संरक्षणवाद और महत्वाकांक्षा के बीच लेने और देने की सोच अब अपना समय पार कर चुकी है। दूसरों के प्रति अपनी जिम्मेदारी की बुनियादी शिष्टता भी अब नहीं बची है। डब्लू टीओ के प्रमुख ची एवेडो ने कहा भी कि अगर हम सबसे गरीब लोगेां के जीवन में सुधार या सबसे छोटे को प्रतिस्पर्धा का मौका नहीं देते हैं तो हम अपना काम नहीं कर रहे हैं। उन्होंने साफ कहा कि आप अपने मन का सब कुछ लेकर चलते बनें और बहुपक्षीयता भी बनी रहें, ये दोनों बातें साथ-साथ नहीं चल सकतीं। लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, ब्राजील और भारत समेत कुछ प्रमुख व्यापारिक देशों ने यही किया। उन्होंने बहुपक्षीयता का मनोबल बनाए रखने के लिए समझौते की कोई साझा जमीन तैयार नहीं की। एक नियम आधारित व्यापारिक मैदान से सभी के साझा हित की ओर बढ़ने की जिम्मेदारी रखने वाली विश्व संस्था को अर्जेटिना की राजधानी ब्यूनोस आइरेस में हुई मंत्रि स्तरीय सम्मेलन को अमेरिकी आलोचना और कुछ राष्ट्रों के वीटो की वजह से कलह के बीच समाप्त करना पड़ा।
यूरोपीय हाई कमिश्नर ने इस डरावनी वास्तविकता को रखा। सेसिलिया माल्मस्ड्रोम ने कहा कि हम कोई भी बहुपक्षीय नतीजा नहीं हासिल कर पाए। यह एक दुखद सच्चाई है कि अवैध मछली मारने को मिल रहे अनुदान को भी हम रोक नहीं पाए।
असंतोष इतना ज्यादा था कि अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि राबर्ट लाइटहाइजर ने कहा कि समान विचार के देशों का आपस में बातचीत आगे जाने के लिए बेहतर तरीका है। आम सभा की शुरूआत में ही लाइटहाइजर ने एक निराशाजनक सुर बना दिया जब उन्होंने डब्लूटीओ को कठोरता से फटकारते हुए कहा कि अब पुराने नियमों का ही पालन नहीं होता है तो नए नियमों के बारे में बातचीत असंभव हे। उन्होंने कहा कि डब्लूटीओ अपना लक्ष्य छोड़ रहा है और यह अधिक मुकदमा आधारित हो गया है।
मजे की बात यह है कि व्यापार विशेषज्ञ तथा वाशिंगठन स्थित पीटरसन इंस्टीच्यूट आफ इंटरनेशनल इकोनोमिक्स चाड बाउन ने कहा कि अगर यह फलीभूत होता है तो समान सोच के देशों के बीच बातचीत एक स्वाभाविक और सकारात्मक नतीजा है। बाउन ने डब्लूटीओ के इन्फारमेशन टेक्नोलौजी एग्रीमेंट का हवाला दिया जो 1990 में 29 देशों के इन्फारेमेशन टैक्नोलौजी के उत्पादों की कीमत घटाने से शुरू हुआ और 82 देशों तक बढ़ गया जिससे इस सेक्टर का 97 प्रतिशत व्यापार इस दायरे में आ गया।
मानो किसी इशारे पर काम करते हुए मंत्रियों के सम्मेलन के आखिरी दिन इस्कूटीओ की वेबसाठट ने तीन ऐसे समूहों अवतरित होने की घोषणा कर दी जो ई-कामर्स में निवेश सहूलियत तथा अत्यंत, लघु तथा मद्धम उद्योगों (माइक्रो,स्माॅल तथा मीडियम एंटरप्राइजेज) पर बातचीत करेंगे। घोषणा में कहा गया कि हर समूह में कई देशों का प्रतिनिधित्व है जिसमें विकसित, विकासशील तथा कम विकसित देश शामिल है।
एक बात ख्याल करने योग्य है कि भारत ने वर्तमान मुद्दों पर विकासशील देशों का पूर्ण समाधान होने तक नए मुद्दों को शामिल करने का तीव्र विरोध किया था। यह लोगों को याद है कि 1996 में सिंगापुर वाले मंत्रियों के सम्मेलन में भारत ने गैर-व्यापार के मुद्दों, निवेश, प्रतिस्पर्धा-नीति, सरकारी खरीद तथा व्यापार सुविधा को शामिल करने का कड़़ा विरोध किया था। लेकिन ये मुद्दे एक या दूसरे वेष में डब्लूटीओ के मुहावरों में जगह पा गए। व्यापार सहूलियत संधि तो डब्लूटीओ का अभिन्न हिस्सा रही थी और जिसे भारत ने भी स्वीकृत कर दिया था। कोई किसी विषय का विरोध इस वजह से कर सकता है कि वह इससे असहमत है। लेकिन जब बहुपक्षीय फोरम में बाकी देश संभावित फायदे के लिए इसमें शामिल हो जाते हैं; बहुपक्षीय फोरम में उसके लिए विकल्प खत्म हो जाते हैं। यह एक शुद्ध व्यावसायिक तर्क है जिसे कोई अपनी अज्ञानता तथा भारी कीमत पर ही कर सकता है।
