उसके कुछ दिनों के बाद ही 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले के एक मुकदमे में सभी दोषियों के बरी हो जाने के बाद देश भर में यह संदेश भी जा रहा है कि प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार मिटाने और भ्रष्ट लोगों को सजा दिलाने में कोई दिलचस्पी नहीं लेते। उस मुकदमे का फैसला देते हुए माननीय न्यायाधीश ने जो लिखा है, वह नरेन्द्र मोदी की सरकार के खिलाफ ही एक कड़वी टिप्पणी है। उन्होंने कहा है कि अधिकारियों ने अदालत के सामने मुकदमे की सुनवाई के दौरान गैरजिम्मेदाराना रवैया अपनाया और गंभीरता नहीं दिखाई। उन्होंने परस्पर विरोधी बयान दिए। उन्होंने अदालत के सामने दस्तावेज कुछ रखे और बातें कुछ और रखीं।

सुनवाई उस समय हो रही थी, जब केन्द्र में मोदी की सरकार थी। यह सच है कि इस मामले की जांच यूपीए सरकार के समय शुरू हुई थी और उसी के समय समाप्त भी हो गई थी। जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो रही थी। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच इसलिए हो रही थी ताकि सीबीआई की जांच टीम को केन्द्र सरकार द्वारा प्रभावित नहीं किया जा सके। जांच हुई और चार्जशीट भी दाखिल कर दी गई। उसके साथ सुप्रीम कोर्ट निगरानी समाप्त हो गई।

बाद में मोदी की सरकार सत्ता में आई। सच यह भी है कि मोदी की सरकार के सत्ता में आने का सबसे बड़ा कारण 2 जी स्पेक्ट्रम के आबंटन में हुआ घोटाला ही था। घोटाले में सरकारी खजाने को हुए नुकसान के बारे में अलग अलग आकलन था। कैग के एक आकलन के अनुसार उसके कारण सरकारी खजाने कोे 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। यह एक बहुत बड़ी राशि होती है। इसके कारण पूरे देश का सिर चकरा गया था। हालांकि चार्जशीट दाखिल करते समय खुद सीबीआई ने नुकसान हुई राशि का घटाकर करीब 30 हजार करोड़ रुपये बताया था।

घोटाला तो हुआ था और उसके कारण 122 लाइसेंस रद्द कर दिए गए। उन लाइसेंसों को रद्द करने के कारण देश के सामने नये तरीके के संकट खड़े होने लगे थे। बैंकिंग व्यवस्था सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही थी। जिन लोगों को लाइसेंस जारी किए गए थे, उन्होंने बैंकों से भारी पैमाने पर लोन लिया था। लोन को वे चुकाने में असमर्थ हो गए और आज उसके परिणाम स्वरूप हमारी बैंकिंग व्यवस्था बीमार हो गई है। केन्द्र सरकार ने बैंकों में जान फूंकने के लिए अभी हाल ही में दो लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया है और भारतीय रिजर्व बैंक ने अभी हाल ही में 9 बैंकों की कुछ व्यावसायिक गतिविधियों पर रोक लगा दी है। देश की उस समय की सबसे बड़ी रियल इस्टेट कंपनी यूनीटेक ने भी 2 जी स्पेक्ट्रम खरीदा था। आज वह भी दिवालिया होने की कगार पर खड़ा हो गया है और उससे मकान खरीदने वाले हजारों लोगों की पूंजी डूब रही है।

यानी 2 जी स्पेक्ट्रम के घोटाले से तो सरकारी खजाने को अधिकतम 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये की राशि का ही नुकसान हुआ होगा, लेकिन उससे अर्थव्यवस्था का जो नुकसान हुआ है, वह लाखों करोड़ रुपये का हुआ है। उस घोटाले ने देश की अर्थव्यवस्था के साथ साथ देश की राजनीति को भी प्रभावित किया। करोड़ों लोग आंदोलित हो गए और अन्ना हजारे के नेतृत्व में आजादी के बाद का सबसे बड़ा राष्ट्रव्यापी आंदोलन खड़ा हो गया। उस आंदोलन ने केजरीवाल को दिल्ली का मुख्यमंत्री बना दिया तो कांग्रेस की कमर तोड़ते हुए नरेन्द्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बना दिया और भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा में पूर्ण बहुमत दिला दी।

देश के लोगों को उम्मीद थी कि नरेन्द्र मोदी भ्रष्टाचार मिटाने के लिए कुछ करेंगे और जिन लोगों ने भ्रष्टाचार कर देश के अरबों रुपयों को लूटा है, उन्हे सजा दिलाएंगे, लेकिन उन्होंने वैसा अब तक कुछ नहीं किया है। केजरीवाल और लालू जैसे अपने धुर राजनैतिक विरोधियों को राजनैतिक कारणाों से वे कुछ कर रहे हैं, अन्यथा भ्रष्टाचार में लिप्त अपने अन्य विरोधियों के खिलाफ भी मोदी बहुत ही नर्म रवैया अपना रहे हैं। वे अपने छवि तो भ्रष्टाचार विरोधी नेता के रूप में बनाते हैं, लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ नहीं करते।

2 जी स्पेक्ट्रम के इस फैसले से लोगों का शक अब यकीन मे बदल रहा है कि वास्तव में मोदी का भ्रष्टाचार से कोई द्वेष नहीं है। भाजपा के लोग भले यह कहें कि इस घोटाले की जांच यूपीए के काल में हुई थी और हार के पीछे जांच की कमजोरी ही जिम्मेदार है। लेकिन फैसला सुनाने वाले माननीय न्यायाधीश ने जांच पर सवाल नहीं उठाए हैं, बल्कि मामले की सुनवाई के दौरान अधिकारियों द्वारा सबूत नहीं पेश करना और परस्पर विरोधी बातें करने को जिम्मेदार बताया है। जाहिर है, अभियोजन पक्ष की दिलचस्पी आरोप को साबित करने की नहीं थी। और सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष मोदी सरकार का ही हिस्सा था।

पिछले नवंबर महीने में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि से मुलाकात की थी। उनकी बेटी कणिमोरी और उनकी पार्टी के ही ए राजा भी इस मुकदमे में आरोपी थे। उनके बरी होने के बाद प्रधानमंत्री की करुणानिधि के साथ हुई उस मुलाकात की भी सोशल मीडिया में खूब चर्चा हो रही है। यह सवाल उठाया जा रहा है कि क्या अभियोजन पक्ष बिना किसी राजनैतिक दबाव के सुनवाई के दौरान मुकदमे को कमजोर करने की कोशिश कर सकता है? सच्चाई कुछ भी हो, लेकिन लोग तो यही मानेंगे कि मोदी सरकार भ्रष्टाचार के दोषियों को सजा दिलाने में दिलचस्पी नहीं रखती, सिर्फ भ्रष्टाचार का विरोध चुनाव जीतने तक ही सीमित है। (संवाद)