पार्टी को बाकी राज्यों में बेहतर मौका होगा सिर्फ इस कारण से कि गुजरात ने भाजपा के आत्मविश्वास को कम कर दिया हैं।

पता नहीं, यह भाजपा को ‘‘अविश्वसनीय’’ आरोप लगाने में और भी आक्रामक बनाएगी या नरम, लेकिन इसकी रणनीति में कुछ बदलाव आना पक्का है। किसी भी हालत में पार्टी के लिए अब कांग्रेस-मुक्त भारत बनाने का दावा करना संभव नहीं होगा। उसके असंख्य अत्याचारी समर्थकों के लिए भी यह कहना संभव नहीं होगा कि भाजपा का उदय देश को 1200 साल-एक हजार साल मुसलमानों के शासन का और दो सौ साल अंग्रेजों के- की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए है।

जंहा तक कंाग्रेस का सवाल है, उसे इस वास्तविकता को समझना होगा कि वह आगे बढने के लिए हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर तथा जिग्नेश मेवाणी जैसे नए और अनुभवहीन लोगों पर भरोसा नहीं कर सकती है। इस पुरानी पार्टी के लिए गुजरात एक विशेष उदाहरण है क्योंकि यहां इसके पास महत्वपूर्ण स्थानीय नेता नहीं हैं और इसने ऐसा नेता तैयार करने का काम वर्षो से नहीं किया। इसलिए इसके अलावा कोई चारा नहीं था कि राज्य में भाजपा के शासन से नाखुश पाटीदार, पिछड़े, तथा दलितों समुदायों से निकले इन तीन जाबंाजों की मदद ले। अगर राहुल गंाधी उन्हें लाने में सफल नहीं होते कांग्रेस को गंभीर कठिनाई का सामना करना पड़ता। मध्य प्रदेश और राजस्थान में ऐसी स्थिति नहीं है जहां कंाग्रेस के पास प्रभावशाली स्थानीय नेता हैं। इसलिए इन तीन राज्यों में कंागे्रस काफी उम्मीद के साथ चुनाव मैदान में उतर सकती है।

यह कहना अतिशयोक्ति होगी कि भारत में हवा का रूख बदल रहा है। लेकिन लहर उतरती हुई दिखाई दे रही है क्योंकि हिमाचल के नतीजे सत्ता-विरोधी लहर के परिणाम के रूप में देखे जा सकते हैं।

यह सिर्फ नोटबंदी तथा जीएसटी के प्रति असंतोष नहीं है जो गुजरात में भाजपाके ह्रास का कारण है, उन भगवा कðरपंथियों की ओर से किया जा रहा उपद्रव भी जो उन लोगों की पिटाई तथा हत्या में लगे हैं जिन्हें वे नफरत करते हैं, खासकर मुसलमान। वे राजस्थान में ज्यादा सक्रिय हैं, गुजरात ने भी इसकी अंाच महसूस की है। (संवाद)