जो भी हो, 71 की संख्या में डब्लूटीओ के सदस्य भविष्य में ई-कामर्स पर व्यापार संबंधी मुद्दों बातचीत के लिए रास्ता तैयार करने का काम करेंगें। यह डब्लूटीओ के बाकी सदस्यों के लिए भी खुला होगा। यह समूह विश्व में इस क्षेत्र के 77 प्रतिशत व्यापार के लिए जिम्मेदार है। कोई 70 देश मानते हैं कि निवेश, व्यापार तथा विकास में संबंध है और उन्होंने भविष्य में बहुपक्षीय ढ़ाचां विकसित के उद्देश्य से संरचनात्मक बातचीत की अपनी योजना सामने लाई है। इस समूह के सदस्य व्यापार का 73 प्रतिशत तथा अंदरूनी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का 66 प्रतिशत नियंत्रित करते हैं। वे अगले साल के शुरू में इसके लिए बैठेंगे कि इस मुद्दे पर सदस्य देशों तक पहंुच बनाने का काम किस तरह संगठित किया जाए।
इसी तरह, माइक्रो, स्माल तथा मीडिया एंटरप्राइजेज (एमएसएमई) को लेकर 87 डब्लूटीओ सदस्यों ने बहुपक्षीयता के लिए एक कार्य-समूह बनाया है जो बाकी सदस्य देशों के लिए भी खुला रहेगा। शुरूआत के तौर पर, भारत के इतने विरोध के बावजूद नए मुद्दों को बातचीत के दायरे में ला दिया गया है। पहले तीसरी दुनिया के नाम से जाने गए देशों की चिंता व्यक्त करने के बावजूद एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के बारे में कोई समझौता संभव हो नहीं सका। यह था अन्न सुरक्षा के लिए अनाजों का सार्वजनिक भंडार। भारत के इस प्रिय विषय को कोई सफलता नहीं मिली क्योंकि अमेरिका इस मुद्दे पर एक इंच भी पीछे नहीं हटा। डब्लूटीओ ने यह कहकर संतोष कर लिया कि मंत्रियों ने वायदा किया है कि वे बाकी प्रासंगिक विषयों पर वार्ता करेंगे जिसमें कृषि के तीन स्तंभ (घरेलू सहायता, बाजार तक पहंुच तथा निर्यात के लिए प्रतिस्पर्धात्मकता) शामिल हैं और गैर-कृषि बाजार तक पहंुच (औद्योगिक वस्तुएं/शुल्क) से विकास के नियम तथा व्यापार तथा पर्यावरण ओर बौद्धिक संपदा अधिकार से जुड़े मुद्दे शामिल है।
भारतीय मीडिया की टोली लेकर गए विनम्र सुरेश प्रभु के लिए गर्व करने का क्षण सिर्फ एक अच्छी भाषा में दिए गए गर्म बयान तक सीमित था। बयान में कहा गया ,‘‘ भारत डब्लूटीओ के बुनियादी सिद्धातों पर अडिग है जिनमें बहुपक्षीयता, नियम आधारित सहमति से निर्णय करना, एक स्वतंत्र तथा विश्वसनीय विवाद-निपटान की अपील प्रक्रिया, विकास को केंद्र में रखने तथा सभी विकासशील देशों के साथ विशेष और अलग व्यापार शामिल हैं।’’
यह ऐसा समय है कि घटती बहुपक्षीयता में अपनी ऊर्जा, कोशिश में खर्च करने के बदले ‘समान सोच’ वाले समूहों के साथ जुड़ कर बेहतर डब्लूटीओ के बहुसंख्यक सदस्य देशों ने तीन विषयों के योगदान देकर सपष्ट रूप से दिखाया है। (संवाद)
दिशाहीनता और मुकदमेबाजी से ग्रस्त विश्व व्यापार संगठन
जी श्रीनिवासन - 2017-12-19 11:14
व्यापार की बहुपक्षीय बातचीत की भाषा में वार्तालाप का टूटना, गतिरोध या आम सहमति का अभाव जैसे शब्द सीधे तौर पर यही बताते हैं कि विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) के, 164 देशों के बीच संवाद स्थापित करने वाली व्यवस्था बेतरतीब हो चुकी है। यह सिर्फ एक बातचीत की दुकान बनकर रह गया है क्योंकि विकसित तथा उभरती हुई व्यवस्था के कुछ प्रभावशाली सदस्य अपनी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं तथा विकास के मुद्दों पर झुकने को तैयार नहीं हैं।