गुजरात चुनाव परिणामों में उनके आकलन की पुष्टि की है। भाजपा राज्य में इससे बेहतर करती क्योंकि यहां दशकों नेतृत्व कर रहे, आत्मविश्वास वाले और घरेलू तथा अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर कई जीत हासिल करने वाले गुजराती प्रधानमंत्री थे। उन्होंने कई अंतराष्ट्रीय मामलों का निपटारा किया था। आखिरकार, पाकिस्तान को घेर लिया गया था और प्रसन्नता की बात थी कि अपने ही कारणों से सही, अमेरिका उसे धमका रहा था।

अर्थव्यवस्था को वैश्विक स्वीकृति मिली थी, धन प्रवाह में था। स्टाक मार्केट अच्छे परिणाम दे रहा था। कीमत स्थिर थी और लगातार विकास को निश्चित माना जा रहा था।

पैसे मायने रखते हैं और गुजरात में तो बहुत ही ज्यादा।

फिर भी, भाजपा किसी तरह सरकार बचा पाई। कुछ जगहों पर यह पराजित भी हो गई, लेकिन आमतौर पर इसने अपनी पकड़ बनाए रखी। ताकतवर गुजराती प्रधानमंत्री ने चुनावी युद्ध की रणनीति बनाने वाले अपनेे कुशल रणनीतिकार के साथ बिना थके प्रचार किया। कंाग्रेस- मुक्त गुजरात के लिए ये मजबूत सकारात्मक बिंदु थे जो मतदाताओं को खींच सकते थे और अच्छा माहौल बना सकते थे। फिर भी, कंाग्रेस अपने अनुभवहीन नेता के नेतृत्व में फिर से उभर कर आ गई है। ऐसे ही नेताओं के रिकार्ड लापरवाही के बावजूद मानो स्फिंक्स की तरह जिंदा हो जाने जैसा हुआ। क्या यह देश के प्रथम परिवार के राजकुमार राहुल गंाधी के किसी अद्दश्य हाथों, जिसके विदेश में होने का संदेह है,, द्वारा एक राजनीतिक नेता में रूपांतरण था?

इन सारे कारणों ने थोड़ा-थोड़ा अपना योगदान किया। लेकिन पिछले एक साल में हुए आर्थिक फैसलों ने अपना जादू दिखाया।

नोटबंदी और उसके तुरंत बाद, तथाकथित ‘गुड एंड सिंपल टैक्स’, जैसा मोदी ने इसे नाम दिया था, ने सूक्ष्म रूप से अपने नेताओं के प्रति गुजरात की मानसिकता बदल दी। इसके संकेत काफी पहले आ गए थे। मुद्रा योजना का नौकरियों तथा व्यापार पर असर की पड़ताल के लिए पिछले अक्टूबर मैं उत्तराखंड की यात्रा पर था। हरिद्वार में मेरी मुलाकात कुछ गुजराती युवाओं से हुई। मुझे लगा कि उनसे बात करने से मुद्रा योजना के तहत मिलने वाले छोटे कर्जो के बारे में कुछ सुराग मिलेगा। मैं ने बात की और मुझे थोड़ा अचरज हुआ कि वे अपने सर्वोच्च नेता नरेंद्र मोदी से नाराज थे। वे अफसोस कर रहे थे नोटबंदी तथा जीएसटी की उनकी नीति ने उनके छोटे व्यवसाय को बर्बाद कर दिया है।

‘‘अगर हमारा व्यापार अपनी पूरी रफ्तार से चल रहा होता तो क्या आपको लगता कि हम दो सप्ताह यहां के दर्शनीय स्थलों को देखने में बिताते ?

लेकिन राज्यों तथा स्थानीय कई टैक्सों और दरों की जगह टैक्स का एक राष्ट्रीय व्यवस्था जैसी सही नीति के साथ क्या गड़बड़ी थी ? युवा व्यापारियों ने जीएसटी की व्यवस्था की वे सारी समस्याएं गिना दी जिसने व्यापार करना उनके लिए कठिन बना डाला है। पूरे देश में समान टैक्स की नीति से उन्हें समस्या नहीं थी, बल्कि इसके पालन करने की जटिलता से वे परेशान थे। निस्संदेह, पालन करने के असहनीय बोझ ने व्यापारियों के रोज की जिंदगी में सरकार के हस्तक्षेप का भय पैदा कर दिया था। ढेर सारी प्रकियाओं के पालन तथा खरीदने तथा बेचने वालों की पैन तथा आधार को इकðा करने के पीछे लगे रहने की जरूरत थी। इसका अंतिम परिणाम था हर व्यापार के सभी अंाकड़े को सरकार के पास स्थानांतरित करना।।

जनकारी को शेयर करना इस देश के लोगों के लिए असली चिंता की बात होती है। विभिन्न तरह के सर्वे करने वालों को गंाव में लोग कोई भी जानकारी देने से भागते हैं। यह एक सामान्य अनुभव है।

दूसरा, जीएसटी सार्वजनिक वित्त को लेकर बढ़िया विवेक का एक उदाहरण है। लेकिन एक झटके में उन लोगों को टैक्स के जाल में लाने से जो एक पैसा भी नहीं देते थे विरोध होना पक्का था।

तीसरा, जीएसटी का आईटी ढ़ांचा बनाने वाली कंपनी ने अराजक काम किया। इसकी गडबड़ियां सामने आ गई हैं और उन्हें सुधारा भी जा रहा है।

जीएसटी लागू करने का श्रेय लेने की कोशिश भी एक भारी गलती थी। संसद के विशेष ऐतिहासिक मध्य रात्रि सत्र में इसे दूसरी आजादी बताने का प्रदर्शन एक गलत आकलन था।

साकी म ुस्ताद खान ने औरंगजेब के दरबार के इतिहास ‘मास्सीर-ए-आलमगिरी’ में कहा है कि क्षण भर में जिंदगी बदल जाती है। शायद यह देश की राजनीति में जिंदगी बदलने वाला क्षण हो!

हम चढती लहर पर सवार हैं। भाजपा अपराजेय था। इसका रथ रोका नहीं गया है, लेकिन अभी के लिए इसकी रफ्तार धीमी हो गई है। अगर यह फैसला गुजरात में हुआ है तो 2019 में पूर्ण बहुमत मिलने में संदेह है। इसका अर्थ होगा विचार परिवर्तन का एक युग जैसा दूसरी यूपीए के गठबंधन के अनिश्चित समय में हमने देखा। कम से कम, कुछ दशकों के लिए हम एक मजबूत केंद्र के साथ रहेंगे जो ढेर सारे घोटाले नहीं होने देगा। भाजपा की इस पारी में अगर यह एक स्कोर है तो यही है कि लगता है अब तक हमने करोड़ों वाले घोटाले नहीं होने दिए हैं। (संवाद)